समकालीन भारतीय महिला आन्दोलन
समकालीन आन्दोलनों में कई प्रकार की विचारधाराओं तथा सक्रियताओं के लोग साथ मिलकर आये। इनका प्रारम्भ 1975 को सं. रा. महिला वर्ष घोषित किये जाने से हुआ। इसी वर्ष महिला की स्थिति वाली रिपोर्ट (Status of Women Committee Report) का भी प्रकाशन हुआ यह रिपोर्ट भारतीय महिला की स्थिति को दर्शाने वाली विभिन्न सूचकों से युक्त काफी भारी भरकम थी। इस रिपोर्ट ने सीधे इस ‘मिथ’ को ध्वस्त किया कि स्वतन्त्रता के पश्चात महिलायें ‘प्रगति’ कर रही थी। इसने स्पष्ट किया कि अधिकतर भारतीय महिलायें गरीबी, अशिक्षा, बीमारी, खराब स्वास्थ्य तथा निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में भेदभाव से जूझ रही थीं। इसने मध्यवर्ग की महिलाओं द्वारा झेले जा रहे ‘सेक्सिज्म’ (sexism) तथा पितृसत्ता के विरुद्ध आन्दोलनों को जन्म दिया। सिद्ध
यह रिपोर्ट भारत के महिलाओं के समकालीन आन्दोलन के लिये एक निर्णायक मोड़ हुई रिपोर्ट ने निम्न सुझाव दिये.
- केवल न्याय के लिये ही समानता नहीं बल्कि विकास के लिये।
- महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।
- बच्चों का पालन-पोषण सामाजिक जिम्मेदारी होनी चाहिये।
- घरेलू कार्य को राष्ट्रीय उत्पादन के रूप में पहचान दिलाना।
- ( विवाह तथा मातृत्व को अक्षमता नहीं माना जाना चाहिये।
- महिला की मुक्ति को सामाजिक मुक्ति से जोड़ा जाना चाहिये।
- पूर्ण समानता के लिये विशेष तात्कालिक प्रावधान किये जाने चाहिये।
1975 में देश के विभिन्न भागों में नारीवादी आन्दोलन पनपे विशेषकर महाराष्ट्र में इसे 1975 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित किये जाने के अप्रत्यक्ष प्रभाव के रूप में देखा गया। हैदराबाद में प्रोग्रेसिव आर्गेनाइजेशन ऑफ वुमैन (POW) की स्थापना से प्रेरित होकर माओवादी) महिलाओं ने पुरेगामी स्त्री संगठन (Progressive Women’s Organization) की बम्बई में स्थापना की। 8 मार्च, 1975 को पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस महाराष्ट्र में मनाया गया। सितम्बर में, देवदासी कॉन्फ्रेन्स आयोजित की गई। अक्टूबर में पुणे में यूनाइटेड वुमेन्स लिबरेशन स्ट्रगल वशिन्स आयोजित की गई। दलित के जाति विरोधी आन्दोलन तथा नारीवादी आन्दोलन में सम्बन्ध स्थापित किया गया। दलित अपनी सामाजिक स्वीकार्यता महिलाओं के शिक्षा के अधिकार, विधवा पुनर्विवाह तथा पर्दा प्रथा के खिलाफ आन्दोलनरत थे। दलित आन्दोलन की महिलाओं ने महिला समता सैनिक दल (League of Women Soldiers for Equality) की स्थापना की। 1975 में प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने देश में इमरजेन्सी घोषित की। इसने महिला आन्दोलन के विकास को प्रभावित किया। कई राजनैतिक संगठन भूमिगत हो गये। कई अधिकारों पर प्रतिबन्ध लग गया। 1977 में इमरजेन्सी के खत्म के साथ देश के कई भागों में फिर से महिला समूह बनने लगे।
1980 में महिला आन्दोलन में काफी परिवर्तन आये। नारीवादी रुझानों की तीन धाराये देखने को मिली –
- उदारवादी धारा ने राजनीति में उन सुधारों की माँग की जो विशेषकर महिलाओं को प्रभावित करते हों।
- बामपंथी धारा ने महिला के दमन को एक प्रक्रिया के रूप में देखा तथा सामाजिक परिवर्तन द्वारा सामाजिक रूपान्तरण की आवश्यकता को महसूस किया।
- रेडिकल नारीवाद ने समाज में स्त्रीत्व तथा पुरुषत्व के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया तथा महिला की शक्ति के रचनात्मकता के पारम्परिक स्रोतों की पुनः प्राप्ति पर बल दिया।
स्वतन्त्रता पूर्व तथा बाद में भी महिलाओं के संगठन राजनीतिक पार्टियों से जुड़े थे। 1980 में ऐसे स्वायत्त महिला संगठनों ने जन्म लिया जो कि किसी राजनीतिक दल से सम्बन्धित नहीं थे। 1970 के आखिरी वर्षों के समूह वामपंथी विचारधारा के थे। उन्होंने स्वयं को स्वायत्त घोषित कर दिया जबकि वे विभिन्न पार्टियों के प्रति झुकाव रखते थे ऐसे अधिकतर समूह के लोग शहरी शिक्षित मध्यवर्गीय तथा वामपंथी विचारों के थे इन्होंने 1970 तथा 1980 के नारीवादी आन्दोलन को काफी प्रभावित किया। कई समूह एक-दूसरे से अलग हुये कुछ केवल महिला संगठन थे कुछ पार्टी से दूर थे नारीवादियों ने पार्टी पॉलिटिक्स की आलोचना की परन्तु उनके महत्व को महसूस किया। उन्होंने। महससू किया कि पार्टियों सुधारों को लागू करने तथा नारीवादी उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सकती हैं।
यद्यपि 1970 व 1980 के अधिकतर आन्दोलन शहर आधारित तथा शहरी समूहों द्वारा चलाये गये थे परन्तु नारीवादी चेतना ग्रामीण समूहों में भी प्रवेश कर गई थी। 1950 का तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश का बटाईदारी आन्दोलन 1970 के अन्त तक पुनर्जीवित हो गया। तेलगांना के करीमनगर जिले में 1960 तथा उसके बाद के दशकों में महिलायें, भूमिहीन
मजदूरों के संघर्ष में काफी सक्रिय रहीं। 1970 में हैदराबाद में स्त्री शक्ति संगठन बना क्योंकि महिलाओं द्वारा एक स्वतन्त्र संगठन की माँग की जा रही थी। बिहार में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का निर्माण हुआ तथा संगठन की महिलाओं ने नारीवादी मुद्दे उठाये। इसके अतिरिक्त कुछ मुख्य महिला आन्दोलन भी रहे जो काफी चर्चित रहे तथा जिनकी सफलता कानूनी जामा पहनाने के बाद ही प्राप्त हुई। जैसे दहेज के खिलाफ आन्दोलन, बलात्कार विरोधी आन्दोलन, मद्यपान निषेध तथा चिपको आन्दोलन इत्यादि ।
1990 का महिला आन्दोलन का नारा था “सारे मुद्दे महिलाओं के मुद्दे है” (“All Issues are Women’s Issues) महिलाओं के मुद्दों का अन्तर्राष्ट्रीयकरण हो चुका था तथा जिसको संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलनों में मजबूती प्रदान की। 1992 में वियना (आस्ट्रिया) में हुए मानवाधिकार सम्मेलन महिलाओं के अधिकारों को मानवाधिकारों के रूप में पहचाने जाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था। बीजिंग (चीन) में महिला के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में दुनिया भर की महिलाओं को जोड़ने में मदद की है। वर्तमान में भारत में महिला आन्दोलन विभिन्न मुद्दों पर आपस में जुड़े हैं।
प्रारम्भिक शिक्षा सर्वीकरण के सम्बन्ध में सुझाव दीजिए।
महिलाओं के मुद्दे अब समावेशी विकास, क्षेत्रीय शान्ति दया सेक्स वर्कर जैसे मुद्दे उठ रहे हैं तथा एक न्यायपूर्ण समाज की रचना हेतु सम्मिलित प्रयास कर रहे हैं।
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