सबके लिए शिक्षा (Education for ALL-EFA)-
सबके लिए शिक्षा राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक उत्थान के लिए राष्ट्र की समस्त जनता का शिक्षित होना आवश्यक है। यदि कोई राष्ट्र समय के साथ चलना चाहता है तो उसे जन-जन को शिक्षा सुलभ करानी होगी। आज वैश्विक समाज (Global Society) के परिप्रेक्ष्य में यदि राष्ट्र अपने सभी नागरिकों को शिक्षित करने में असफल है तो वह विश्व के रंगमंच पर अपना अस्तित्व खो देगा।
आज भारत ही नहीं बल्कि प्रायः सभी विकासशील देश अशिक्षा या निरक्षता के संकट से जूझ रहे हैं। द्रुतगति से होने वाले सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ अशिक्षित, आंशिक रूप से साक्षर व्यक्तियों की जनसंख्या बढ़ती जा रही है आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग शिक्षा के अधिकार से वंचित है। आज जहाँ सामाजिक न्याय और समानता की माँग का उद्घोष विश्व में गूंज रहा है वहीं, शैक्षिक विस्तार (Educational Disparity) एक सुरसा की तरह मुख खोले खड़ी है। विश्व में और विशेष रूप से विकासशील देशों में यह विषमता पराकाष्ठा पर दिखायी देती हैं जिसने समाज में गहरी खाई उत्पन्न कर दी है- एक वर्ग है जिसे शिक्षा सुलभ है और दूसरा जिसे शिक्षा सुलभ ही नहीं है। जिन्हें शिक्षा सुलभ हैं, वहाँ गुणवत्ता का प्रश्न है। भारत हो या कोई अन्य विकासशील देश, सभी अपने स्तर पर इस समस्या या चुनौती का सामना करने का प्रयास कर रहे हैं, क्योंकि अशिक्षित समुदाय ‘राष्ट्रीय विकास’ में बहुत बड़ी बाधा है। शिक्षा के प्रसार पर विशाल धनराशि खर्च होती है, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अनेक योजनाएँ बनती और क्रियान्वित होती हैं, लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति, दूरदृष्टि, उपयुक्त नियोजन व प्रबन्धन तथा प्रतिबद्धता के अभाव में अपेक्षित सफलता नहीं मिलती, समाज का कोई न कोई वर्ग हमेशा ही शिक्षा की परिधि से बाहर हो जाता है। तात्पर्य यह है कि सभी को शिक्षा / सबके लिए शिक्षा (Education for All : EFA) का लक्ष्य एक स्वप्न है, यह कब पूर्ण रूप से साकार होगा, यह समय ही बताएगा।
पिछले दशकों में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी इस विषय पर अपनी चिन्ता व्यक्त की है तथा अनेक विश्व सम्मेलनों व अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में सबके लिए शिक्षा (EFA) को पुनः परिभाषित करते हुए, लक्ष्य प्राप्ति के लिए उचित दिशा-निर्देश भी दिए हैं। आज अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय विकासशील देशों के इस संकट का तटस्थ द्रष्टा नहीं है बल्कि उनके सहयोग के लिए यह उठ खड़ा हुआ है। ‘सबके लिए शिक्षा’ के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जो राष्ट्रीय कार्यक्रम चल रहे हैं, उन्हें नयी ऊर्जा प्रदान की है।
सबके लिए शिक्षा अन्तर्राष्ट्रीय परिदृश्य
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विकासशील देशों द्वारा ‘सबके लिए शिक्षा’ (EFA) के लक्ष्यों को प्राप्त करन में असफलता के कारणों का विस्तृत अध्ययन किया गया है, तथा विश्व के राष्ट्रों को इस समस्या के प्रति जागरूक बनाने का प्रयास भी किया गया है।
अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों में प्रमुख हैं-थाईलैण्ड (1990) में आयोजित शिक्षा पर जामटीन विश्व सम्मेलन की घोषणा (Declaration of Jomtein World Conference on Education, Thailand, 1990) तथा क्रम से विभिन्न देशों में होने वाले सम्मेलन तथा गोष्ठियाँ जैसे कि सन् 1993 में यूनेस्को के सहयोग से ‘दिल्ली सम्मेलन’ सन् 1996 में ‘जिनेवा का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन (International Confernece on Education Geneva, September 30 October 5.1996) दिल्ली में आयोजित ई-9 देशों (बांग्लादेश, ब्राजील, चीन, मिस, भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, नाइजीरिया तथा पाकिस्तान) की दो गोष्ठियाँ (फरवरी 6-8-1997) तथा डकार की ‘विश्व शिक्षा फोरम’ (Dakar World, Education Forum, 2000) आदि। उपर्युक्त सभी ने विभिन्न देशों में चल रहे सबके लिए शिक्षा (Education for All) के कार्यक्रमों का गहन अध्ययन कर विश्व के राष्ट्रों को सम्बोधित किया कि वे सबके लिए शिक्षा (EFA) की दृष्टि को अधिक व्यापक बनायें। EFA की योजना का ध्यान केवल शिक्षा में जनता की बढ़ती हुई ‘सहभागिता’ पर ही केन्द्रित न हो बल्कि उसकी दृष्टि आगे दूर तक विस्तृत होनी चाहिए। इन घोषणाओं ने इस बात पर बल दिया कि यदि हम सभी को शिक्षा’ (EFA) का लक्ष्य प्राप्त करना चाहते हैं तो शिक्षा की सर्वसुलभता (Access to all) का प्रसार तो होना ही चाहिए लेकिन साथ में शिक्षा की गुणवत्ता और समता (Quality and Equity) में भी सुधार होना चाहिए।
इन घोषणाओं ने स्कूल से बाहर (Out of School) की जनसंख्या के सामाजिक व आर्थिक समाकलन पर विशेष ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया। इन घोषणाओं ने अपने कार्य संरचना (Frame Work for Action) में यह उद्देश्य
निश्चित किया है कि सभी बच्चों या अल्पवयस्क तथा प्रौढ़ों की अधिगम आवश्यकताओं (Leaming Needs) की पूर्ति सुनिश्चित होनी चाहिए। यह कार्य उपयुक्त अधिगम (Appropriate Learning) की समान सुलभता (Equal Access) और जीवन कौशल (Life Skills) कार्यक्रमों के द्वारा हो सकता है।
अल्पवयस्क तथा प्रौदों को एक सन्तोषजनक व उत्पादक जीवन (Productive Life) बिनाने के लिए व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण (Vocational Skills Training) योगदान कर सकता है। विभिन्न देशों में गरीबी दूर करने में शिक्षा द्वारा ‘कौशल विकास’ (Skills Development) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह बंचित समुदाय (Disadvantaged Population) के लिए ‘आय’ उत्पन्न करने का सुअवसर प्रदान कर सकता है।
सबके लिए शिक्षा (EFA) की ग्लोबल मॉनीटरिंग रिपोर्ट (Global Monitoring Report) यह दर्शी है कि विकासशील देश अन्तर्राष्ट्रीय विकास के सहभागियों (International, Development Partners) के सहयोग से जो प्रयास कर रहे हैं, उनकी प्रवृत्ति मुख्य रूप से सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा (Universal Primary Education) पर ही केन्द्रित है। इन देशों में चलने वाले औपचारिकेतर शिक्षा कार्यक्रम (Non Formal Education Programmes भी साक्षरता को ही सबसे अधिक प्रमुखता दे रहे हैं, और कौशल विकास (Skills Development) की उपेक्षा कर रहे है। सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा (UPE) अवश्य ही मुख्य ‘मुद्दा’ माना जा सकता है लेकिन सबके लिए (EFA) के केवल इसी आयाम को आवश्यकता से अधिक महत्व देने के कारण वंचित और असुरक्षित समूह (Disadvantaged and Vulnerable Group) से EFA की परिधि के बाहर हो जाते है। सरकारें इन समूहों पर बहुत कम ध्यान देती हैं तथा इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति प्रायः गैर सरकारी संगठनों (UGOs) पर छोड़ देती है। इन देशों को अब यह वास्तविकता समझ में आने लगी है कि बिना इस बहिष्कृत जन समुदाय की विशाल जनसंख्या को ध्यान दिये ‘सबके लिए शिक्षा’ (EFA) की प्राप्ति सम्भव नहीं है। इस जनसमुदाय में ग्रामीण, दलित, अभावग्रस्त, विकलांग तथा अल्पसंख्यक आदि सभी आते हैं। इन सभी को प्रारम्भिक शिक्षा (Elementary Education) की आवश्यकता है, जिसमें व्यावसायिक कुशलता (Vocational Skill) भी शामिल हैं। इसी प्रकार की शिक्षा के द्वारा इस समूह का ‘सामाजिक ‘आर्थिक’ दृष्टि से (Socio-economically) समाज में समाकलन हो सकता है।
सन् 2003 में ‘यूनेस्को एजुकेशन सेक्टर’ (UNESCO Education Sector) तथा अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक नियोजन संस्थान (International Institute of Educational Planning : IIEP) के सहयोग से चार देशों (लाओ पी.डी.आर., माली, नेपाल और सेनेगल) में सर्वेक्षण किये गये, जो यह दर्शाते हैं कि, इन विकासशील देशों में अल्पवयस्क तथा प्रौढ़ों के कौशल विकास (Skill Development ) पर ध्यान नहीं दिया गया है, जितना कि सबके लिए शिक्षा (EFA) के नेशनल ऐक्शन प्लान (National Action Plans) में दिया जाना चाहिए। कुछ देशों जैसे कि नेपाल व सेनेगल (Senegal) में यह दिखायी देता है, लेकिन बहुत ही सीमित रूप में तथा इन कौशल विकास कार्यक्रमों (Skills Development Programines) को पर्याप्त धनराशि भी आवंटित नहीं है।
अध्ययन यह दर्शाते हैं कि अनेक कार्य समूहों (Action Groups) ने इस क्षेत्र में पहल की है तथा ऐसे सार्वजनिक (Public) और निजी क्षेत्र (Private Sectors) हैं जिन्होंने व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करने में पहल की है, लेकिन उनके कार्यक्रमों की अवधि अल्प और सीमित है तथा उनके प्रभाव भी स्थायी नहीं हैं। ये अध्ययन यही दर्शाते हैं कि समाज में सबसे अधिक ‘उपेक्षा’ अभावग्रस्त तथा वंचित समूह’ (Disadvanage Groups ) की हुई है।
विश्व में गरीब तथा गरीबी रेखा के नीचे के लोग प्रायः दूरस्थ क्षेत्रों या गाँवों में रहते हैं, जिन्हें समाज सेवा (Social Service) बहुत ही सीमित रूप में उपलब्ध होती है। ‘समाज सेवा में ‘शिक्षा’ और ‘कौशल प्रशिक्षण’ भी शामिल है। यद्यपि ‘गरीबी’ ग्रामों में ही अधिक दृष्टिगोचर होती है, लेकिन सबके लिए शिक्षा (EFA) के कार्यक्रम इस वास्तविकता की उपेक्षा करते रहते हैं। ये अध्ययन ऐसा मानते हैं कि केवल ‘शिक्षा’ ही नहीं बल्कि इस प्रकार की उपेक्षा भी समाज, में सामाजिक-राजनैतिक तनाय (Socio-Political Tensions) को बढ़ाने का कार्य करती है; जैसा कि आजकल नेपाल में दिखायी दे रहा है। (भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों, तथा बिहार आदि प्रदेशों में यही स्थिति है)।
शहरी क्षेत्रों में भी इस प्रकार, गरीब वर्ग अर्थव्यवस्था (Economy) के प्रायः अनौपचारिक क्षेत्रों (Informal Sectors) में ही कार्यरत है। इन देशों में ‘युवा रोजगार’ (Youth Employment) | की स्थिति चिन्तनीय है, विशेष रूप से श्रमिक बाजार (Labour Market) की रोजगार देने वाला वर्ग (Employers), नीतिनिर्माता (Policy Makers) तथा प्रशिक्षक (Trainers) सभी शिक्षा के इस क्षेत्र की ओर प्रयास बढ़ाने में लापरवाह है।
सरकारें प्रायः यही समझती है कि बंचित समूह (Disadvantaged Group) की मूलभूत प्रशिक्षण आवश्यकताओं (Basic Training Needs) की पूर्ति वर्तमान तकनीकी तथा व्यावसायिक कार्यक्रमों के द्वारा ही हो जाती है, जबकि वास्तविकता यह है कि इन कार्यक्रमों की क्षमता बहुत ही सीमित है। इस प्रकार के प्रशिक्षण के लिए विद्यार्थियों का चुनाव ‘माध्यमिक विद्यालयीय शिक्षा’ (Secondary School Education) के पश्चात् ही होता है, फलस्वरूप वंचित समुदाय स्वाभाविक रूप से पुनाः शिक्षा के इन कार्यक्रमों की परिधि से बाहर जाता है।
अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक नियोजन संस्थान (IIEP) द्वारा अभी हाल में किए गए अध्ययन ‘पावटी रिडक्शन स्ट्रेटजी पेपर्स’ (Poervty Redcution Strategy Papers PRSPs) भी यही दशति है कि इस प्रकार के कार्यक्रम या साधन अल्पवयस्क तथा प्रौढ़ों की अधिगम आवश्यकताओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे है। (IIEP News Letter Vol. XXINo. 4. Octoer-December 2003) लेकिन ये अध्ययन कोई वैकल्पिक समाधान भी प्रस्तुत नहीं करते।
डकार की ‘विश्व शिक्षा फोरम’ में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने संकल्प लिया था कि प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा स्तर पर सन् 2005 तक लैंगिक विषमताओं (Gender Disparties) को दूर कर दिया जाएगा तथा सन् 2015 तक शिक्षा में लैंगिक समानता (Gender Equality) स्थापित कर दी जाएगी। ‘लैंगिक समानता’ का मुख्य ध्यान इस बात पर होगा कि बालिकाओं को समान रूप से पूर्ण गुरबत्ता वाली प्रारम्भिक शिक्षा उपलब्ध करायी जाय
सबके लिए शिक्षा (EFA) की ग्लोबल मॉनीटरिंग रिर्पोट (EFA Global Monitoring Report) जिसका नाम जेण्डर एण्ड एजुकेशन फॉर आल (Gender and Education for All : the leap of equality, 2003-2004) है, इस रिपोर्ट ने विश्वव्यापी स्तर पर लैंगिक समानता के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, ‘सबके लिए शिक्षा’ (EFA) की प्रगति का मूल्यांकन किया है।
अध्ययनों में यह पाया गया है कि ‘विकास शील देशों में प्राथमिक शिक्षा की सुलभता (Access to Primary Education) को लेकर सबसे अधिक लैंगिक विषमताएँ हैं। सन् 2000 में इन देशों में स्कूल से बाहर (Out of school) के बच्चों में 57 प्रतिशत बालिकाएँ ही रही है। रिपोर्ट के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 128 देशों में से 76 देशों में सन् 2005 तक प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर यह लैंगिक समानता प्राप्त करना यदि असम्भव नहीं तो मुश्किल अवश्य है। 54 देश ऐसे हैं जो सन् 2015 तक किसी भी स्थिति में इस प्रकार की समता प्राप्त नहीं कर पाएँगे. निहितार्थ यही हुआ कि, लैंगिक समानता (Gender Equality) का लक्ष्य अभी बहुत दूर है।
उपर्युक्त सन्दर्भ में जिन देशों के पास ‘सब के लिए शिक्षा’ (EFA) प्राप्त करने के संसाधन नहीं है, उन देशों में इन कार्यक्रमों को चलाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करने में अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों के अन्तर्गत नए त्यति उपक्रम (East Track Initiations: FTI) प्रारम्भ किए गए, जिसमें इस मुद्दे पर कार्य प्रारम्भ हुआ, लेकिन आर्थिक सहायता प्रदान करने वाली पनियों की प्रतिबद्धता उनके ‘प्रारम्भिक प्रस्तायो’ (Initial Proposals) और उन देशों के लिए आवश्यक संसाधनों से मेल नहीं खायी।
‘ग्लोबल मॉनीटरिंग रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में कार्य करने वाले त्वरित उपक्रम (FTIs) की प्रतिबद्धता में 57 प्रतिशत की वृद्धि होना आवश्यक है, तभी शिक्षा में विषमताएँ (FTIS) समाप्त हो सकती हैं और वास्तविक रूप से सबके लिए शिक्षा (EFA) की प्राप्ति हो सकती है।
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