शैक्षिक नवाचार एवं शिक्षा के नूतन आयोमों की आवश्यकता एवं महत्व
समाज एवं शिक्षा में पारस्परिक रूप से घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। ज्ञान की वृद्धि और • तकनीकी विकास के फलस्वरूप समाज में तीव्र गति से परिवर्तन हो रहे हैं। भौतिकता के संचार स्वरूप पहले की तरह विश्व व्यापक न होकर लघु हो गया है। मानव के रहन-सहन, सोच विचार एवं आवश्यकताओं में परिवर्तन हो रहा है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन भी तीव्र गति धारण किये हुए हैं इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन होना अपरिहार्य हो गया है। इसलिए शिक्षा को सामाजिक बदलती दशाओं के अनुरूप लाने के लिए इसमें नवीन विचारों, विधियों, तकनीकों एवं नूतन आयामों की जरूरत है।
सारे संसार की तरह हमारे देश में भी परिवर्तन का चक्र सतत् गतिमान है। स्वाधीनता के पश्चात् भारत के राजनैतिक ढांचे में मौलिक बदलाव हुए हैं। 26 जनवरी, 1950 में भारतीय संविधान में भारतीय संविधान लागू किया गया जिसमें भारतीय जनता को मौलिक अधिकारों एवं नीति निर्देशक तत्वों एवं कुछ अधिकारों को प्रदान किया गया। इन अधिकारों एवं आश्वासनों को पूर्ण करने हेतु लार्ड मैकाले द्वारा निर्मित शिक्षा प्रतिरूप में परिवर्तन करने की जरूरत महसूस की गई है।
आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटिश कालीन अर्थव्यवस्था में बदलाव के प्रयत्न किये गये। आर्थिक विकास को प्राप्त करने हेतु पंचवर्षीय योजनाओं का सहारा लिया गया। इसके फलस्वरूप हमारी औद्योगिक एवं कृषि प्रणाली में बदलाव हुए हैं। इस नवीन आर्थिक वातावरण में हमारे राष्ट्र के सम्मुख कुछ आर्थिक समस्याओं का भी प्रादुर्भाव हुआ है। जैसे- पर्यावरण प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण, बेरोजगारी व नगरीकरण आदि। इनके समाधार के लिए. शिक्षा प्रणाली अक्षम सिद्ध हुई अतः शिक्षा प्रणाली में नवाचार एवं नूतन आयामों की आवश्यकता महसूस की गई। इस प्रकार से हमारे देश में हो रहे सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन के कारण शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव जरूरी है। अतः नवाचार की आवश्यकताओं को निम्नलिखित शीर्ष विन्दुओं के माध्यम से प्रकट किया गया है
नवाचार की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
1.जनसंख्या की वर्तमान अवॉशक्यताओ की पूर्ति हेतु – भारत की जनसंख्या स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय 33 करोड़ थी वर्तमान में एक अरब से भी ज्यादा हो गई है। इस व्यापक जनसंख्या की आवश्यकताएँ भी अधिक व्यापक है। इस विशाल जनसंख्या को शिक्षा, वस्त्र, आवास, चिकित्सा, खाद्यान व परिवहन की आवश्यकता है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ जन आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शिक्षा के नूतन आयामों की जरूरत है, क्योंकि परम्परागत शिक्षा प्रणाली से इसको पूर्ण करना लगभग असम्भव है। जनसंख्या शिक्षा को शिक्षा के नूतन आयामों में प्रमुख स्थान दिया गया है।
2.मानव संसाधन का विकास करने हेतु – मानव संसाधन एवं मानव पूँजी निर्माण की अवधारणा का विकास बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ है। मानव पूंजी निर्माण से आशय मानव हेतु ज्यादा से ज्यादा चिकित्सा, शिक्षा, प्रशिक्षण तथा कौशल निर्माण की व्यवस्था करके उसकी योग्यताओं में वृद्धि करना है। इसे जनसंख्या का गुणात्मक सुधार भी कहा जाता है। अतः मानव संसाधन विकास के लिए शिक्षा में नये विचारों व आयामों को शामिल किया गया है।
3.पर्यावरण प्रदूषण जनित समस्याओं के समाधन हेतु – औद्योगीकरण, रासायनिक परिवर्तन, परमाणु ऊर्जा के विकास, रहन-सहन की शैली में बदलाव, जनसंख्या वृद्धि, वनों का विनाश एवं आर्थिक विकास के कारण स्वरूप वातावरण एवं पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर विश्व का ध्यान आकृष्ट करने हेतु सन् 1972 में रटाकहोम में सम्मेलन आयोजित किया गया यह समस्या इतनी विकराल हो गई है कि मानव का अस्तित्व संकटपूर्ण स्थितियों से गुजर रहा है। पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान हेतु शिक्षा प्रणाली में नये विचारों व तकनीकों को शामिल करने की जरूरत है।
4.विशिष्टीकरण की वृद्धि एवं तद्जनित समस्याओं की पूर्ति हेतु – सभ्यता के विकास के साथ ही साथ विशिष्टीकरण को भी बढ़ावा मिल रहा है। विशिष्टीकरण से आशय ज्ञान की शाखा में विशेषज्ञता पाने से है। विभिन्न क्षेत्रों में एवं विषय में शाखा, उपशाखा एवं वशिष्ट अध्ययन का प्रचलित होना है। इसी तरह से शिक्षाशास्त्र की विभिन्न शाखाएँ व उपशाखाएँ विकसित हुई हैं, जैसे विकलांगों के लिए शिक्षा, मंद बालकों के लिए शिक्षा, पिछड़े बालकों की शिक्षा आदि। विशिष्टीकरण की अभिवृद्धि के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली में सामंजस्य नहीं हो पा रहा है। अतः शिक्षा में नवीन आयामों को अंगीकार करने की जरूरत है।
5.वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के अनुरूप शिक्षा प्रणाली – आधुनिक युग विज्ञान का युग कहा जाता है। सारे संसार में तकनीकी व विज्ञान के क्षेत्र में नयी-नयी निरन्तर खोजें व अनुसन्धान हो रहे हैं। पृथ्वी से लेकर अन्तरिक्ष तक विज्ञान के चमत्कार दिखाई देते हैं। वैज्ञानिक उपकरणों, उद्योग, बैंक, घर, कार्यालय, परिवहन एवं व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में उपयोग किया जा रहा है। शिक्षा में कम्प्यूटर, जीरॉक्स व दूरदर्शन के उपकरणों के प्रयोग से क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में इन वैज्ञानिक उपकरणों के रख-रखाव, आगे विकसित करने की दिशा में नयी विधियों व पद्धतियों को शामिल किया जाना आवश्यक संचालन व है। इसलिए तकनीकी व ‘विज्ञान के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों के सन्दर्भ में शिक्षा में नूतन आयामों की जरूरत है।
6.सामाजिक परिवर्तन के अनुरूप शिक्षा – वर्तमान में समाज में विभिन्न प्रकार के बदलाव हो रहे हैं। औद्योगीकरण नगरीकरण व वैश्विक नैकट्य के कारण स्वरूप नवीन प्रकार के समाज तथा सामाजिक मानदण्ड निर्मित हो रहे हैं। स्त्रियों की दशा में सुधार, बाल श्रम उन्मूलन, सामुदायिक विकास कार्यक्रम, ग्रामीण समाज में सुधार आदि कार्यक्रमों को संचालित किया जा रहा है। इन परिवर्तनों व सुधारों के अनुसार शिक्षा प्रणाली को विकसित करने के लिए नवीन विचारों तथा नूतन डायामों को शामिल करना जरूर है।
7.राजगार के अवसरों में वृद्धि हेतु – शिक्षा का लक्ष्य आर्थिक आत्मनिर्भरता को प्राप्त करना है। भौतिकवादी प्रवृत्ति एवं जनसंख्या में तीव्र विकास व आर्थिक आवश्यकताओं में वृद्धि ने शिक्षा के उद्देश्यों में रोजगार के प्रमुख उद्देश्यों को प्रदान किया है। वर्तमान में साधारण जन शिक्षा को निरर्थक समझते हैं यह व्यक्ति को जीविकोपार्जन में सहायक नहीं करती है। इस परिवर्तित मानसिकता में शिक्षा में परिवर्तन जरूरी है जो शिक्षा को रोजगारपरक बनाने में मदद् करे। व्यवसायोन्मुखी व रोजगारपरक शिक्षा की अवधारणा को विकसित करने में नूतन आयामों को शामिल करना आवश्यक है।
8.तीव्र आर्थिक विकास हेतु – वर्तमान में संसार का प्रत्येक राष्ट्र आर्थिक विकास के लिए निरन्तर प्रयत्नशील है। निर्धनता, बीमारी व अज्ञानता मानव के समक्ष गम्भीर समस्याओं के रूप में मौजूद हैं हमारे देश में यह सभी समस्याएँ विकराल रूप में हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए आर्थिक विकास की गति को तीव्र करना आवश्यक है। आर्थिक विकास के लिए शिक्षा को उपयुक्त माना जाता है। क्योंकि आर्थिक विकास के लिए भौतिक पूँजी के साथ-साथ मानवीय पूँजी भी जरूरी है। इसलिए शिक्षा को आर्थिक चुनौती स्वीकार करना हो। इसलिए इसमें नवीन विचारों, नवीन कार्यक्रमों तथा नवीन आयामों को शामिल करना होगा।
9.कल्याणकारी राज्य की स्थापना – भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद लोकतान्त्रिक संसदात्मक शासन प्रणाली को अंगीकृत किया। यह प्रणाली लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करती है। लोकतान्त्रिक संसदात्मक प्रणाली में सबको शिक्षा, अवसरों की समानता, जीवन की न्यूनतम जरूरतों की पूर्ति का आश्वासन प्रदान करती हैं। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने भारत में लोक कल्याणकारी पत्राचार शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा आदि प्रणाली का विकास हुआ है। इन प्रणालियों को शिक्षा के नूतन आयामों के रूप में अंगीकृत किया गया है।
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