शिक्षा निर्देशन का उद्देश्य बताते हुए उसके सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।

शिक्षा निर्देशन के उद्देश्य

शिक्षा निर्देशन का उद्देश्य किसी व्यक्ति के शैक्षिक परिवेश एवं उसमें प्राप्त सम्भावनाओं, अपेक्षाओं एवं विशेषताओं से शैक्षिक निर्देशन का सम्बन्ध होता है। आज हमारे देश के विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में पाठ्यचर्याओं, पाठ्यक्रमों एवं अधिगम के साधनों का प्रावधान किया है, वह अपनी विभिन्नता की दृष्टि से विशेषता रखती है। इसके साथ ही, उनसे लाभ प्राप्त कर सकने वाले विद्यार्थियों की क्षमताओं, योग्यताओं, प्रवणताओं एवं अभिवृत्तियों इत्यादि की उपेक्षा को ध्यान में रखकर भी उनमें भिन्नता दिखलाई देती है।

इस प्रकार शिक्षा एक व्यापक प्रक्रिया है। इसके माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है। बालक के व्यवहार में परिवर्तन करने हेतु विभिन्न विषयों का प्रयोग किया जाता है. सभी बालक सभी दृष्टियों में समान नहीं होते, उनमें विभिताएँ पायी जाती है। इसी कारण आज शैक्षिक निर्देशन की आवश्यकता को अधिक अनुभव किया जा रहा है। शैक्षिक निर्देशन निम्नलिखित उद्देश्य प्रतिपादित किए गए हैं।

लोकतन्त्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।

  1. छात्रों को अपनी योग्यता, प्रवणता एवं रूचि के अनुसार पाठ्यक्रमों के चयन में तथा उनके लिए अपेक्षित तैयारी में सहायता करना।
  2. विद्यार्थियों को, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरों पर आयोजित, विभिन्न प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु अपेक्षित तत्परता व तैयारी के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएँ प्रदान करना।
  3. छात्रों का आत्म अनुदेशन की ओर अग्रसारित होने में सहायता देना।
  4. स्वःअध्ययन की विधियों को प्रयुक्त करने में छात्रों की सहायता करना ।
  5. विद्यार्थियों को अधिकाधिक आत्म-बोध कराना, ताकि वह अपनी क्षमताओं, योग्यताओ. रूचियों तथा न्यूनताओं को जानकर तथा समझकर अपनी आकांक्षाओं के स्तर को यथार्थता के आधार पर निर्धारित कर सके।
  6. विद्यार्थियों को विद्यालयों के अन्दर तथा बाहर प्राप्त अधिगम साधनों तथा सम्प्रेषण के माध्यमों के बारे में बोध गम्यता का विकास करना।
  7. छात्रों के विभिन्न स्तरों पर पाई जाने वाली शिक्षा व्यवस्थाओं, पाठ्यक्रमों एवं विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में जानकारी देना।
  8. अनेक प्रकार की शिक्षा व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में छात्रों को जानकारी प्रदान करना तथा उनमें उपलब्ध विभिन्न विषयों तथा वाणिज्य, विज्ञान इत्यादि हेतु आवश्यक राज्य सेसम्बन्धित नियमों, सूचनाओं तथा क्षमताओं के सम्बन्ध में छात्रों को जानकारी देना।
  9. विद्यालयावरण से सम्बद्ध कार्यक्षेत्र की याता एवं विद्यालय के बाहर सामाजिक वातावरण की यथार्थता में सम्बद्ध अपेक्षाओं के मध्य समायोजन स्थापित करने में विद्यार्थियों कीसहायता करना, जिससे विद्यार्थी के वैयक्तिक जीवन में कम से कम तनाव पैदा हो।
  10. विद्यालय के नवीन परिवेश में सामंजस्य स्थापित करने, विषयों, पाठ्यतोर क्रियाओं, उपयोगी पुस्तकों, हॉबी के चयन करने, अध्ययन की उत्तम आदतों का निर्माण करने भिन्न-भिन्न विषयों में सन्तोषप्रद उन्नति करने, छात्रवृत्तियों के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाएं प्रदान करने एवं विद्यार्थियों से परस्पर मधुर सम्बन्ध स्थापित करने में सहायता करना।
  11. विद्यार्थियों को नवीन शिक्षा तकनीकी से अधिक लाभ उठाने हेतु प्रोत्साहित करना तथा इससे सम्बन्धित परामर्श प्रदान करना।
  12. छात्रों को नवीन पाठ्यक्रमों, नवीन शिक्षण पद्धतियों, नवीन शिक्षा नीतियों एवं अधिगम के साधनों के बारे में पर्याप्त एवं आवश्यक सूचनाएं प्रदान करना।

शिक्षा के निर्देशन के सिद्धान्त (Principles of Educational Guidance)

शिक्षा निर्देशन के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित है

  1. निर्देशन समस्त छात्रों को उपलब्ध होना।
  2. समस्या का समाधान, प्रारम्भ में ही होना,
  3. प्रमापीकृत परीक्षाओं को प्रयुक्त किया जाए.
  4. समुचित एवं सम्बन्धित सूचनाओं का संकलन किया जाए,
  5. छात्र का निरन्तर अध्ययन किया जाए.
  6. विद्यालय एवं अभिभावक के मध्य गहन सम्बन्ध स्थापित करना।

(1) निर्देशन समस्त छात्रों को उपलब्ध होना- निर्देशन सेवाएँ केवल चयनित विद्यार्थियों को ही प्रदान नहीं करनी चाहिए, वरन् ये सेवाएं समस्त छात्रों को उपलब्ध होना चाहिए तभी निर्देशन प्र अपने उद्देश्यों में सफल हो सकता है। जिस विद्यालय मे निर्देशन कार्य चल रहा हो, उस विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं को इस प्रकार संगठित किया जाना चाहिए, जिसमें कोई भी छात्र वंचित न रह जाए।

( 2 ) समस्या का समाधान, प्रारम्भ में ही होना-यदि किसी विद्यार्थी की निर्देशन से सम्बद्ध कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो उसकी समस्या का समाधान तत्काल ही कर देना चाहिए, जिससे समस्या का रूप गम्भीर न हो सके।

(3) प्रमापीकृत परीक्षाओं को प्रयुक्त किया जाए-विद्यार्थियों द्वारा विद्यालय में प्रवेस लेने पर उन पर प्राकृत परीक्षाओं का प्रशासन किया जाए। इन प्रमाणीकृत परीक्षाओं से प्राप्त परिणाॅम के आधार पर, विद्यार्थी की किसमें सफलता के बारे में भविष्यवाणी की जा सकेगी। इसके अतिरिक्त आने वाले समयों पर भी यदि इन परीक्षाओं का प्रयोग किया जाए तो उत्तम होगा।

(4) समुचित एवं सम्बन्धित सूचनाओं का संकलन किया जाए – पर्याप्त मात्रा समुचित एवं सम्बन्धित सूचनाओं के संकलन के अभाव में, शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करने असंभव है। सफल निर्देशन प्रदान करने के लिए पर्याप्त सूचनाओं को संकलित करना आवश्यक है।

(5) छात्र का निरन्तर अध्ययन किया जाए-निर्देशन कहाँ तक सफल हुआ है। यह ज्ञात करने के लिए, विद्यार्थी का व्यवसाय में लग जाने के उपरान्त भी उसका सतत् अध्ययन करना अधिक आवश्यक है अपने व्यवसाय में विद्यार्थी ने सफलता प्राप्त की है अथवा नहीं ? इन्हीं बातों से निर्देशन की सफलता अथवा असफलता को ज्ञान हो जाता है। अतः व्यवसाय मे लगे हुए छात्रों की सफलता तथा असफलता का अध्ययन करना भी अत्यन्त आवश्यक एवं महत्वपूर्ण हैं अनुगामी सेवाओं का उपयोग होता है।

(6) विद्यालय एवं अभिभावकों के मध्य गहन सम्बन्ध स्थापित करना – शैक्षिक निर्देशन का एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धान्त यह है कि विद्यार्थी के विद्यालय एवं अभिभावकों के मध्यम गहन सम्बन्ध स्थापित किया जाए।

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