शिक्षा क्या है? स्पष्ट कीजिए।

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शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन और नियंत्रण का सबसे महत्वपूर्ण साधन कहा जाता है। शिक्षा के द्वारा ही जैविकीय प्राणी को “सामाजिक प्राणी’ बनाया जाता है। समाजीकरण की यह प्रक्रिया व्यक्ति के जन्म से लेकर उसक मृत्यु तक चलती है। शिक्षा का कार्य मनुष्य को उसके पर्यावरण से परिचित कराकर उसके अनुकूल चलने की प्रेरणा देना है। शिक्षा का अर्थ मात्र स्कूल-कॉलेजों से ग्रहण की जाने वाली शिक्षा ही नहीं है, बल्कि किसी भी प्रकार के ज्ञान को, किसी भी स्थान पर कभी भी आत्मसात कर लेना ‘ही शिक्षा है। शिक्षा व्यक्ति को न केवल करणयी और अकरणीय का ज्ञान कराती है, बल्कि उसे विस्तृत सामाजिक जीवन से परिचित कराती है, बल्कि उसे विस्तृत विकसित माना जाता है, जबकि हम शिक्षा को न केवल बौद्धिक स्तर पर ग्रहण कर लेते हैं, बल्कि अपने विचारों तथा व्यवहारों में भी उसे स्थान देते हैं।

संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों के परीक्षण की विवेचना कीजिए।

शिक्षा मात्र समाजीकरण तक ही सीमित नहीं है। इसका अर्थ अत्यन्त व्यापक है। समाज में विपथगामी व्यवहार की स्थिति तब भी आ जाती है, जब व्यक्ति शिक्षा से वंचित रहकर समाज की व्यवस्थाओं को ठीक से समझ नहीं पाता है। जेम्स वेल्टन के अनुसार, “शिक्षा मानव समाज के वयस्क सदस्यों द्वारा आने वाली पीढ़ियों के स्वरूप को अपने जीवन- आदर्शों के अनुरूप ढालने का प्रयास है।’

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