शिक्षण का अर्थ-ज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहा जाता है। अंग्रेजी के शब्द Teaching का पर्याय है। शिक्षण शिक्षा का कार्यकारी पहलू है। शिक्षण का लक्ष्य ज्ञान, अनुभव और कौशल प्रदान करना होता है। शिक्षण को क्रिया शिक्षक एवं शिक्षार्थी के परस्पर विचार-विमर्श या अन्तः क्रिया द्वारा संचालित होती है। इस प्रकार शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें अधिक विकसित व्यक्तित्व कम विकसित व्यक्तित्व के सम्पर्क में आता है प्राप्त करने के लिए व्यवस्था करता है।
शिक्षण की परिभाषाएँ-
शिक्षण की प्रमुख परिभाषायें निम्न हैं।
(1) World Book Encyclopaedia के अनुसार-“शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को ज्ञान, कौशल तथा अभिरुचियों को सीखने या प्राप्त करने
(2) गेज के अनुसार, “शिक्षण एक प्रकार का परस्परिक प्रभाव है जिसका उद्देश्य है दूसरे व्यक्ति के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाना।”
(3) रायन्स के अनुसार, “दूसरों को सीखने के लिये दिशा-निर्देश देने तथा अन्य प्रकार से उन्हें निर्देशित करने की प्रक्रिया को शिक्षण कहा जाता है।”
(4) जेम्स एम. थाइन के अनुसार, “समस्त शिक्षण का अर्थ है सीखने में वृद्धि
(5) क्लार्क के अनुसार, “शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसके प्रारूप तथा संचालन की व्यवस्था इसलिये की जाती है जिससे छात्रों के व्यवहारों में परिवर्तन लाया जा सके।”
(6) एडमंड एमीडन-“शिक्षण एक अन्त: प्रक्रिया है, जिसमें मुख्यतः कक्षा वार्ता ती है, जो शिक्षक व छात्रों के मध्य कुछ परिभाषित की जा सकने वाली क्रियाओं के माध्यम से टित होती है।”
(7) मॉरीसन-“शिक्षण एक परिपक्व व्यक्तित्व तथा कम परिपक्व के मध्य आत्मीय घनिष्ठ सम्बन्ध/सम्पर्क है जिसमें कम परिपक्व को शिक्षा की दिशा की ओर अग्रसित किय जाता है।”
(8) डॉ. एस.पी. कुलश्रेष्ठ के शब्दों में कहा सकता है कि शिक्षण, प्रक्रियाओं को एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को ज्ञान प्रदान करने के लिये शिक्षण के कार्य को सम्पन्न करने के लिये अनेक प्रकार की क्रियायें करता है और छात्रों के व्यवहार में आत्मीयता के साथ वांछित परिवर्तन लाने का प्रयास करता है।
प्राचीन कालीन शिक्षक के महत्त्व की विवेचनात्मक वर्णन कीजिए।
शिक्षण की प्रकृति तथा विशेषताएँ-
उपर्युक्त परिभाषाओं की विवेचना के पश्चात् शिक्षण की निम्नांकित विशेषताएँ परिलक्षित की गर्यो
1. शिक्षण अधिगम की क्रिया को प्रभावशाली तथा व्यवस्थित बनाता है।
- शिक्षण की समस्त प्रक्रियाओं का आधार मनोविज्ञान है।
- शिक्षण के दो प्रमुख अंग हैं- (1) सीखने वाला तथा (2) सिखाने वाला |
- शिक्षण और अधिगम की परिस्थितियों में सम्बन्ध स्थापित करता है।
- शिक्षण का कार्य ज्ञान प्रदान करना है।
- शिक्षण मार्गदर्शन करता है।
- शिक्षण क्रियाशीलता बनाये रखता है।
- शिक्षण का अर्थ अधिगम तथा शिक्षण की समस्त प्रक्रियाओं के संगठन से सम्बन्धित है।
- शिक्षण छात्रों में उत्सुकता जाग्रत करता है।
- शिक्षण कला एवं विज्ञान दोनों ही है।
- शिक्षण एक कौशल युक्त क्रिया है।
- शिक्षण में सांकेतिक, क्रियात्मक तथा शाब्दिक व्यवहार निहित रहते है।
उपर्युक्त परिभाषाओं तथा विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से छात्रों के व्यवहारों में वांछित परिवर्तन लाने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की क्रियाएं सम्पादित की जाती है। इन क्रियाओं के फलस्वरूप शिक्षण और सिखाने वाली परिस्थितियों में सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।
उत्तम शिक्षण की विशेषताएँ :-
अच्छे शिक्षण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं
- अच्छे शिक्षण में वांछनीय सूचनाएं दी जाती है।
- अच्छे शिक्षण में व्यक्ति स्वयं सीखने के लिये प्रेरित होता है।
- अच्छे शिक्षण के लिये प्रभावशाली नियोजन आवश्यक होता है।
- अच्छे शिक्षण में छात्र क्रियाशील बने रहते है।
- अच्छा शिक्षण चुनी हुई बातों का ज्ञान प्रदान करता है।
- अच्छा शिक्षण जनतंत्रीय आदर्शों पर आधारित रहता है।
- अच्छा शिक्षण निर्देशात्मक होता है (आदेशात्मक नहीं)।
- अच्छा शिक्षण छात्र व शिक्षकों के सहयोग पर आधारित होता है।
- अच्छा शिक्षण छात्रों के पूर्व ज्ञान पर आधारित होता है।
- अच्छे शिक्षण में सभी कार्यों, शिक्षण विधियों तथा दशाओं का समावेश होता है।
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