भारत माता के स्वतन्त्रता के इतिहास को जिन शहीदों ने अपने रक्त से लिखा है, जिन शूरवीरों के बलिदानों ने भारतीय जनमानस को सर्वाधिक उद्धिग्न किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवा दिए, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को चकनाचूर कर स्वतन्त्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन देश भक्तों पर मातृभूमि को गर्व है, उनमें भगतसिंह का नाम सर्वोपरि है।
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शहीद भगतसिंह जन्म परिचय एवं शिक्षा-
भगतसिंह का जन्म 27 सितम्बर, 1907 को पंजाब के जिला लायलपुर में बंगा गाँव (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। आपके पिता सरदार किशनसिंह एवं उनके दो चाचा स्वर्णसिंह तथा अजीत सिंह अंग्रेजों के विरोधी होने के कारण जेल में बन्द थे। संयोगवश, जिस दिन भगतसिंह पैदा हुए थे, उसी दिन उनके चाचा जेल से रिहा हो गए थे। इस शुभ घड़ी के मौके पर भगतसिंह के घर में दोहरी खुशी मनाई गई। उसी समय उनकी दादी ने उनका नाम भगत (अच्छे भाग्यवाला) रख दिया था। बाद में आप ‘भगतसिंह’ कहलाने लगे। स्कूल के तंग कमरों में बैठना आपको अच्छा नहीं लगता था। आप कक्षा छोड़कर खुले मैदानों में घूमने निकल पड़ते थे तथा आजादी चाहते थे। प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् भगतसिंह को 1916 में लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल में भरती करा दिया गया। वहाँ आप लाला लाजपतराय तथा सूफी अम्बा प्रसाद जैसे देशभक्तों के सम्पर्क में आए।
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शहीद भगतसिंह देशभक्ति की भावना-
एक देशभक्त परिवार में जन्म लेने के कारण भगतसिंह को देशभक्ति तथा स्वतन्त्रता का पाठ विरासत में मिला था। 3 अप्रैल, 1919 में ‘रोलट एक्ट’ के विरोध में सम्पूर्ण भारत में प्रदर्शन हो रहे थे तथा इन्हीं दिनों ‘जलियाँवाला बाग’ काण्ड भी हुआ। इनका समाचार सुन भगतसिंह लाहौर से अमृतसर पहुँचे। वहाँ उन्होंने शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की तथा रक्त से भीगी मिट्टी को एक बोतल में रख लिया जिससे सदा यह बात स्मरण रहे कि उन्हें अपने देश तथा देशवासियों के अपमान का बदला लेना है।
c उसी समय लाला लाजपतराय ने लाहौर में ‘नेशनल कॉलेज’ की स्थापना की थी। भगतसिंह ने भी इसी कॉलेज में प्रवेश ले लिया। वहाँ आप यशपाल, सुखदेव, तीर्थराम आदि क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आए। सन् 1928 को ‘साइमन कमीशन’ का विरोध करने के लिए लाला लाजपतराय के नेतृत्व में एक जुलूस कमीशन का विरोध शान्तिपूर्वक कर रहा था। किन्तु यह विरोध अंग्रेजों से सहन नहीं हुआ और उन्होंने लाठी चार्ज करवा दिया। इस लाठी चार्ज में लालपतराय घायल हो गए तथा 17 नवम्बर, 1928 को लालाजी चल बसे। यह सब देखकर भगतसिंह के मन में विद्रोह की ज्वाला और भी तीव्र हो गई। लालाजी की हत्या का बदला लेने के लिए ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपल्बिकन एसोसिएशन’ ने भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, जय गोपाल तथा आजाद को यह कार्य सौंपा। इन क्रान्तिकारियों ने साठडर्स को मारकर लालाजी की मौत का बदला लिया तथा इस घटना से भगतसिंह और भी अधिक लोकप्रिय हो गए।
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हिन्दुस्तान समाजवादी गणतन्त्र संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी की सभा में ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ तथा ‘डिस्प्यूट्स बिल’ पर चर्चा हुई। इसका विरोध करने के लिए भगतसिंह ने केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंकने का प्रस्ताव रखा। इस कार्य को करने के लिए भगतसिंह अड गए कि यह कार्य वह स्वयं करेंगे, हालाँकि आजाद इसके विरुद्ध थे। इस कार्य में ‘बटुकेश्वर दत्त’ ने भगतसिंह का साथ दिया।
12 जून, 1929 को सेशन जज ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 307 के अन्तर्गत उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इन दोनों देशभक्तों ने सेशन जज के निर्णय के विरुद्ध लाहौर हाईकोर्ट में भी अपील की। यहाँ भगतसिंह ने भाषण दिया, परन्तु हाईकोर्ट के सेशन जज ने भी उनकी सजा को मान्यता दी। गजाद ने भगतसिंह को छुड़ाने की पूरी कोशिश की। तीन महीनों तक अदालत की कार्यवाही चलती रही। अदालत ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 129 के अन्तर्गत उन्हें अपराधी घोषित करते हुए 7 अक्टूबर सन् 1930 को 68 पृष्ठीय निर्णय दिया, जिसमें भगतसिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। इस निर्णय के विरुद्ध नवम्बर 1930 में प्रिवी परिषद् में अपील भी की गई, परन्तु यह अपील 10 जनवरी, 1931 को रद्द कर दी गई।
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शहीद भगतसिंह को फाँसी की सजा-
फाँसी का समय प्रातःकाल 24 मार्च, 1931 को निश्चित हुआ था पर सरकार ने प्रातःकाल के स्थान पर संध्या समय तीनों देशभक्त क्रान्तिकारियों को एक साथ फाँसी देने का निर्णय लिया। फाँसी लगाने से पूर्व जेल अधीक्षक ने भगत सिंह से कहा, “सरदार जी। फाँसी का समय हो गया है, आप तैयार हो जाइए।” उस समय भगतसिंह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। वे बोले, “ठहरो। एक क्रान्तिकारी दूसरे क्रान्तिकारी से मिल रहा है और वे जेल अधीक्षक के साथ चल पड़े।”
जब सुखदेव तथा राजगुरु को भी फाँसी स्थल पर लाया गया तो तीनों ने अपनी भुजाएँ एक दूसरे के साथ बाँध दी। तीनों एक साथ गुनगुनाए-
“दिल से निकलेगी, न मरकर भी वतन की उफलत, मेरी मिट्टी से भी खूश्बू-ए-वतन आएगी ।”
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