Friends, आज के इस आर्टिकल के माध्यम से आप सभी छात्र-छात्राओं के लिए हम व्यापार चक्र के निम्नलिखित कारण क्या हैं उसके बारे में पूरी जानकारी नीचे शेयर करेंगे। तो आइये जानते हैं की व्यापार चक्र के कारण क्या हैं, व्यापार चक्र के कारण निम्न हैं-
1. स्थायी परिवर्तन (Secular Fluctuations)
मौसमी तत्वों के अतिरिक्त कुछ तत्व स्थायी होते हैं जो आर्थिक जीवन में स्थायी अथवा दीर्घकालीन परिवर्तन लाते हैं। जनसंख्या में वृद्धि प्राविधिक अथवा तकनीकी (Technical) प्रति, नवीन आविष्कार अथवा खोज तथा भूमि सुधार आदि के कारण अर्थतन्त्र में मौलिक परिवर्तन हो जाते हैं। यह परिवर्तन अनेक बार निश्चित योजनाओं के फलस्वरूप भी होते हैं।
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2. आकस्मिक परिवर्तन पैदा करने वाले कारण (Unexpected Flucuations)
ये परिवर्तन आकस्मिक होते हैं एवं इनकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। ये परिवर्तन अकाल, बाढ़ सूखा भूकम्प आदि कारणों से उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी युद्ध अथवा राजनीतिक विवादों से भी ये कारण उपस्थित हो जाते है। इससे अर्थव्यवस्था में असन्तुलनकारी दशाएँ पैदा हो जाती हैं एवं मूल्य माँग तथा पूर्ति की व्यवस्था बिगड़ जाती है और निश्चित अवधि के लिए अर्थव्यवस्था में अवसाद का दौर आ जाता है, इन कारणों के निराकरण के बाद अर्थव्यवस्था में पुनः सुधार होने लगता है।
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3. चक्रीय परिवर्तन (Cyclical Fluctuations)
उपरोक्त तीनो तत्वों के अतिरिक्त एक अन्य तत्व ‘चक्रीय तत्व’ के नाम से विख्यात है। यह तत्व बहुत नियमित बताया गया है। और अर्थशास्त्रियों का मत है कि प्रत्येक मन्दी के पश्चात सामान्य व्यवस्था सामान्य व्यवस्था के पश्चात तेजी पुनः सामान्य व्यवस्था तथा पुनः मन्दी एक निश्चित क्रम है जिसका निरन्तर चलना अवश्यम्भावी है। इस क्रम को ही व्यापार चक्र अथवा व्यवसाय चक्र (Trade Cycle or Business cycle) के नाम से पुकारा जाता है।
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उपर्युक्त तीन प्रकार के परिवर्तनों में अर्थशास्त्रियों का सबसे अधिक ध्यान चक्रीय परिवर्तन की ओर गया है क्योंकि अन्य तत्व या तो बहुत कम प्रभावशाली होते है अथवा उनका प्रभाव केवल क्षणिक होता है। यहाँ तक कि दीर्घकालीन अथवा स्थायी तत्व भी सम्पूर्ण परिवर्तन धीरे-धीरे उत्पन्न करते हैं अतः उनका प्रभाव भी विशेष गम्भीर नहीं होता। इसके विपरीत, चक्रीय परिवर्तन (Cyclical Flucuations) इतने वेग एवं शक्ति से आते हैं कि एक तो सम्पूर्ण अर्थतन्त्र हिल उठता है और अनेक व्यापारिक एवं औद्योगिक संस्थान धराशायी होने लगते हैं। सन् 1930-34 को भीषण मन्दी ने यूरोप तथा अमेरिका के अनेकानेक फलते-फूलते व्यवसायों को देखते-देखते मिट्टी में मिला दिया था।