व्यवसायिक निर्देशन की परिभाषा दीजिए ।

व्यवसायिक निर्देशन की परिभाषा – ‘व्यवसाय- निर्देशन’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1 मई 1908 में फ्रैंक पारसन्स (Frank Parsons) ने एक संक्षिप्त रिपोर्ट में किया। परन्तु पारसन्स ने इस शब्द की कोई विशेष तथा उल्लेखनीय परिभाषा नहीं दी थी। व्यवसाय निर्देशन के इतिहास का अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि व्यवसाय निर्देशन की सर्वप्रथम व्यवस्थित रूप में व्याख्या ‘नेशनल वोकेशनल गाइडेंस एसोसिएशन’ ने अपनी एक रिपोर्ट में सन् 1924 में की। इसमें कहा गया है-‘किसी व्यवसाय को चुनने, उसके लिए आवश्यक तैयारी करने, उसमें नियुक्ति पाने तथा वहाँ प्रगति करने के लिए सूचना, अनुभव एवं राय देना ही व्यवसाय निर्देशन है।’

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अपनी पुस्तक (Appraising Vocational Fitness) में सुपर ने व्यावसायिक निर्देशन की परिभाषा देते हुए कहा है- ‘व्यावसायिक निर्देशन व्यक्तियों को व्यवसायों में समायोजित होने में सहायता करता है तथा मानवीय शक्ति को प्रभावोत्पादक ढंग से उपयोग कर सामाजिक अर्थव्यवस्था को सरलतम ढंग से चलाने में सुविधाएँ प्रदान करता है।’ परन्तु सुपर अपनी इस परिभाषा की स्वयं ही आलोचना करते हुए कहता है कि उपर्युक्त परिभाषा में तो व्यवसाय निर्देशन के केवल कार्य बताये है तथा इसमें अधिक महत्व तो व्यक्ति-साफल्य पर दिया गया है। व्यवसाय निर्देशन में वास्तविक ध्यान व्यक्ति की अभिरूचियों, मूल्यों तथा क्षमता इत्यादि पर दिया गया है, अर्थात् व्यक्ति को अपनी रूचियों को व्यक्त करने, योग्यताओं को प्रयोग करने, मूल्यों को प्राप्त करने एवं भावात्मक आवश्यकताओं को तृप्त करने का अवसर दिया जाय।

सन् 1949 में अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (L.L.O.) ने व्यवसाय निर्देशन की परिभाषा देते हुए कहा- “व्यक्ति के गुणों तथा उनका व्यावसायिक अवसरों के साथ सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुये व्यक्ति को व्यवसाय चयन और उसमें प्रगति से सम्बन्धित समस्याओं को हल करने में ही जाने वाली सहायता ही व्यावसायिक निर्देशन है।”

परन्तु प्रश्न उठता है कि व्यवसाय निर्देशन क्या एक सहायता मात्र है, इससे अधिक इसका कोई कार्य नहीं है? व्यवसाय निर्देशन वास्तव में देखा जाय तो इससे कहीं अधिक है, इसका क्षेत्र अत्यन्त महान है।

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