वैदिक काल में शिष्य के गुरु और गुरु के शिष्य के प्रति कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिए।

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वैदिक काल में शिष्य के गुरु कर्त्तव्यों

वैदिक काल में गुरु शिष्य सम्बन्ध पारस्परिक कर्त्तव्यों पर आधारित था। छात्र अपने गुरु के प्रति निम्न कर्त्तव्यों का पालन करते थे

  1. प्रातः काल उठकर गुरु के चरण स्पर्श करना ।
  2. पूजा स्थान की सफाई तथा आवश्यक सामग्री की व्यवस्था।
  3. भिक्षाटन।
  4. गार्यो को चराना।
  5. गुरु की आज्ञा का पालन करना।
  6. गुरु गृह के कार्यों को करना।
  7. शिक्षा की समाप्ति पर सामर्थ्य के अनुसार गुरु दक्षिणा देना।

प्राचीन कालीन शिक्षा व्यवस्था और मुख्य उद्देश्य पर प्रकास डालिए ?

गुरु के शिष्य के प्रति कर्त्तव्यों

प्राचीन काल या वैदिक काल में गुरु भी अपने शिष्यों की बहुत चिन्ता किया करते थे तथा निम्न दायित्वों का निर्वाह करते थे

  1. शिष्यों के रहन-सहन तथा भरण-पोषण की व्यवस्था करना।
  2. छात्रों के स्वास्थ्य की चिन्ता तथा आवश्यकता होने पर उपचार की व्यवस्था करना।
  3. शिष्यों के चरित्र विकास पर ध्यान देना।
  4. उनकी जिज्ञासा को शान्त करना।
  5. उनकी समस्याओं का समाधान करना।
  6. शिष्यों की बुरी आदतें छुड़ाना।
  7. आदर्श गुणों का विकास करना।
  8. जीवन की समस्याओं का सामना करने योग्य बनाना।

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