विद्यालय का बाल विकास में योगदान
परिवार के बाद विद्यालय यह संस्था है जहाँ बालक के शारीरिक मानसिक, सामाजिक, भावात्मक तथा आर्थिक विकास की आशा की जाती है। विभिन्न परिवारों के आकार, समूह में रहकर, सुनियोजित ढंग से विद्यालय में बालक अपना विकास करते हैं। विद्यालय एक सक्रिय और औपचारिक संगठन है जहाँ शिक्षक और विद्यार्थी में प्रत्यक्ष अन्तः क्रिया होती है। इसमें शिक्षक और विद्यार्थी एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। प्राचीनकाल में परिवार शैशवावस्था तथा बाल्यावस्था की शिक्षा का उत्तरदायित्व निभाते थे लेकिन वर्तमान समय इन अवस्थाओं की भी जिम्मेदारी विद्यालय पर पड़ गयी है। अतः औपचारिक शिक्षा के अंतर्गत स्वस्थ की शिक्षा दी जाती है।
पूर्ण जीवन की तैयारी के उद्देश्य से आप क्या समझते हैं?
प्रत्येक बालक को समझना, उसमें छिपी हुई शक्तियों को पहचानना, उन्हें प्रेरणा देना, यि विकसित करना तथा उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करना शिक्षा का लक्ष्य है। विद्यालय बालकों को वह वातावरण प्रदान करता है जहाँ स्वयं ही बालक शिक्षित हो जाता है।
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