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विद्याधर चन्देल की उपलब्धियों की विवेचना कीजिए।

विद्याधर चन्देल की उपलब्धिया

विद्याधर चन्देल (सन् 1017-1029 ई.)- गण्ड की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र विद्याधर उत्तराधिकारी हुआ। विद्याधर लगभग 1017 ई. में चन्देल सिंहासन पर बैठा। चन्देल वंश को शिखर पर पहुँचा देने का श्रेय विद्याधर को ही है। इन असीर ने इसे बीदा के नाम से पुकारा है। इसके अनुसार वह अपने समय का भारत का सबसे शक्तिशाली राजा था। कीर्तिवर्मन के देवगढ़ अभिलेख से विदित होता है कि चतुर्दिक दिशाओं में विद्याधर की ख्याति थी और अनेक नरेश उसके सामने नतमस्तक थे। विद्याधर अपने समय का सबसे शक्तिशाली शासक था और उसके शासनकाल में चन्देल साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। दुर्भाग्यवश इस सम्राट के शासनकाल का कोई भी लेख प्राप्त नहीं है। और इसके शासनकाल का इतिहास जानने के लिए मुस्लिम इतिहासकारों के विवरण और बाद में चन्देल नरेशों के शिलालेखों पर निर्भर रहना पड़ता है। मुस्लिम लेखों से पता चलता है कि भोज विद्याधर चन्देल की पूजा गुरु के समान करता था। अभिलेखों से पता चलता है कि विद्याधर ने कलचुरि नरेश गांगेय देव को अपनी अधीनता मानने को बाध्य कर दिया था। विद्याधर चन्देल के शासनकाल की सबसे महत्वपूर्ण घटना तुर्क आक्रमणकारी महमूद गजनवी का भारत पर आक्रमण था। महमूद के इस आक्रमण का मुस्लिम इतिहासकारों ने विस्तार से वर्णन किया है। इन्हीं इतिहास के विवरणों में हमें विद्याधर चन्देल के इतिहास को जानने में सहायता मिलती है तथा पता चलता है कि तत्कालीन नरेशों में केवल विद्याधर ही ऐसा नरेश था जिसने अपनी वीरता और कूटनीति से महमूद का सामना किया और उसके सामने घुटने नहीं टेके।

तुर्कों से संघर्ष

विद्याधर चंदेल एक यशस्वी एवं देशभक्त नरेश था। उसने तुर्क आक्रमणों का डटकर मुकाबला किया। यह एक ऐसी चट्टान था, जिसे बर्बर तुर्क तोड़ न सके यद्यपि मुसलमान इतिहासकार केवल महमूद गजनवी की ही प्रशंसा करते हैं, फिर भी यदि हम सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि विद्याधर ही एक ऐसा राजा था, जिसने भीषण तुर्क आक्रमण के समय भी अपने राज्य को सुरक्षित रखा।

सन् 1018 ई. में जब महमूद ने कन्नौज पर आक्रमण किया, तो कन्नौज नरेश राज्यपाल बिना किये ही भाग निकला और कन्नौज बर्बर तुर्कों के हाथों लुट गया। देशभक्त विद्याधर ने प्रतिहार युद्ध नरेश राज्यपाल के इस कर्म को देशद्रोह के समान समझा और भारतीय राजाओं का एक संघ बनाकर उसने राज्यपाल की हत्या कर दी और उसके पुत्र त्रिलोचनपाल को उत्तराधिकारी बनाया। मुसलमान लेखक इब्न-अल-अवीर, दूबकुण्ड अभिलेख (वि. सं. 1145) एवं एक अन्य चन्देल लेख से राज्यपाल की हत्या की जानकारी होती है।

निश्चय ही राज्यपाल की हत्या से महमूद ने अपना अपमान समझा होगा। 1019 ई. में उसने कन्नौज पर पुनः आक्रमण किया और विद्याधर द्वारा बिठाये गये त्रिलोचनपाल को पराजित किया। इसके पश्चात् उसने विद्याधर के ऊपर आक्रमण किया परन्तु दुर्भाग्यवश इस आक्रमण के परिणाम के विषय में भारतीय साक्ष्य में कोई जानकारी नहीं होती है। मुसलमान लेखकों के विवरण में इतना अधिक विरोधाभास है कि उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। मुसलमान लेखक इब्न-उल-असीर का कथन है कि रात्रि के समय युद्ध बन्द हो गया और रात्रि में वीदा (विद्याधर) चुपचाप निकल भागा। निजामुद्दीन का कथन है। कि नन्द (विद्याधर) की विशाल सेना को देखकर महमूद घबड़ा गया, उसने ईश्वर से प्रार्थना की। जिस रोज उसने ईश्वर से प्रार्थना की नन्द (विद्याधर) बिना युद्ध किये भाग निकला। ऐसा प्रतीत होता है कि महमूद विद्याधर को पराजित न कर सका और उसकी विशाल सेना को देखकर घबड़ा गया। अतः जितनी सफलता उसे मिली, उसी में उसने सन्तोष किया और गजनी प्रदेश वापस लौट गया। कनिंघम का कथन सत्य प्रतीत होता है कि महमूद अपनी विजय के विषय में निश्चित न था इसीलिए गजनी लौट गया।

महमूद गजनी प्रदेश तो लौट गया, परन्तु इस अनिर्णायक युद्ध से वह बहुत चिन्तित था। 1022 ई. में विद्याघर को पराजित करने के उद्देश्य से, महमूद ने पुनः आक्रमण किया। महमूद ने कई दिनों तक कालिंजर के किले पर घेरा डाल दिया, परन्तु उसे सफलता न मिली। अन्त में महमूद एवं विद्याधर में सन्धि हो गयी और दोनों नरेशों ने एक-दूसरे को उपहार भेंट किया। पाठक का कथन सत्य प्रतीत होता है। कि विद्याघर के जीवन की सबसे बड़ी सफलता थी कि जहाँ महमूद के विजयी हमलों की आंधी में भारत के सभी राजा-महाराजा उड़ गये। वह अकेला स्तम्भ की तरह खड़ा रहा और तुर्क उसके गढ़ कालिंजर के चन्देलों की शक्ति का भेदन न कर सके। डॉ. रमेश चन्द्र मजूमदार का कथन है कि सुल्तान को बिना किसी लाभ के वापस लौटना पड़ा और अन्ततोगत्वा उसने विद्याधर से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किया तथा उसे एक भारतीय नरेश होने का गौरव प्राप्त हुआ, जिसने सुल्तान महमूद के विजयी जीवन को रोका और क्रूर विजेता द्वारा बर्बरतापूर्ण नष्ट किये जाने से अपने साम्राज्य की रक्षा की।

सेन वंश का प्रारम्भिक इतिहास बताइये।

विद्याधर का अन्य राजाओं से सम्बन्ध

विद्याधर चन्देल का समकालीन शासकों से सम्बन्ध का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

परमार एवं कलचुरि वंश से सम्बन्ध– विद्याधर का समकालीन परमार नरेश भोज था । विद्याधर ने अपने सामन्त कच्छपात राजा कीर्तिराज की सहायता से भोज की शक्ति को रोक दिया। भोज चन्देल नरेश विद्याधर की उपासना गुरू के समान करता था।

कलचुरि नरेश गांगेय देव (कलचूरि चन्द्र) विद्याधर का समकालीन था। एक चन्देल अभिलेख विदित होता है कि ‘भोजदेव और कलचुरिन्द्र भयभीत होकर शिष्य की भाँति युद्ध कला के पण्डि (विद्याधर) की उपासना करते थे।’ अतः गांगेय देव भी विद्याधर की अधीनता को स्वीकार करता था।

प्रतिहारों से सम्बन्ध- इब्न- असीर का कथन है कि भारत का एक राजा जो महमूद से पराजि हुआ था, अब दीदा की सेवा करता है एवं रक्षा की भीख मांगता है। यहाँ पराजित नरेश से तात्पर्य प्रतिहार नरेश राज्यपाल के पुत्र त्रिलोचनपाल से हैं।

विद्याधर चन्देल का मूल्यांकन – विद्याधर चन्देल एक महान शासक था वह कुशल सेनानायक और कूटनीतिज्ञ व्यक्ति था उसने न केवल चन्देल साम्राज्य की रक्षा की बल्कि उसका विस्तार भी किया। विद्याधर की सबसे महान उपलब्धि महमूद गजनवी के आक्रमण को रोकना था उस समय जहाँ महमूद की सेना भारत के बड़े बड़े शासकों को पराजित कर रही थी वहीं विद्याधर ने महमूद की अविजित सेना के सामने घुटने नहीं टेके और उसका जमकर मुकाबला किया और चन्देल साम्राज्य की रक्षा की। इससे स्पष्ट है कि विद्याधर एक वीर, साहसी और योग्य शासक था।

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