लौकिकीकरण का अर्थ एवं कारण Meaning and causes of secularization

लौकिकीकरण सांस्कृतिक परिवर्तन की वृहत्तम कोटि के अन्तर्गत परिवर्तन के एक विशिष्ट वर्ग को निरूपित करता है। इसका मतलब यह नहीं है कि इसमें (लौकिकीकरण में) धर्म के स्थापित विश्वास के प्रति अस्वीकृति अथवा इसकी साख समाप्त करने जैसी कोई बात है। हालांकि यह विचारों में धार्मिक प्रभुत्वं, विश्वास एवं व्यवहार से एक प्रकार की मुक्ति की क्रिया अवश्य है। लौकिकीकरण धर्म का प्रतिस्थापन (अलौकिक में विश्वास जो मानवीय विचार एवं क्रिया को संचालित करता है) तर्क अथवा दलील द्वारा करता है। लौकिकता धार्मिक सहिष्णुता को एक ऐहिक अथवा लौकिक नीति की भाँति समाविष्ट करती है, गोरे (Gore) कहता है “लौकिकीकरण स्वयं अधार्मिक नहीं भी हो किन्तु यह ऐसी नीति अवश्य है जो अधार्मिक है।

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लौकिकीकरण व्यवहार अथवा क्रिया के निदेशक की भाँति बौद्धिकता अथवा तार्किकता की दृढ़ स्वीकृति पर निर्भर करता है।” श्रीनिवास (Srinivas) धार्मिक प्रथाओं को समाप्त करने, समाज के विभिन्न पक्षों में बढ़ते विभेदीकरण उसके इस परिणाम के साथ जो कि समाज के आर्थिक, राजनैतिक, वैधानिक एवं नैतिक पक्षों की एक-दूसरे से पृथकता बढ़ा रहा है और बौद्धिकता जिसमें आधुनिक परम्परागत विश्वास एवं विचार का स्थान लिया जाता है, की तरह लौकिकीकरण को रेखांकित करते हैं। लोमिस (Lomis) (1971 : 303-11) लौकिकीकरण का सन्दर्भ भारतीय परिप्रेक्ष्य में जाति व्यवस्था एवं पवित्रता से सम्बन्धित मानक से विचलन की भाँति है।

सामाजिक समस्याओं के संदर्भ में समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण

लौकिकीकरण का कारण

लौकिकीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

  1. आधुनिक शिक्षा प्रणाली।
  2. समाज सुधार आन्दोलन
  3. यातायात व सन्देशवाहन के साधनों का विकास
  4. सामाजिक विधान।
  5. औद्योगीकरण।
  6. नगरीकरण।
  7. पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता हुआ प्रभाव।
  8. राजनैतिक संगठनों का योगदान।

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