लार्ड कर्जन की शिक्षा नीति –
सर्वप्रथम लॉर्ड कर्जन ने भारतीय शिक्षा के विभिन पहलुओं की सूक्ष्म जाँच करने के बाद अपनी शिक्षा पद्धति को 11 मार्च, 1904 को एक ‘सरकारी प्रस्ताव के रूप में प्रकाशित करवाया। इस प्रस्ताव में सर्वप्रथम तत्कालीन भारतीय शिक्षा के विभिन्न दोषों का विश्लेषण किया गया और इसके पश्चात् शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार के लिये अमूल्य सुझाव प्रस्तुत किये गये। प्रस्ताव में गुणात्मक दृष्टि से तत्कालीन भारतीय शिक्षा में निम्नलिखित दोष बताये गये हैं-
- याहाँ विद्यार्थियों का उद्देश्य शिक्षा प्राप्त कर नौकरी प्राप्त करना मात्र होता है।
- अंग्रेजी भाषा को प्रमुख स्थान देकर भारतीय भाषाओं की उपेक्षा की गई है।
- भारतीय शिक्षा अव्यावहारिक है और पाठ्यक्रम पूर्णरूपेण साहित्यिक है।
- परीक्षाओं को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया जाता है।
- शिक्षा में विद्यार्थियों की बुद्धि के विकास की अपेक्षा स्मृति के विकास पर अधिक जोर दिया जाता है।
उपर्युक्त दोषों को दृष्टिगत रखते हुए ही कर्जन ने मार्च 1904 को शिक्षा के सभी क्षेत्रों में सुधार हेतु सरकारी नीति घोषित की जिसकी बातें निम्नलिखित थी
- प्राथमिक शिक्षा की ओर बहुत कम ध्यान दिया गया और उसके विकास के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं किये गये थे। प्राथमिक शिक्षा का विकास करना सरकार का प्रमुख कर्तव्य होना चाहिये।
- प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में अंग्रेजी को नहीं सम्मिलित करना चाहिए। इस स्तर पर भारतीय भाषाओं की शिक्षा पर ही अधिक बल दिया जाना चाहिये। अंग्रेजी की शिक्षा 13 वर्ष की आयु के पश्चात् ही दी जानी चाहिये।
- माध्यमिक विद्यालयों का शिक्षण स्तर ऊंचा उठाना चाहिये नवीन शिक्षालयों को मान्यता एवं सहायता अनुदान देने में कड़ाई करनी चाहिये, जिससे अवांछनीय स्कूलों की स्थापना न हो सके।
- विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की शिक्षा का स्तर ऊंचा किया जाना चाहिये। उच्च शिक्षा का उद्देश्य केवल सरकारी नौकरी प्राप्त करना नहीं होना चाहिये।
करते इस प्रकार लॉर्ड कर्जन ने अपने प्रस्ताव में तत्कालीन भारतीय शिक्षा के दोषों का सत्य चित्रण हुए शिक्षा प्रसार हेतु प्रशंसनीय सुझाव भी दिये थे, परन्तु जिस विधि से यह सुधार करना चाहता था। उससे शिक्षित भारतीयों के मस्तिष्क में गम्भीर सन्देह उत्पन्न हो गया और वे इसमें छिपी चाल की आशंका करने लगे। परन्तु इससे लार्ड कर्जन का शिक्षा जगत को योगदान कम नहीं हो जाता है।
भारतीय शिक्षा को कर्जन की देन
लॉर्ड कर्जन ने शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों में जो सुधार किये, उसके लिये भारतवासी सदैद अनुग्रहीत रहेंगे। उन्होंने भारतीय विश्वविद्यालय आयोग की नियुक्ति करके और ‘भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम’ (1904) को पारित करवाकर उच्च शिक्षा के स्तर का उन्नयन किया। लॉर्ड कर्जन की भारतीय शिक्षा को जो मुख्य देन है उसे हम निम्नलिखित रूप से क्रमबद्ध कर सकते हैं
सम्प्रेषण क्षेत्र का विस्तार बताइए?
- केन्द्रीय शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इससे शिक्षा की नीति को लागू करना और शिक्षा को सुव्यवस्थित ढंग से क्रियान्वित करना सम्भव हुआ।
- प्राथमिक शिक्षा में संख्यात्मक वृद्धि और गुणात्मक उन्नयन के लिये आर्थिक सहायता की धनराशि बढ़ाई गई। इससे प्राथमिक शिक्षा में संख्यात्मक वृद्धि हुई और गुणात्मक उन्नयन हुआ।
- माध्यमिक शिक्षा के विस्तार और उन्नयन के लिये आर्थिक सहायता की धनराशि में वृद्धि की गई। इससे उसका प्रसार हुआ। साथ ही माध्यमिक विद्यालयों को मान्यता देने में कड़ाई की गई, इससे उसके स्तर में सुधार हुआ।
- लॉर्ड कर्जन ने पहली बार भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हेतु अलग से विचार किया, अलग से भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (1904) लागू किया और उसके लागू होने से विश्वविद्यालय के प्रशासन में सुधार हुआ। उनकी शैक्षिक गतिविधियाँ बढ़ी। महाविद्यालयों के स्तर में सुधार हुआ और इस प्रकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ।
- भारत एक कृषि प्रधान देश है। लॉर्ड कर्जन पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत में कृषि शिक्षा को अपना केन्द्र-बिन्दु बनाया। उन्होंने प्रत्येक प्रान्त में कृषि विभाग की स्थापना करने की योजना प्रस्तुत की और बिहार में कृषि अनुसन्धान संस्थान की स्थापना की। इतना ही नहीं अपितु प्रारम्भ से ही कृषि शिक्षा की व्यवस्था पर बल दिया। इससे कृषि शिक्षा और कृषि उत्पादन का विकास होना स्वाभाविक था।
- लॉर्ड कर्जन की इस क्षेत्र में बड़ी देन यह रही है कि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा के विकास को धार्मिक शब्द हटाकर हल किया। उन्होंने केवल नैतिक शिक्षा पर ही बल दिया और उसके लिये पुस्तकीय ज्ञान पर नहीं, विद्यालयों की उच्च परिपाटी, अनुशासन और शिक्षकों के चरित्र और सद्व्यवहार पर बल दिया।
- कर्जन ने माध्यमिक शिक्षा को भी उन्नत करने हेतु प्रयास किया इसके लिये उसने गैर सरकारी स्कूलों को भी सहायता अनुदान दिया।
- उन्होंने माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षण का माध्यम मातृभाषा घोषित की।
- विश्वविद्यालय शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिये कर्जन ने भारतीय विश्वविद्यालय आयोग गठित किया और भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित करवाया। इसके फलस्वरूप विश्वविद्यालय का शिक्षा के क्षेत्र में उन्नयन हुआ।
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