रोजगार के प्रतिष्ठित सिद्धान्त में ‘से’ का बाजार नियम एवं बचत के सम्बन्ध

‘से’ का नियम एवं बचत (Say’s Law and Saving) : ‘से’ का बाजार नियम के अनुसार अर्थव्यवस्था में कुल व्यय की दरें इतनी पर्याप्त होती हैं जिससे सभी साधनों का पूर्ण रोजगार प्राप्त हो जाता है। यदि अर्थव्यवस्था में कोई परिवार अपनी समस्त आय का उपभोग न करके कुछ बचा लेता है तो ऐसी स्थिति में ‘से’ का नियम पूर्ण रूप से कार्यशील नहीं होता क्योंकि बचत के बराबर वस्तुएँ बिना बिके रह जायेंगी, जिससे उत्पादन कम होगा और आय तथा रोजगार का स्तर कम हो जायेगा।

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परन्तु प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का मत है कि इस प्रकार की बचतों से पूर्ण रोजगार की स्थिति को प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होती है क्योंकि लोगों द्वारा जितना बचाया जाता है अर्थात् बचत-विनियोग के होता है। उससे अर्थव्यवस्था में कुल व्यय में कमी नहीं होती है। उत्पादक यदि बचत के बराबर पूँजीगत वस्तुओं का उत्पादन करते हैं तो रोजगार उत्पादन तथा आय में किसी प्रकार की कमी नहीं होती है। उदाहरण के लिए यदि कोई परिवार अपनी आय का 15 प्रतिशत बचत करता है जिससे उत्पादक ऋण लेकर पूंजीगत वस्तुओं को क्रय करता है या मशीनों, कारखानों इत्यादि में लगा देता तो उत्पादन आय एवं रोजगार में कमी नहीं आती है।

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प्रश्न यह उठता है कि बचत सदैव विनियोग के बराबर क्यों होती है? इस सम्बन्ध में तपादित अर्थशास्त्रियों का मत था कि ब्याज की दर में लोच (Elasticity) के कारण बचत एवं विनियोग सदैव बराबर होते हैं। यदि अर्थव्यवस्था में बचत की मात्रा बढ़ जाती है तो ब्याज दर कम जो जाती है। ब्याज दर में कमी होने से अधिक विनियोग किया जाता है और अधिक बचत हतोत्साहित होती है। ब्याज की दर तब तक कम होती जायेगी जब तक सम्पूर्ण अतिरिक्त बचतों का विनियोग नहीं होता जाता है। इस प्रकार ब्याज दर में लोच के कारण बचत एवं विनियोग बराबर होता है।

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