प्रस्तावना-समय-समय पर भारत माता की गोद में अनेक महान विभूतियों ने आकर अपने अद्भुत प्रभाव से सम्पूर्ण विश्व को आलोकित किया है। राम, कृष्ण, महावीर, नानक, दयानन्द, विवेकानन्द आदि ऐसी ही महान विभूतियाँ हैं जिनमे से महात्मा गाँधी का नाम सर्वोपरि आता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के कर्णधार तथा सच्चे अर्थों में स्वतन्त्रता सेनानी थे। युद्ध एवं क्रान्ति के इस युग भारतवर्ष ने दुनिया के रास्ते से अलग रहकर में गाँधी जी के नेतृत्व में सत्य एवं अहिंसा रुपी अस्त्रों के साथ स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी तथा ब्रिटिश शासन को भारत से समूलोच्छेद कर दिया। इन चारित्रिक विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक भारतवासी उन्हें प्यार से ‘बापू’ कहता है। विश्व विख्यात वैज्ञानिक आइस्टीन के शब्दों में “आने वाली पीढ़ियों को आश्चर्य होगा कि ऐसा विलक्षण व्यक्ति देह रूप में कभी इस पृथ्वी पर रहता था। “ राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी ने उन्हें ‘युगस्रष्टा’ तथा ‘युगद्रष्टा’ कहा है।’
गबन उपन्यास के कथानक का उल्लेख कीजिए।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जन्म परिचय व शिक्षा-दीक्षा-
महात्मा गाँधी का पूरा नाम ‘मोहनदास करमचन्द गाँधी’ था। गाँधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 ई. को गुजरात राज्य के ‘पोरबन्दर’ नामक स्थान पर हुआ था। आपके पिता श्री करमचन्द गाँधी किसी समय पोरबन्दर के दीवान थे, फिर वे राजकोट के दीवान भी बने। आपकी माता श्रीमति पुतलीबाई धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। गाँधी जी के चरित्र निर्माण में उनकी धर्म परायण माता का विशेष योगदान है। गाँधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबन्दर में हुई थी। विद्यालय में गाँधी जी एक साधारण छात्र थे तथा लजीले स्वभाव वाले थे। हाई स्कूल में अध्ययन करते समय ही लगभग तेरह वर्ष की आयु में गाँधी जी का विवाह ‘कस्तूरबा’ से हो गया। सन् 1885 में उनके पिता का देहान्त हो गया। सन् 1887 में हाई की परीक्षा पास करने के पश्चात् आप उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए ‘भावनगर गए। वहाँ से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् कानूनी शिक्षा प्राप्त करने गाँधी जी इंग्लैण्ड गए। सन् 1891 में आप बैरिस्ट्री पास करके भारत लौट आए। उनकी अनुपस्थिति में उनकी माता जी का भी देहावसान हो गया ।
दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के कार्य-
स्वदेश लौटकर गाँधी जी ने मुम्बई में वकालत शुरु कर दी। पोरबन्दर की एक व्यापारिक संस्था ‘अब्दुल्ला एण्ड कम्पनी’ के मुकदमे की पैरवी करने गाँधी जी को दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने देखा कि गोरे अंग्रेज भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार करते थे और उनको अपना गुलाम मानते थे। यह सब देखकर गाँधी जी का मन क्षुब्ध हो उठा। वहाँ पर गाँधी जी को भी अनेक अपमान सहने पड़े। एक बार उन्हें रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से नीचे उतार दिया गया, जबकि उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकट था। अदालत में जब वे केस की पैरवी करने गए तो जज ने उनसे पगड़ी उतारने के लिए कहा किन्तु गाँधी जी जैसा आत्मसम्मानी व्यक्ति बिना पगड़ी उतारे बाहर चले गए।
महात्मा गाँधी जी का राजनीति में प्रवेश-
दक्षिण अफ्रीका से लौटकर गाँधी जी ने राजनीति में भाग लेना आरम्भ कर दिया। सन् 1914 के प्रथम युद्ध में गाँधी जी ने अंग्रेजों का साथ इसलिए दिया क्योंकि अंग्रेजों ने गाँधी से वादा किया था कि यदि वे युद्ध जीत गए तो भारत को आज़ाद कर देंगे, परन्तु अंग्रेज अपनी जुबान से मुकर गए। युद्ध में बिजयी होने पर अंग्रेजों ने स्वतन्त्रता के स्थान पर भारतीयों को ‘रोलट एक्ट‘ तथा ‘जलियांवाला बाग काण्ड‘ जैसी विध्वंसकारी घटनाएँ पुरस्कारस्वरूप प्रदान की। सन् 1919 तथा 1920 में गाँधी जी ने आन्दोलन आरम्भ किया। सन् 1930 में गाँधी जी ने ‘नमक कानून’ का विरोध किया। उन्होंने 24 दिन पैदल यात्रा करके ‘दाण्डी’ पहुँचकर स्वयं अपने हाथों से नमक बनाया। गाँधी जी के स्वतन्त्रता संग्राम में देश के प्रत्येक कोने से देशभक्तों ने जन्म भूमि भारत की गुलामी की बेड़ियो को तोड़ने के लिए कमर कस ली। बालगंगाधर तिलक, गोखले, लाला लाजपतराय, सुभाषचन्द्र बोस आदि ने गाँधी जी का पूरा साथ दिया। सन् 1931 ई. में वायरसराय ने लंदन में आपको गोलमेज कांफ्रेन्स में आमन्त्रित किया। वहाँ आपने बड़ी विद्धता से भारतीय पक्ष का समर्थन किया। गाँधी जी ने पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए सत्याग्रह की बात प्रारम्भ की। सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ तथा गाँधी जी सहित सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। सन् 1944 में इन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। समस्त वातावरण केवल आजादी की ध्वनि से गूँजने लगा। अंग्रेज सरकार के पाँव उखड़ने लगे। अंग्रेज सरकार ने जब अपने शासन को समाप्त होते देखा तो अंततः 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता सौंप दी।
उपन्यास तथा कहानी में अंतर Difference between Novel and Story
गाँधीवादी सिद्धान्त-

गाँधी जी सत्य तथा अहिंसा जैसे सिद्धान्तों के पुजारी थे। ये गुण उनमें बचपन से ही विद्यमान थे। गाँधी जी ने स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल पर भी जोर दिया था। वे चरखा कातकर स्वयं अपने लिए वस्त्र तैयार करते थे। गाँधी जी ने मानव को मानव से प्रेम करना सिखाया। उन्होंने इसीलिए विदेशी वस्तुओं की होली जलाई थी। इसके अतिरिक्त दलित तथा निम्न वर्गीय लोगों के लिए भी गाँधी जी के मन में विशेष प्रेम था। उन्होंने छूआछुत का कड़ा विरोध किया था तथा अनूसूचित जातियों के लिए मन्दिरों तथा दूसरे पवित्र स्थानों में प्रवेश पर रोक को समाप्त करने पर विशेष बल दिया था। इस प्रकार गाँधी जी सच्चे अर्थों में एक परोपकारी व्यक्ति थे। उनके सम्बन्ध में किसी कवि की पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं-
चल पड़े जिधर दो पग डग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि, पड़ गए कोटिदृग उसी ओर।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की मृत्यु –

30 जनवरी, 1948 ई. को संध्या के समय प्रार्थना सभा में नाथूराम गोडसे ने उन पर गोलियाँ चला दी। तीन बार ‘राम, राम, राम’ कहने के बाद गाँधी जी ने इस नश्वर शरीर का परित्याग कर दिया। इस दुखःद अवसर पर नेहरू जी ने कहा था, “हमारे जीवन से प्रकाश का अन्त हो प्यारा बापू, हमारा राष्ट्रपिता अब हमारे बीच नहीं है।
अभिसमय की परिभाषा। ब्रिटिश शासन पद्धति के प्रमुख अभिसमयों का वर्णन।
उपसंहार-
हमारे ‘बापू’ मानवता की सच्ची मूर्ति थे ऐसे विरले इंसान सदियों में एक बार पैदा होते हैं। गाँधी जी ने तो मानवता की सेवा की थी। वे नरम दल के नेता थे। हरिजनों के उद्धार के लिए उन्होंने ‘हरिजन संघ’ की स्थापना की थी। मद्य निषेध, हिन्दी-प्रसार, शिक्षा सुधार के अतिरिक्त अनगिनत रचनात्मक कार्य किए थे। महात्मा गाँधी, नश्वर शरीर से नहीं, अपितु यशस्वी शरीर से अपने अहिंसावादी सिद्धान्तों, मानवतावादी दृष्टिकोणों तथा समतावादी विचारों से आज भी हमारा सही मार्गदर्शन कर रहे हैं। गाँधी जी के अद्भुत व्यक्तित्व का चित्रांकन कविवर सुमित्रानन्दन पन्त ने इस प्रकार किया है-
तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन, हे अस्थिशेष । तुम अस्थिहीन, तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल हे चिर पुराण । तुम चिर नवीन ।