राज्यवर्धन की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।

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राज्यवर्धन की उपलब्धियों पर प्रकाश – थानेश्वर नरेश प्रभाकरवर्धन की पत्नी यशोमती से दो पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन तथा एक कन्या राज्यश्री उत्पन्न हुई। राज्यवर्धन एक वीर योद्धा था परन्तु अत्यन्त भावुक था। हर्षचरित से पता चलता है कि जिस समय राज्यवर्धन हूणों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए उत्तरी-पश्चिमी सीमा की ओर गया था। हर्ष भी अश्वारोही सेना के साथ उसके पीछे-पीछे गया। कुरंग नामक राजदूत से पिता के गम्भीर रूप से बीमार होने की सूचना सुनकर हर्ष तुरन्त अपनी राजधानी वापस लौट आया किन्तु प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो गयी राज्यवर्धन जब थानेश्वर वापस आया तो उसने पिता को मृत एवं सम्पूर्ण नगर को शोक में निमग्न पाया। राज्यवर्धन पिता की मृत्यु के कारण सन्यास ग्रहण करना चाहता था परन्तु उसी समय पता चला कि जिस दिन राजा की मृत्यु हुई उसी दिन मालवा के दुष्ट शासक ने महाराज ग्रहवर्मा की हत्या कर दी राज्यश्री कन्नौज के कारागार में डाल दी गयी है तथा उसके पैरों में बेड़ियाँ पहना दी गयी है। यह भी ज्ञात हुआ है कि वह दुष्ट यहाँ की सेना को नेताविहीन जानकर इस देश पर भी आक्रमण करने का विचार रखता है। 605 ई. में इन विपत्तियों ने उसे शस्त्र ग्रहण करने के लिए मजबूर कर दिया। उसने 605 ई. में सिंहासन ग्रहण किया तथा शीघ्र ही दस हजार अश्वारोहियों की एक सेना तैयार की तथा ममेरे भाई भण्डि को साथ लेकर मालवराज को दण्ड देने के लिए चल पड़ा।

हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का आगमन महत्वपूर्ण घटना है। स्पष्ट कीजिए।

ज्ञात होता है। कि हर्ष भी उसके साथ जाने को उत्सुक था किन्तु राज्यवर्धन ने कुटुम्ब तथा राज्य की सुरक्षा के लिए उसे राजधानी में रहने को कहा तथा एक सेना उसके नेतृत्व में छोड़ दिया हर्षचरित तथा मधुवन और बखेड़ा के लेखों से पता चलता है कि वहाँ बड़ी आसानी से राज्यवर्धन ने देवगुप्त को मार डाला। परन्तु देवगुप्त के मित्र गौडनरेश शशांक ने धोखा देकर राज्यवर्धन की जीवन लीला समाप्त कर दी। पिता की मृत्यु के पश्चात् राजसत्ता ग्रहण करने के लिए तैयार न होना एवं गौड़ नरेश शशांक पर क्षणिक भर में विश्वास करना उसकी चारित्रिक कमजोरियों के उदाहरण है।

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