युवा तनाव का कारण। अथवा युवा सक्रियता या असंतोष के कारण तथा प्रकृति की पूरी जानकारी।

युवा तनाव अथवा युवा सक्रियता- वर्तमान में संसार के अनेक देशों में युवा तनाव, सक्रियता या छात्र असंतोष देखने को मिलता है। युवकों ने विश्व के अनेक देशों में महत्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका निभायी है। अनेक देशों में युवकों ने समय-समय पर सरकार की नीतियों का विरोध किया है और राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण योग दिया है। वर्तमान में भारत में युवा सक्रियता अनेक प्रकार की निराशाओं, असंतोष और दिशाहीनता से ग्रसित है। यहां समय-समय पर होने वाले प्रदर्शन, आंदोलन, तोड़-फोड़, घेराव, आदि युवा सक्रियता या छात्र असंतोष की ही अभिव्यक्ति हैं। इन्हें भ्रान्त तकों के नाम पर उचित सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है। युवा असंतोष के लिए अनेक शब्दों जैसे- युवा तनाव, युवा असंतोष या विद्यार्थी असंतोष जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। यहां युवा असंतोष के नाम पर अनुशासनहीनता, नियमहीनता, तोड़ फोड़, आगजनी और पथराव तक को उचित माना जाता है। इस रूप में युवा असंतोष एक सामुदायिक समस्या है।

कार्ल मार्क्स का रेखीय सिद्धान्त अथवा सामाजिक परिवर्तन का रेखीय सिद्धान्त।

युवा वर्ग अपनी निराशा और असंतोष को हिंसात्मक या अहिंसात्मक प्रदर्शनों के द्वारा व्यक्त करता है। इस युवा वर्ग के द्वारा सार्वजनिक रूप से व्यक्त किये जाने वाले असंतोष को ही युवा असंतोष के नाम से जाना जाता है। युवा वर्ग अपने आप में शांति और साहस महसूस करता है, इसलिए वह अपने असंतोष और आक्रोश को प्रदर्शनों, हड़तालों, उपद्रवों तथा आंदोलनों के रूप में व्यक्त करता है। ये सभी युवा असंतोष की अभिव्यक्तियां हैं। युवा असंतोष को युवकों में व्याप्त उस असन्तोष के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसकी अभिव्यक्ति हिंसात्मक या अहिंसात्मक आंदोलनों के रूप में होती है।

किसान आन्दोलन से आप क्या समझते है? किसान आन्दोलन के लिए कौन से कारक उत्तरदायी है?

बाल अपराध क्या है? बाल अपराध के कारण,व् अपराध और बाल अपराध में अंतर

युवा सक्रियता या असंतोष के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

शैक्षणिक कारक (Educational Factors) – युवा सक्रियता या असंतोष के लिए शिक्षण व्यवस्था से संबंधित कई कारक उत्तरदायी हैं, उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं:

(i) शिक्षण संस्थाओं में पर्याप्त सुविधाओं का अभाव- शिक्षण संस्थाओं में पुस्तकालयों एवं प्रयोगशालाओं की अपर्याप्त सुविधा, अध्यापकों का अभाव, वांछित विषयों का न होना, छात्रावास की कमी, वहां खाने-पीने व रहने की व्यवस्था की कमी, खेलकूद की सुविधाओं का अभाव, केण्टीन की उचित सुविधा का न होना, आदि भी छात्रों में असंतोष पैदा करता है और वे इन सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए आंदोलन का सहारा लेते हैं।

अनुसूचित जनजातियों की वर्तमान समस्याएँ।अनुसूचित जनजातियों की समस्याएँ

(ii) परीक्षा एवं प्रवेश प्रणाली- शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश संबंधी नीतियां कक्षा में पढ़ने का माध्यम, परीक्षा प्रणाली में होने वाले परिवर्तन तथा पास होने के नियमों में हेर-फेर, आदि भी छात्र असंतोष के लिए उत्तरदायी हैं। परीक्षाओं का समय पर न होना या उनकी तिथियां आगे बढ़ाने, अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी माध्यम द्वारा पढ़ने, पूरक परीक्षा एवं उत्तीर्ण होने के नियमों को उदार बनाने, बिना परीक्षा दिये उत्तीर्ण होने एवं सामूहिक नकल तक के लिए भारतीय विद्यार्थियों ने आंदोलन किये हैं।.

(iii) शिक्षा व्यक्ति का समाजीकरण करने के उद्देश्य में भी असफल रही है- स्वतंत्र भारत में शैक्षिक प्रणाली का प्रमुख लक्ष्य राष्ट्रीय एकीकरण, समानता, प्रजातंत्र तथा राष्ट्रीय विकास के प्रति आस्था के मूल्यों की स्थापना एवं उनके आंतरिकीकरण को रखा गया, लेकिन शैक्षणिक प्रणाली विद्यार्थियों के मन में इन मूल्यों को नहीं बैठा सकी है। यदि यह कहा जाय कि भारतीय शिक्षण संस्थाओं में आलस्य और नैराश्य का वातावरण पाया जाता है तो अतिशयोक्ति नही होगी। ऐसी स्थिति में यह कहा जा सकता है कि लक्ष्य के अनुरूप व्यक्ति का समाजीकरण करने में शैक्षणिक प्रणाली असफल रही है।

अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन-जातियों के बारे में पूरी जानकारी

(iv) पीढ़ियों का अंतर- नयी या युवा पीढ़ी और पुरानी या वृद्ध पीढ़ी के बीच पाया जाने वाला अंतर युवा असंतोष के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी है। पुरानी और नवीन पीढ़ी के मूल्यों, विश्वासों, अभिवृत्तियों और व्यवहार प्रतिमानों में काफी अंतर पाया जाता है। इसका मूल कारण दो पीढ़ियों में समय अंतर है। पुरानी पीढ़ी के लोगों का समाजीकरण और उनके व्यक्तित्व का विकास स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व जिस पर्यावरण में हुआ, आज वह काफी कुछ बदल चुका है। वर्तमान में सामाजिक परिवर्तन की गति काफी तीव्र है। आज सामाजिक संरचना में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखायी पड़ते हैं। अब प्रदत्त के बजाय अर्जित प्रास्थितियों का महत्व बढ़ता जा रहा है। आज का नवयुवक अपने प्रयत्नों से आगे बढ़ना चाहता है, कुछ स्वतंत्रता चाहता है। अपने लिए स्वयं कुछ निर्णय लेना चाहता है। वह उदार और मानवतावादी दृष्टिकोण से सोचने लगा है। आधुनिक शिक्षा, पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृत ने उसके जीवन-मूल्यों को बहुत कुछ प्रभावित किया है। औद्योगिकरण और नगरीकरण की प्रक्रियाओं ने भी व्यक्ति को आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र और सामाजिक दृष्टि से उदार बनाया है। सहशिक्षा तथा स्त्री-पुरुषों के विविध क्षेत्रों में साथ-साथ काम करने से रोमांस पर आधारित प्रेम विवाहों का महत्व बढ़ा है।

बाल-अपराधियों को कैसे सुधारा जा सकता हैं ? बाल अपराध रोकने के सरकारी प्रयासों की पूरी जानकारी।

युवा सक्रियता या युवा असंतोष की प्रकृति (Nature of Youth activism or Youth Unrest)

  1. आज का युवक अपने चारों ओर की परिस्थितियों और अपने अधिकारों के प्रति सजग है। वह आज अपनी आकांक्षाओं को पूर्ण होते हुए नहीं देखता है। शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात भी वह कोई नौकरी प्राप्त नहीं कर पाता है, उसे अभावमय स्थिति में अपना जीवन बिताना पड़ता है। वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त भ्रष्टाचार को देखता है, भाई-भतीजावाद और जातिवाद को देखता है। वह आर्थिक दृष्टि से अपने को असुरक्षित महसूस करता है, अपने भविष्य को अंधकारमय पाता है। साथ ही आज का युवक वर्ग दिशाहीन है। योग्य नेतृत्व का अभाव भी युवा सक्रियता की दिशाहीनता के लिए काफी कुछ जिम्मेदार है।
  2. भारत में युवा असंतोष युवकों में व्याप्त असंतोष, निराशा, तनाव, शिक्षण संस्थाओं में पायी जाने वाली कमियों, सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार एवं राजनीतिक दलों एवं नेताओं की स्वार्थपरता का परिणाम है।
  3. आज का युवक समाज के आदर्श नियमों (Norms) को अपने में आत्मसात नहीं कर सका है। वह सामाजिक मूल्यों को भी अपने व्यक्तित्व का अंग नहीं बना सका है। ऐसी स्थिति में वह समाज की मान्य परम्पराओं की चिंता नहीं करते हुए अपने स्वयं के स्वार्थों की पूर्ति पर अधिक ध्यान देने लगता है। वह अपने उद्देश्यों की पूर्ति का महत्व देता चाहे उसे व्यवहार के अमान्य तरीके ही क्यों न अपनाने पड़े।
  4. युवा असंतोष एक ऐसी स्थिति को व्यक्त करता है जिसमें परिवार, पड़ोस और शिक्षण संस्था का नियंत्रणकारी प्रभाव समाप्त होता हुआ दिखायी पड़ता है। युवा वर्ग प्रमुखतः अपने परिवार, मित्र-समूह और शिक्षण संस्थाओं से संबंधित होता है। ये सभी आज युवकों के व्यवहारों को नियंत्रित करने में असमर्थ रहे हैं।
  5. युवा असंतोष में एक बात दिखायी पड़ती है कि आज का युवा वर्ग अपने प्रत्येक प्रकार के व्यवहार को भ्रान्त तर्कों के आधार पर उचित बताता है। प्रत्येक वस्तु और व्यवहार को अपने ही दृष्टिकोण से देखना और समझना चाहता है, न कि उनके वास्तविक रूप में।
  6. युवा असंतोष की अभिव्यक्ति हिंसात्मक अधिक और अहिंसात्मक कम होती है। आये दिन तोड़-फोड़, लूटपाट, आगजी और हत्याओं की घटनाएं समाचार पत्रों में पढ़ने एवं देखने सुनने को मिलती है। इनके पीछे साधारणतः युवा शक्ति ही होती है। प्रशासन की परिस्थितियों से निपटने और कानून को तोड़ने वाले युवकों के खिलाफ आवश्यक कार्यवाही करने की असमर्थता विद्यार्थी सक्रियता को बढ़ाने में विशेष योग देती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top