श्री लाल बहादुर शास्त्री-कभी-कभी साधारण परिवार व साधारण परिस्थितियों में पला बड़ा इन्सान भी अपने असाधारण कृत्यों से सभी को आश्चर्यचकित कर देने की क्षमता रखता है। ऐसे ही चमत्कारिक व्यक्ति थे। युग पुरुष श्री लाल बहादुर शास्त्री। 29 मई, 1964 को पं. जवाहरलाल नेहरू जी के आकस्मिक निधन के उपरान्त 2 जून, 1964 को कांग्रेस के संसदीय दल द्वारा सर्वसम्मति से लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमन्त्री चुना गया। 9 जून, 1964 ई. को आपने प्रधानमन्त्री पद की शपथ ग्रहण की तथा केवल 18 माह तक प्रधानमन्त्री के रूप में कार्य कर सबका हृदय जीत लिया।
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लाल बहादुर शास्त्री जन्म-परिचय एवं शिक्षा-
श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 ई. में वाराणसी के ‘मुगलसराय’ नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता श्री शारदा प्रसाद एक शिक्षक थे। जब लालबहादुर मात्र डेढ़ वर्ष के थे, तभी उनके पिता का देहावसाज हो गया। आपकी माता श्रीमति रामदुलारी देवी जी ने आपका लालन पालन किया। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा वाराणसी के ही एक स्कूल में हुई। लाल बहादुर का बचपन बहुत निर्धनता तथा तंगी में व्यतीत हुआ तभी तो उन्हें विद्यालय जाने के लिए गंगा नदी को पार करना पड़ता था। नाव वाले को देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे।
यद्यपि लाल बहादुर जी के पिता जी उन्हें अपनी स्नेह-छाया में पाल-पोसकर बड़ा नहीं कर पाए थे, तथापि वे उन्हें ऐसी दिव्य प्रेरणाओं की विभूति प्रदान कर गए जिसके सहारे शास्त्री जी एक सेनानी की भाँति जीवन के समस्त कष्टों को अपने चरित्र-बल से पद-दलित करते चलते गए। एक बार सन् 1921 में महात्मा गाँधी अपने ‘असहयोग आन्दोलन’ के सिलसिले में वाराणसी आए हुए थे, तो एक सभा को सम्बोधित करते हुए गाँधी जी ने कहा था,
“भारत माता दासता की कड़ी बेडियो में जकड़ी हुई है। आज हमें जरूरत है उन नौजवानों की जो इन बेड़ियों को काट देने के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर देने को तैयार हो । “
गाँधी जी
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तभी एक सोलह-सत्रह वर्ष का नौजवान भीड़ में से आगे आया, जिसके माथे पर तेज तथा हृदय में देशप्रेम था। यह लड़का लाल बहादुर ही था। स्कूली शिक्षा छोड़कर लाल बहादुर स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। साम्राज्यवादी में सरकार ने उन्हें जेल में डलवा दिया तथा शास्त्री जी को ढाई वर्षों तक कारावास में रहना पड़ा। जेल की सजा काटने के बाद शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ में प्रवेश ले लिया तथा पढ़ाई आरम्भ कर दी। सौभाग्य से लाल बहादुर को काशी विद्यापीठ में महान व योग्य शिक्षकों, जैसे-डॉ. भगवानदास, आचार्य जे. बी. कृपलानी, सम्पूर्णानन्द तथा श्री प्रकाश आदि से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर प्राप्त हुआ। यही से उन्हें ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त हुई एवं तभी से वे ‘लाल बहादुर शास्त्री’ कहलाने लगे। यहाँ पर चार वर्ष तक लगातार शास्त्री जी ने ‘संस्कृत’ तथा ‘दर्शन’ का अध्ययन किया। शिक्षा समाप्ति के पश्चात् शास्त्री जी का विवाह ‘ललिता देवी’ के साथ हुआ, जो शास्त्री जी के ही समान सर व सीधे स्वभाव की जागरुक नारी थी।
देश-सेवा के कार्य व राजनीति में प्रवेश
शास्त्री जी का सम्पूर्ण जीवन कड़े संघर्षों की लम्बी कहानी है। शास्त्री जी के हृदय में निर्धनों, दलितों तथा हरिजनों के लिए बहुत दया व करुणा भाव थे तथा वे इन पिछड़े तथा उपेक्षित वर्ग को सदा ऊपर उठाना चाहते थे। हरिजनोद्वार में शास्त्री जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए शास्त्री जी को लोक सेवा संघ का सदस्य बनाया गया और उन्होंने इलाहाबाद को अपनी कार्यवाहियों का केन्द्र बनाया। शास्त्री जी सात सालों तक इलाहाबाद म्यूनिसिपल बोर्ड के सदस्य रहे तथा चार वर्ष तक इलाहाबाद इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के महासचिव तथा सन् 1930 से 1936 तक अध्यक्ष रहे। सन् 1937 ई. में शास्त्री जी उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य निर्वाचित किए गए। शास्त्री जी ने सन् 1942 में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा कारावास का दण्ड भोगा। सन् 1946 में सात प्रान्तों में कांग्रेस की अन्तरिम सरकार बनी। इस समय उत्तर प्रदेश में पंडित गोविन्द बल्लभपंत ने इन्हें अपना सभा सचिव नियुक्त किया तथा अगले ही वर्ष शास्त्री जी को उत्तर प्रदेश का गृहमन्त्री नियुक्त किया गया।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सन् 1952 ई. में जब आम चुनाव हुए तो पं. जवाहर लाल नेहरू ने इन्हें चुनाव तैयारियों के लिए दिल्ली बुलवा लिया तथा चुनाव के पश्चात् इन्हें स्वतन्त्र भारत का प्रथम रेलमन्त्री नियुक्त किया, किन्तु दुर्भाग्यवश इनके कार्यकाल में एक रेल दुर्घटना हो गई जिसका नैतिक दायित्व वहन करते हुए इन्होंने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। तत्पश्चात् सन् 1956-57 में वे देश के संचार व परिवहन मन्त्री बने तथा इसके बाद वाणिज्य एवं रधोग मन्त्री भी बने। सन् 1961 के अप्रैल मास में उन्हें स्वराष्ट्र मन्त्रालय का क. र्यभार सौंपा गया। शास्त्री जी ने सभी पदों का कार्य भार बड़ी कुशलता तथा निष्ठा से सम्भाला।
धनी व्यक्तित्व के स्वामी-
लाल बहादुर शास्त्री जी एकदम सरल एवं सादे स्वभाव के व्यक्ति थे। इसी कारण जब उन्होंने प्रधानमन्त्री का पदभार ग्रहण किया तो लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि शास्त्री जी प्रधानमन्त्री पद की जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभा सकेंगे। किन्तु केवल 18 माह के कार्यकाल ने शास्त्री जी को भारतीय इतिहास की महान विभूतियों में से एक के रूप में पहचान दिलवाई।
शास्त्री जी का स्वभाव शान्त, गम्भीर, मृदु व संकोची किस्म का था, इसी कारण वे जनता के दिलों में राज्य कर सके थे। उनकी अद्वितीय योग्यता तथा महान नेतृत्व का परिचय हमें 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय देखने को मिला। पाकिस्तानी आक्रमण समय सभी भारतीय अत्यन्त चिन्तित थे, किन्तु शास्त्री जी ने बड़ी बहादुरी से इस परिस्थिति का आंकलन किया तथा देश का नेतृत्व किया। उन्होंने इस युद्ध में भारत को जीत दिलाई तथा पाकिस्तानियों को मुँह की खानी पड़ी। उन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों से वीर सैनिकों तथा देश की आम जनता का मनोबल बढ़ाया। एक बार जब भारत में आने वाले अनाज के जहाजों को रोक दिया गया, तब इन्होंने देश के सामने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया। उन्होंने सप्ताह में एक दिन का अन्न छोड़ दिया तथा देश की जनता को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके अतिरिक्त शास्त्री जी ने असम भाषा समस्या, नेपाल के साथ सम्बन्ध सुधार व हजरत बल से चोरी की समस्या आदि समस्याओं का कुशलतापूर्वक समाधान किया।
उपसंहार-
भारत-पाक युद्ध के बाद सोवियत संघ के ताशकन्द में 11 जनवरी, सन् 1966 ई. में समझौते के दौरान शास्त्री जी का निधन हो गया। श्री लाल बहादुर शास्त्री जी की संगठनात्मक शक्ति और लगन ने भारत को सर्वोच्च गौरव प्रदान किया। आज शास्त्री जी तन से हमारे साथ न होते हुए भी हमारे मन व हृदय में निवास करते हैं। निःसन्देह वे एक ऐसे युग पुरुष थे जिन्होंने साधारण परिवार में जन्म लेकर असाधारण कार्य किए तथा प्रत्येक क्षेत्र में अपने चातुर्थ तथा कुशलता के प्रमाण प्रस्तुत किए।
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