मौखरी राजवंश का इतिहास संक्षिप्त में लिखिये।

मौखरी राजवंश का इतिहास – हरहा लेख से विदित होता है कि मौखरि मनु के वंश के राजा अश्वपति परिवार के वंश से सम्बन्धित थे। इस वंश का नाम मौखरि क्यों पड़ा, इस पर विद्वानों में मतभेद है। मौखरि लेखों से प्रतीत होता है कि इनके आदि पुरुष का नाम ‘मुखर’ था कदाचित ‘मुखर’ से ही इस वंश ने अपना नाम मौखरि रख लिया। हर्षचरित में मौखरियों को मुखर कहा गया है।

गुप्तकाल में मौखरि सामन्त के रूप में थे परन्तु गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् मौखरियों ने भी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। छठी शताब्दी में मौखरियों ने कन्नौज में एक राज्य स्थापित कर लिया था। मौखरियों का प्रारम्भिक इतिहास अंधकारमय है। काशी प्रसाद जायसवाल के कथानुसार मौखरि गया जनपद के निवासी थे, जो जाति के वैश्य थे।

राजनीतिक इतिहास- गुप्त काल में दो मौखरि सामन्त थे। एक मौखरि बिहार में तथा दूसरे मौखरि उत्तर प्रदेश में रहते थे। बराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों के लेखों से ज्ञात होता है कि बिहार के मौखरि वंश के तीन राजा थे-प्रथम यज्ञवर्मन द्वितीय, शार्दूलवर्मन तथा तृतीय अनन्तवर्मन । परन्तु इन राजाओं के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। दूसरी शाखा जो उत्तर-प्रदेश में निवास करती थी, उसमें 7 राजा हुए हैं जो निम्नांकित हैं।

कन्नौज का मौखरि वंश

(1 ) हरिवर्मन् – कन्नौज के मौखरि वंश का सर्वप्रथम शासक हरिवर्मन् था। शासक था। हरहा लेख में कहा गया है कि हरिवर्मन् का यश चारों समुद्रों में फैला हुआ था।

(2) आदित्यवर्मन्- आदित्यवर्मन् हरिवर्मन् का पुत्र था। हरिवर्मन् की मृत्यु के पश्चात्आम दित्यवर्मन् राजा बना। वह एक योग्य एवं दूरदर्शी शासक था। उसने अपना विवाह उत्तर गुप्तकालीन राजा हर्षगुप्त की बहन हर्षगुप्ता के साथ किया था। इससे विदित होता है कि इस काल में मौखरि एवं उत्तर गुप्त के बीच पूर्ण सम्बन्ध थे।

( 3 ) ईश्वरवर्मन् -ईश्वरवर्मन् आदित्यवर्मन् का पुत्र था। आदित्यवर्मन की मृत्यु के पश्चात् ईश्वरवर्मन् राजा बना। ईश्वरवर्मन् ने महाराज की उपाधि धारण की थी। ईश्वरवर्मन् ने भी अपना विवाह उत्तर गुप्त कालीन कन्या उपगुप्ता के साथ किया था।

(4) ईशानवर्मन् – ईशानवर्मन् ईश्वरवर्मन् का पुत्र था। हरहा लेख से विदित होता है कि ईश्वरवर्मन् एक स्वतन्त्र शासक हो था इसलिए ‘महाराजा’ के स्थान पर ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की। ईश्वरवर्मन् एक महान विजेता था। हरहा लेख से विदित होता है कि उसने तीन राज्यों पर विजय प्राप्त किया था

  • (अ) आन्ध्र,
  • (ब) शूलिमान तथा
  • (स) गौड़ ।

समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।

हरना लेख में आंध्र विजय का उल्लेख मिलता है, जबकि आंध्र के राजा के पास हज़ारों हाथी थे। इतिहासकारों ने आंध्रों की पहचान पूर्वी दमन के साथ की है। ईश्वरवर्मन् ने द्वितीय विजय शूलिमान पर की थी। शूलिमान कौन थे, इस विषय पर मतभेद है। डॉ0 राय चौधरी इन्हें चालुक्य मानते हैं, जबकि पं० सुधाकर चट्टोपाध्याय श्वेत हूण मानते हैं। तृतीय विजय गौड़ नरेश पर किया था। गौड़ से तात्पर्य बंगाल से है। अफसढ़ अभिलेख से विदित होता है कि ईशानवर्मन ने हणों पर भी विजय प्राप्त की थी। ईशानवर्मन् के शासन काल में मौखरि एवं उत्तर गुप्त के सम्बन्ध बिगड़ गए थे। ईशानवर्मन् एवं कुमारगुप्त के मध्य भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में कुमारगुप्त को विजय प्राप्त हुई थी। ईशानवर्मन् ने 550 ई. से 576 ई. तक शासन किया था।

(5) सर्ववर्मन् – सर्ववर्मन ईशानवर्मन् का पुत्र था। ईशानवर्मन् की मृत्यु के पश्चात् सर्ववर्मन् कन्नौज का शासक हुआ। हरहा लेख में सर्ववर्मन् का उल्लेख भी मिलता है जो ईशानवर्मन् का पुत्र था। सूर्यवर्मन, सर्ववर्मन् का छोटा भाई था। देवबरनार्क लेख से विदित होता है कि सर्ववर्मन् ने ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की थी। सर्ववर्मन् ने भी महाराज की उपाधि धारण की थी।

सर्ववर्मन् ने अपने पिता ईशानवर्मन् के पराजय का बदला उत्तर गुप्त नरेश से लिया था। सर्ववर्मन् ने उत्तर गुप्त कालीन शासक दामोदर गुप्त पर आक्रमण किया था। दामोदर गुप्त युद्ध भूमि पर ही बेहोश हो गया और वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार इस काल में भी मौखरि एवं उत्तर गुप्त के मध्य कट्टरतापूर्ण सम्बन्ध बने हुए थे।

(6) अवन्तिवर्मन्- अवन्तिवर्मन् सर्ववर्मन् का पुत्र था और उसका उत्तराधिकारी था। इस काल में भी उत्तरगुप्त शासक मौखरियों की अधीनता स्वीकार करते थे। अवन्तिवर्मन् ने भी ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की थी। यह भी एक वीर एवं प्रतापी शासक था। बाण के ‘हर्षचरित? से विदित होता है कि- “मौखरि वंश सभी राजाओं का सिरमौर एवं भगवान शंकर के चरण चिन्हों की भाँति समस्त संसार में पूज्य था।”

अवन्तिवर्मन् का पुत्र गृहवर्मन् था, गृहवर्मन् ने 600 ई. से 605 ई. तक शासन किया था। इस समय मौखरि साम्राज्य सोन नदी के पश्चिम तक विस्तृत था। गृहवर्मन् का विवाह थानेश्वर के प्रभाकरवर्धन की पुत्री राज्यश्री के साथ हुआ था। इस विवाह से दोनों वंशों के मध्य अत्यधिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गया। इस वैवाहिक सम्बन्ध से उत्तर गुप्त नरेश देवगुप्त अत्यधिक चिंतित हुआ और उसने गौड़ शासक शशांक से सन्धि कर ली। थानेश्वर नरेश प्रभाकरवर्धन की जैसे ही मृत्यु हुई देवगुप्त ने गृहवर्मन् पर आक्रमण कर दिया। गृहवर्मन् की हत्या कर दी गई उसकी पत्नी राज्यश्री को कैद कर लिया गया। बाँसखेड़ा ताम्रपत्र से विदित होता है कि जैसे ही यह खबर राज्यवर्धन को मिली, वह अपनी बहन की रक्षा के लिए कन्नौज आया, परन्तु धोखे से शिविर में उसकी भी हत्या कर दी गई। ह्वेनसांग के यात्रा विवरण से विदित होता है कि राज्यवर्धन की मृत्यु के पश्चात् हर्षवर्धन गद्दी पर बैठा। उसने अपनी राजधानी कन्नौज बदल दी और कन्नौज में बहन राज्यश्री को साथ बिठा कर उसके प्रशासनिक कार्यों में सहायता देता था।

इस प्रकार गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् मौखरियों ने अपनी कीर्ति पताका फहरायी। मौखरि वंश का अन्तिम शासक गृहवर्मन् ही था। वासुदेव उपाध्याय के अनुसार “छठीं शताब्दी में गंगा की घाटी में मौखरियों के समान कोई शक्तिशाली नरेश न था।”

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