मुस्लिम विवाह का अर्थ-
मुस्लिम विवाह का अत्यधिक महत्व है। इसे ‘निकाह’ कहा जाता है। निकाह मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्री के बीच होने वाला एक पवित्र समझौता है जो कुछ बिना शर्तों के साथ होता है। मुस्लिम विवाह में गवाह (साक्षी) का होना आवश्यक है। मुस्लिम विवाह की परिभाषायें विद्वानों द्वारा मुस्लिम विवाह को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है
मुस्लिम विवाह का अर्थ-इस्लाम में विवाह का अत्यधिक महत्व है। इसे ‘निकाह’ कहा जाता है। निकाह मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम स्त्री के बीच होने वाला एक पवित्र समझौता है जो कुछ बिना शर्तों के साथ होता है। मुस्लिम विवाह में गवाह (साक्षी) का होना आवश्यक है। मुस्लिम विवाह की परिभाषायें विद्वानों द्वारा मुस्लिम विवाह को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है
- मुस्लिम विवाह कानून के अनुसार, “विवाह स्त्री-पुरुष के बीच किया गया वह बिना शर्त समझौता है जिसका उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति तथा बच्चों को वैध रूप प्रदान करना है।
- ” मुल्ला के अनुसार, “विवाह या निकाह एक शिष्ट समझता है, जिसका उद्देश्य बच्चे पैदा करना तथा उनको वैध घोषित करना है।
- ” रोलैण्ड के अनुसार, “मुस्लिम विवाह एक समझौता है, जिसका उद्देश्य लैंगिक सहवास और बच्चों के प्रजनन को कानूनी रूप देना है।”
- हैदखा के अनुसार, “मुस्लिम विवाह एक समझौता है, जिसका उद्देश्य यौन सम्बन् ओं और बच्चों के जन्म को कानूनी रूप देना तथा समाज के हित में पति-पत्नी और उनसे उत्पन्न संतानों के अधिकार एवं कर्त्तव्यों को निर्धारित करके सामाजिक जीवन का नियमन करना है।”
इस प्रकार मुसलमानों में विवाह को विषम लिंगियों के बीच समझौते के रूप में स्वीकार किया गया है।
मुस्लिम विवाह के उद्देश्य
मुस्लिम विवाह के निम्न प्रमुख उद्देश्य हैं
- स्त्री पुरुष के सम्भोग को वैध अधिकार प्रदान करना।
- बच्चों का जन्म एवं पालन-पोषण करना।
- पति-पत्नी के पारस्परिक अधिकारों को स्थायी रूप प्रदान करना।
- बच्चों के उचित पालन-पोषण हेतु बहु- पत्नी विवाह की व्यवस्था।
- एक संविदा के रूप में पति-पत्नी को किसी एक पक्ष द्वारा संविदा की शर्तों का पालन न करने पर तलाक (विवाह विच्छेद) की स्वतंत्रता।
मुस्लिम विवाह की आवश्यक शर्ते
मुस्लिम विवाह के लिए निम्न शर्ते अनिवार्य है अर्थात निम्न परिस्थितियों में ही मुस्लिम विवाह को वैध स्वीकार किया जा सकता है
- हर मुसलमान जो बालिग (व्यस्क) हो, सही दिमाग हो, निकाह के योग्य है। नाबालिग का विवाह संरक्षक की अनुमति से होता है।
- विवाह काजी के सामने कम से कम दो गवाहों के सामने होना चाहिए।
- विवाह के समय लड़की और लड़के की सहमति काजी और गवाहों के समक्ष आवश्यक है।
- लड़की का निकाह पहले तत्पश्चात लड़के का निकाह किया जाना चाहिए।
- लड़के वालों का प्रस्ताव’ और लड़की वालों की ‘स्वीकृति’ दोनों एक साथ एक ही समय होनी चाहिए।
- एक मुस्लिम युवक एक साथ चार स्त्रियों से विवाह कर सकता है लेकिन स्त्री एक वक्त केवल एक हो पुरुष से विवाह कर सकती है।
- इनकी शादियाँ निकट सम्बन्धियों में हो सकती है। ज्यादातर विवाह में ‘दूध’ के सम्बन्ध में बचाव किया जाता है। जैसे-पुत्री, माँ, दादी, नानी, सगे भाई, बहन, सास, अपनी बहन की लड़की भतीजों पुत्रवधू, नातिन आदि में विवाह नहीं हो सकता है।
- दो सगी बहिनें एक व्यक्ति की पत्नियाँ नहीं बन सकती है। लेकिन पत्नि की मृत्यु के बाद उसकी सगी बहन से विवाह हो सकता है।
- ‘इद्दत’ में रहने वाली स्त्रियों से विवाह नहीं किया जाता। इद्दत वह समय है, जब स्त्री को उसके पति ने विच्छेद करने हेतु घाषित कर दिया है। अथवा उसके पति की मृत्यु हो गयी हो। यह अवधि 4 माह 10 दिन की होती है।
- निकाह (विवाह) के प्रतिफल के रूप में लड़के द्वारा लड़की को ‘मेहर’ देना आवश्यक है। इसकी अनुपस्थिति में निकाह पूरा नहीं होता और न पति को सहवास का अधिकार मिल पाता है।
- विवाह के बाद पत्नि के खान-पान खर्चे बीमारी और तमाम जरूरतों का दायित्व पति पर होता है और वह इससे इंकार नहीं कर सकता।
मुस्लिम विवाह की विशेषताएँ-
मुस्लिम विवाह की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित है
- मुस्लिम विवाह पूर्ण रूप से सामाजिक समझौता है। यह एक धार्मिक संस्कार नहीं है।
- मुस्लिम विवाह का उद्देश्य शारीरिक सुख प्राप्त करना और संतानोत्पन्ति है।
- हिन्दू विवाह की तरह मुस्लिम विवाह में स्त्रियों की स्थिति कमजोर नहीं है।
- व्यवहार में मुस्लिम विवाह उसी तरह एक स्थायी संस्था जिस तरह हिन्दू विवाह ।
- मुस्लिम विवाह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह विवाह एक बन्धन नहीं अगर पति-पत्नि का सम्बन्ध बहुत कटु हो गया है तो जीवन दुरूह हो जाता है ऐसी स्थिति में या तो वह पत्नि की हत्या कर देता है या स्वयं को मार लेता है लेकिन मुस्लिम विवाह में विवाह विच्छेद का विकल्प और पति पत्नि एक दूसरे से अलग होकर अपना दूसरा जीवन जी सकते हैं।
- मुस्लिम विवाह के परम्परागत स्वरूप पर तत्कालीन अरबी समाज के विचारों एवं रीति का कुछ प्रभाव रहा है। लेकिन भारत में मुस्लिम विवाह के स्वरूप बदल रहे हैं।
मुस्लिम विवाह के प्रकार-
मुस्लिम विवाह के प्रमुख प्रकार निम्न हैं
- (1) निकाह,
- (2) मुताह,
- (3)फासिद विवाह
(1)निकाह –
निकाह मुसलमानों में सर्वाधिक प्रचलित और स्थायी विवाह है। निकाह पढ़ाने का कार्य काजी, मुल्ला या मौलवी करता है। यह संस्कार दुल्हन के घर होता है। निकाल पढ़ने के पूर्व काजी दो गवाहों को दुल्हन के पास भेजता है जो उसे उसके दूल्हा के बारे में सूचना देते हैं और उसे निकाल पढ़वाने की स्वीकृति माँगते हैं। अपनी स्वीकृति देते समय दुल्हन को निकाह के कागज़ पर दस्तखत करने पड़ते हैं। उसके दस्तखत के प्रमाणी करण के लिए ये गवाह भी उसमें दस्तखत करते हैं। तत्पश्चात इसी प्रकार दूल्हे के भी स्वीकृति और दस्तखत होते हैं। विवाह का प्रस्ताव के समय मेहर की निश्चित रकम का भी जिक्र स्पष्ट रूप से दुल्हन, दूल्हा और गवाहों के समक्ष कर दिया जाता है। दूल्हे द्वारा दुल्हन को मेहर की राशि अदा करना आवश्यक होता है।
(2) मुताह विवाह-
मुताह एक प्रकार से अस्थायी विवाह है, जिसकी अवधि निश्चित होती है। यह पहले से ही तय कर लिया जाता है कि यह विवाह एक दिन, एक महीना, वर्ष या इससे अधिक अवधि तक चलेगा। इस अवधि में स्त्री पुरुष पति-पत्नी की तरह जीवन बितायेंगे, किन्तु विवाह की अवधि समाप्त होने पर, यह विवाह अपने आप टूट जाता है। ऐसे विवाह में भी मेहर की घोषणा करनी पड़ती है। पति-पत्नी चाहे तो ऐसे अस्थायी विवाह को स्थायी रूप प्रदान कर सकते हैं। ऐसे विवाह से उत्पन्न बच्चों को माता-पिता की सम्पत्ति पर अधिकार होता है। यौन सम्बन्ध हो जाने पर दुल्हन को निश्चित मेहर पाने का अधिकार है लेकिन भरण पोषण का अधिकार नही होता। इस प्रकार का विवाह अब देखने को नहीं मिलता।
(3) फासिद विवाह-
फासिद विवाह उस विवाह को कहते है, जो विवाह सम्बन्धीसभी नियमों के पालन के बिना भी सम्पन्न हो गये हो। ऐसे विवाह को अनियमित कह सकते हैं. जैसे- कोई पुरुष पाँचवीं स्त्री या किसी मूर्तिपूजक स्त्री से ब्याह कर ले या विवाह के समय कोई गवाह न हो। ऐसे अनियमित विवाह भी नियमित या सही हो सकते हैं। अगर विवाह सम्बन्धी अनियमितता बादमें दूर कर दी जाय, जैसे पहली चार पत्नियों में से किसी एक को तलाक दे दिया जाये या मूर्तिपूजक स्त्री धर्म बदलकर इस्लाम धर्म कबूल कर ले तो अनियमित विवाह वै 1 विवाह में परिवर्तित हो जाता है।
हिन्दू विवाह का अर्थ एवं परिभाषा का उल्लेख कीजिए।
इस प्रकार मुस्लिम विवाह पति और पत्नि के बीच एक समझौता है और इसकी आवश्यक शर्तें न मानने पर उन दोनों को एक दूसरे से अलग होने (तलाक) का अधिकार है जिससे वह अपना नया जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सकें।