मानव जीवन में शिक्षा के कार्य
- मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति – इस संदर्भ में विवेकानंद जी ने कहा है कि “शिक्षा का कार्य यह ज्ञात करना है कि जीवन की समस्याओं को किस प्रकार हल किया जाय और इसी कारण आधुनिक सभ्य समाज का गम्भीर ध्यान इसी बात में लगा हुआ है। शिक्षा मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं।
- आत्मनिर्भरता की प्राप्ति – मानव जीवन में शिक्षा का एक कार्य व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना है। जो व्यक्ति स्वयं अपने जीवन यापन के भार को उठाने में समर्थ होता है वह समाज पर बोझ नहीं बनता है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, “हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है। जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण होता है मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है बुद्धि का विकास होता है और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।”
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- व्यावसायिक कुशलता की प्राप्ति – मानव जीवन में शिक्षा का एक कार्य छात्रों को व्यावसायिक कुशलता की प्राप्ति में सहायता प्रदान करना है। इससे राष्ट्रीय आय और उत्पादकता में वृद्धि होती है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, “प्रयोगात्मक विषयों में प्रशिक्षित व्यक्ति कृषि और उद्योग के उत्पादन को बढ़ाने में सहायता प्रदान करते हैं। ये विषय सरलता से जीविका प्राप्त करने में सहायक होते हैं। छात्रों को जीविका कमाने में सहायता देना शिक्षा का कार्य है।”