मानकीकृत परीक्षण किसे कहते हैं? इनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

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मानकीकृत परीक्षण की प्रक्रिया से सम्बन्धित तीन प्रमुख पहलूओं को निम्नानुसार समझा जा सकता है

1. परीक्षण सामग्री का मानकीकरण-

जब किसी परीक्षण के प्रारम्भिक रूप के मात्र कुछ व्यक्तियों पर प्रशासित करके अन्तिम रूप से उस परीक्षण हेतु पदों का चयन किया जाता है। जो कि विभेद मूल्य और कठिनता स्तर की दृष्टि से उपर्युक्त होते हैं।

2. परीक्षण विधियों का मानकीकरण-

परीक्षण की अन्तिम रूप से जांच करने के उपरान्त परीक्षण की विधियों का मानकीकृत किया जाता है। इसके अन्तर्गत परीक्षण की प्रशासन विधि उसके लिए निर्देश समय फलांकन की विधि प्रतिदर्श या सैम्पल आदि अन्य महत्वपूर्ण तत्वों का निर्धारण किया जाता है।

3. निष्कर्षो का मानकीकरण-

यह परीक्षण मानकीकरण की प्रक्रिया का अन्तिम किन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्तर माना जाता है। इसके लिए परीक्षण के अन्तिम रूप का एक विशाल समूह पर प्रशासन किया जाता है। यह समूह दो तीन हजार लोगों का हो सकता है। इसके उपरान्त तीन विधियों के द्वारा फलांकों का सांख्यिकीय विवेचन करके निष्कर्षो का मानकीकृत किया जाता है। इन तीनों विधियों का वर्णन निम्नानुसार प्रस्तुत है- है.

  • (i) मध्यमान और मानक विचलन विधि
  • (ii) शतांशीय विधि
  • (iii) आयु आधार विधिः

मानक को प्रभाविक करने वाले कारक

  1. प्रत्येक बालक का विकास हर उम्र में एक जैसा नहीं होता है अतः विभिन्न आयु वर्ग के लिए मानकों का अन्तर समान नहीं होता है।
  2. ये मानक केवल 20 वर्ष तक की आयु के विद्यार्थियों के लिए ही उपयुक्त होते हैं।
  3. इन मानकों का प्रयोग व्यक्तित्व परीक्षण रुचि परीक्षण अभिवृत्ति परीक्षण आदि परीक्षणों में नहीं किया जा सकता है।
  4. एक आयु वाले बालकों की योग्यता की तुलना आयु मानकों के द्वारा नहीं की जा सकती है।

मानकों के प्रकार

  1. आयु मानक
  2. श्रेणी मानक
  3. शतांशीय मानक

प्रमाणित परीक्षण

प्रमाणित परीक्षण आधुनिक युग की देन है। इनके अर्थ को स्पष्ट करते हुए थार्नडाइक व हेगन ने लिखा है, “प्रमाणित परीक्षण का अभिप्राय केवल यह है कि सब छात्र मान निर्देशों और समय की समान सीमाओं के अन्तर्गत समान प्रश्नों और अनेकों प्रश्नों का उत्तर देते हैं।”

प्रमाणित परीक्षणों के कतिपय उल्लेखनीय तथ्य दृष्टव्य हैं

  1. इनका निर्मण एक विशेषज्ञ या विशेषज्ञों के समूह द्वारा किया जाता है।
  2. इनका निर्माण परीक्षण-निर्माण के निश्चित नियमों और सिद्धान्तों के अनुसार किया जाता है।
  3. इनका निर्माण विभिन्न कक्षाओं और विषयों के लिए किया जाता है। एक कक्षा और एक विषय के लिए अनेक प्रकार के परीक्षण होते हैं।
  4. जिस कक्षा के लिए जिन परीक्षणों का निर्माण किया जाता है, उनको विभिन्न स्थानों पर उसी कक्षा के सैकड़ों हजारों बालकों पर प्रयोग करके निर्देश बनाया जाता है अथवा प्रमाणित किया जाता है।
  5. निर्माण के समय इनमें प्रश्नों की संख्या बहुत अधिक होती है। पर विभिन्न स्थानों पर प्रयोग किए जाने के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले अनुभवों के आधार पर उनकी संख्या में पर्याप्त कमी कर दी जाती है।
  6. इनमें दिए हुए प्रश्नों को निश्चित निर्देशों के अनुसार निश्चित समय के अन्दर करना पडता है। मूल्यांकन या अंक प्रदान करने के लिए भी निर्देश होते हैं।
  7. इनका प्रकाशन किसी संस्था या व्यापारिक कर्म के द्वारा किया जाता है।

उदाहरणार्थ-

भारत में (Central Institute of Education, National Council of Education Research & Training. Jamia Milia, Oxford University press) आदि ने इनको प्रकाशित किया

शिक्षक निर्मित परीक्षण

शिक्षक-निर्मित परीक्षण, आत्मनिष्ठ और वस्तुनिष्ठ दोनों प्रकार के होते हैं। सामान्य रूप से शिक्षकों द्वारा सभी विषयों पर परीक्षणों का निर्माण किया जाता है और कुछ समय पूर्व तक इन परीक्षणों का रूप आत्मनिष्ठ था। भारत में अब भी इसी प्रकार के परीक्षणों का प्रचलन है। यद्यपि वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के निर्माण की शिक्षा में सक्रिय कदम उठाये जा रहे हैं। सब शिक्षकों में परीक्षणों के लिए प्रश्नों का निर्माण करने की समान योग्यता नहीं होती है। अत: एक ही विषय पर दो शिक्षकों द्वारा निर्मित प्रश्नों के स्तरों में अन्तर हो सकता है। फलस्वरूप, उनका प्रयोग करके छात्रों के ज्ञान का ठीक-ठीक मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है। इसलिए शिक्षक निर्मित परीक्षणों को विश्वासनीय नहीं माना जाता है। ऐलिस के शब्दों में “शिक्षक-निर्मित परीक्षणों में बहुधा कम विश्वसनीयता होती है।”

प्रमाणित व शिक्षक नार्मित परीक्षणों की तुलना

प्रमाणित परीक्षण की श्रेष्ठता Thorndike & Hagen ने प्रमाणित परीक्षण को शिक्षक निर्मित परीक्षण से श्रेष्ठतर सिद्ध करने के लिए निम्नांकित तथ्य प्रस्तुत किए हैं

  1. प्रमाणित परीक्षण को सम्पूर्ण देश के किसी भी विद्यालय की कक्षा के लिए प्रयोग किया जा सकता है। शिक्षक-निर्मित परीक्षण को केवल उसी के विद्यालय की किसी विशेष कक्षा के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
  2. प्रमाणित परीक्षण का निर्माण किसी विशेषज्ञ या विशेषज्ञों के समूहों के द्वारा किया जाता है। शिक्षक निर्मित परीक्षण का निर्माण अध्यापक के द्वारा अकेले और किसी की सहायता के बिना किया जाता है।
  3. प्रमाणित परीक्षण में प्रयोग की जाने वाली परीक्षा सामग्री का व्यापक रूप में पहले ही परीक्षण कर लिया जाता है। शिक्षक-निर्मित परीक्षण में इस प्रकार का कोई परीक्षण नहीं किया जाता है।
  4. प्रमाणित परीक्षण में बहुत अधिक विश्वासनीयता होती है। शिक्षक निर्मित परीक्षण में कम विश्वासनीयता होती है। उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप थार्नडाइक व हेगन का परामर्श है, “प्रमाणित परीक्षणों का ही विश्वास किया जाना चाहिए।”

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प्रमाणित परीक्षण की निम्नता-

कुछ लेखकों ने प्रमाणित परीक्षण को शिक्षक निर्मित परीक्षण से निम्नतर सिद्ध करने के लिए अधोलिखित कारण प्रस्तुत किए हैं

  1. प्रमाणित परीक्षण के निर्माण के लिए बहुत समय और धन की आवश्यकता होती है। शिक्षक-निर्मित परीक्षण के लिए अति अल्प समय और धन पर्याप्त है।
  2. प्रमाणित परीक्षण इस बात का मूल्यांकन नहीं कर सकता है कि कक्षा में क्या पढाया जा सकता था या क्या पढाया जाना चाहिए था ? शिक्षक निर्मित परीक्षण इन दोनों बातों का मूल्यांकन कर सकता है।
  3. Pressey, Robinson & Horrocks के अनुसार “प्रमाणित परीक्षण शिक्षक के शैक्षिक मूल्यों का अनुमान लगाने में असफल रहता है। शिक्षक निर्मित परीक्षण इन दोनों बातों का मूल्यांकन कर सकता है।
  4. Crow & Crow के अनुसार “प्रमाणित परीक्षण, अध्यापक की शैक्षिक सफलता और छात्रों की वास्तविक प्रगति का मूल्यांकन करने में सफल नहीं होता है। शिक्षक-निर्मित, परीक्षण इन दोनों लक्ष्यों को प्राप्त करता है।

उपरिलिखित कारणों के फलस्वरूप अनेक लेखक प्रमाणित परीक्षण को शिक्षक निर्मित, परीक्षण से निम्नतर स्थान देते हैं।

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