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महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

महिला सशक्तीकरण (Women’s Empowerment)

‘शक्ति’ से ही ‘सशक्तीकरण’ का सिद्धान्त पोषित होता है। प्रचलित रूप में शक्ति किसी कार्य को कर सकने की क्षमता को माना जाता है। सामाजिक सन्दर्भों में शक्ति का अर्थ अधिकार, हुक्म देने का हक, शासन करने या नियंत्रित करने की ताकत या प्रभावित करने की क्षमता आदि है। इस प्रकार सशक्तीकरण का सामान्य अर्थ है, जहाँ शक्ति न हो या जहां कम हो वहां पर शक्ति को और बढ़ा देना। सशक्तीकरण आज एक प्रचलित शब्द बन गया है। इसका अर्थ अधिकार और शक्ति का विकेन्द्रीकरण है। इसका उद्देश्य वंचित वर्गों के लोगों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भागीदार बनाना है। दूसरे शब्दों में, बात न कह पाने वालों को बात कहने देना है। सक्रिय समाजसेवी चाहते हैं कि सरकार कल्याण कार्यक्रमों द्वारा तथा कानूनी कदम उठाकर महिलाओं सहित गरीब लोगों को सशक्त बनाए। जब तक इन लोगों को वास्तव में सशक्त नहीं बनाया जाता तब तक शक्ति का प्रयोग दूसरे लोगों द्वारा किया जाता रहेगा, बजाए उनके कि वास्तविकता में शक्ति जिनके लिए है। (के. डी. गॅग्रेड, 2001)।

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महिला सशक्तीकरण की अवधारणा कोई नयी नहीं है। यह सभी समाजों में सदा से रही है, लेकिन महिला सशक्तीकरण को एक विचारधारा के रूप में देखा जाना और इसे एक सामाजिक आन्दोलन के रूप में इस्तेमाल किया जाना और जनसाधारण में इसका विस्तार आदि तथ्यों को नया समझा जा सकता है। अब यह महिला कल्याण से महिला विकास और महिला विकास से शक्तीकरण का रूप ले चुका है तथा इसकी चर्चा, रिपोटिंग और आलोचनात्मक मूल्यांकन किया जा रहा है और भी नयी बात बालिकाओं और महिलाओं की विशेष समूह के रूप में पहचान तथा महिला सशक्तीकरण से संबंधित प्रमुख बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता का मिलना। इससे भी बढ़कर नयी बात यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय, सामाजिक एवं पारिवारिक विकास तथा प्रगति के लिए महिला सशक्तीकरण के अपरिहार्य माने जाने की समझ और अनुभूति बढ़ी है। यह भी महसूस किया और माना जा रहा है कि महिला सशक्तीकरण को स्थापित करने के लिए सरकारी, गैर-सरकारी और वैयक्तिक स्तरों पर वास्तविक संकल्प और प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।

महिला सशक्तीकरण का अर्थ उन्हें आर्थिक रूप से स्वावलम्बी, आत्मविश्वासी और अपनी अस्मिता के प्रति सकारात्मक सोच वाला बनाना है ताकि वे कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करने में सक्षम हों और विकास कार्यों में भी उनकी भागीदारी हो सके। एक सशक्त महिला को निर्णय लेने की प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिए समर्थ होना चाहिए। शिक्षा इस दिशा में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करंगी।

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