8 अगस्त 1942 को गाँधीजी के ग्वालियर टैंक (मुम्बई) में दिये गये भाषण के साथ ही भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। 9 अगस्त 1942 को ही गाँधीजी साहित कांग्रेस के अनेक नेता गिरफ्तार कर लिये गये। परन्तु यह आंदोलन नेतृत्वविहीन होकर भी चलता रहा। भारत के अनेक जगहों यथा- बलिया, सतारा, मिदनापुर आदि में अंग्रेजी सत्ता समाप्त हो गयी। इन जगहों पर स्वतन्त्र सरकारों की स्थापना हुई। इस आंदोलन में समाज के प्रत्येक वर्ग ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, एवं अरुणा आसफ अली जैसे नेताओं ने भूमिगत रहकर आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया। यह आंदोलन भारत को स्वतन्त्र भले न करवा पाया हो परन्तु इसका दूरगामी परिणाम सुखदायी रहा।
भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के क्या कारण थे ?
भारत छोड़ो आंदोलन के लिए कौन सी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं?
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के लिये निम्न परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं-
- 30 मार्च 1942 को सर स्टेफर्ड क्रिप्स ने संकेत दिया कि यदि उनकी कांगेस लीग से बातचीत विफल हो गयी, तो सरकार गतिरोध को हल करने के लिये कोई बात नहीं करेगी। जब क्रिप्स ने अपने सुझाव वापस ले लिये तथा कांग्रेस ने अपनी विफलता डाल दी, तो जनता को यह लगा कि वास्तविक शक्ति देने का कोई मन्तव्य नहीं है। इससे एक ओर तो क्रिप्स की बदनामी हुई, दूसरी ओर भारतीयों में भी निराशा हुई कि फिलहाल उन्हें स्वतंत्रता मिलने वाली नहीं है।
- भारत पर जापान के आक्रमण का भय निरन्तर बढ़ता जा रहा था।
- बर्मा से भागकर आ रहे भारतीय शरणार्थियों के दु:खों से जनता रोष में थी क्योंकि उनके साथ ऐसा घटिया व्यवहार किया गया, जैसे कि वे इसी बुरी जाति से सम्बन्धित हों।
- पूर्वी बंगाल में भय तथा आतंक का साम्राज्य था। सरकार ने वहाँ सैनिक उद्देश्यवश बहुत से किसानों की भूमि छीन ली थी। उनकी हजारों नावों को नष्ट कर दिया था। जो उनकी जीविका का साधान थी।
- मंहगाई के कारण वस्तुओं के दामों में निरन्तर बढ़ोत्तरी हो रही थी, लोग कागजी नोटों में अविश्वास प्रकट करने लगे थे, मध्यम वर्ग तंग हो गया था।
- गाँधीजी को विश्वास हो गया था कि अंग्रेज भारत की रक्षा करने में असमर्थ हैं। मलाया, सिंगापुर तथा बर्मा की पराजय से उनका विश्वास और दृढ़ हो गया था। उनका मत था कि कदाचित अंग्रेज भारत छोड़ दें तो जापानी भारत पर आक्रमण नहीं करेंगे, अतः उन्होंने अंग्रेजों से भारत छोड़ने को कहा।