भास्कर वर्मन के विषय में आप क्या जानते हैं?

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भास्कर वर्मन – हर्षवर्धन और कामरूप के शासक भास्करवर्मन के बीच सम्बन्ध शुरू से ही मित्रवत् थे। राज्यवर्धन के पश्चात् हर्षवर्धन राजा बना और उधर सुप्रतिष्ठितवर्मन के बाद उसका छोटा भाई भास्करवर्मन कामरूप का राजा बना। अपने भाई के शासन काल से ही वह प्रशासनिक कार्यों में रूचि लेता आ रहा था। उसमें सैनिक तथा प्रशासनिक योग्यता विद्यमान थी वह कूटनीतिज्ञ था। भास्कर वर्मन को गौड़ शासक शशांक से भय था। शशांक से हर्ष की भी शत्रुता थी उसने ग्रीड़नरेश के विरुद्ध अपनी स्थिति युद्ध करने के लिए हर्षवर्धन से मैरी करना श्रेयस्कर समझा। दोनों शासकों की मैरी का आधार राजनैतिक हित था। हर्षचरित से पता चलता है कि जिस समय हर्ष शशांक के विरुद्ध अभियान पर जा रहा था, भास्कर वर्मन् का दूत हंसवेग उससे बहुमूल्य उपहारों के साथ मैत्री का प्रस्ताव लेकर मिला। प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया और इस प्रकार भास्करवर्मन हर्ष का मित्र और सहायक बन गया। कुछ विद्वानों का विचार है कि उसने हर्ष की अधीनता स्वीकार कर ली तथा उसका राज्य हर्ष के प्रभावक्षेत्र के अन्तर्गत आ गया। चीनी या स्वेनसांग उसके राज्य में गया था तथा भास्करवर्मन हर्ष के कन्नौज और प्रयाग के धार्मिक समाराहों में शामिल हुआ था।

गहड़वाल शासक चन्द्रदेव पर टिप्पणी कीजिए।

भास्कर वर्मन ने हर्ष को उसके पूर्व अभियान में सहायता की और इससे लाभ उठाया। भास्कर वर्मन ने हर्ष की मृत्यु से जो अव्यवस्था फैली उसका लाभ उठाते हुए अपने राज्य का विस्तार प्रारम्भ कर दिया। उसने कर्णसुवर्ण को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया तथा पूर्वी भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बन बैठा। निःसन्देह वह अपने वंश का महानतम शासक था और उसके समय में वर्मन राज्य के अन्तर्गत समस्त कामरूप तथा बंगाल का एक बड़ा भाग सम्मिलित था। भास्कर वर्मन यद्यपि जाति का ब्राह्मण था तथापि बौद्धों का भी सम्मान करता था। भास्कर वर्मन की मृत्यु के पश्चात् उसका साम्राज्य भी छिन्न-भिन्न हो गया।

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