भारत में स्त्री शिक्षा की समस्या
नारी शिक्षा की प्रगति हेतु यद्यपि पर्याप्त प्रयास किये जा चुके हैं, परन्तु फिर भी इस क्षेत्र में अभी तक अनेक समस्याएँ शेष हैं। इन समस्याओं का संक्षिप्त उल्लेख निम्नलिखित पंक्तियों में किया गया है
(1) दोषपूर्ण प्रशासन-
नारी शिक्षा की प्रमुख समस्या है – दोषपूर्ण प्रशासन । प्रशासनिक दृष्टि से स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अनेक समस्याएँ हैं। भारत के अनेक प्रान्तों में स्त्री शिक्षा के प्रशासन में महिला उच्च अधिकारियों का अभाव है। स्त्री शिक्षा का संचालन पुरुष अधिकारी ही कर रहे हैं। पुरुष अधिकारियों की बालिकाओं की शिक्षा में रुचि नहीं होती तथा न ही छात्राओं की आवश्यकताओं को भली-भांति समझते हैं। इसलिए वे नारी शिक्षा की व्यवस्था उचित रूप से नहीं कर सकते तथा न ही उसका सफलतापूर्वक प्रसार कर सकते हैं।
इस समस्या का समाधान प्रशासन में सुधार करके ही किया जा सकता है। इस हेतु समस्त राज्यों में शीघ्रातिशीघ्र सुयोग्य एवं कुशल महिलाओं की उच्च प्रशासकीय पदों पर नियुक्ति की जाये तथा प्रत्येक राज्य में शिक्षा संचालिका के अधीन, मण्डलीय निरीक्षिकायें तथा विद्यालय में निरीक्षिकाओं की नियुक्ति की जाये। इन विद्यालय निरीक्षिकाओं के प्रमुख कार्य कन्या विद्यालयों का निरीक्षण करना, तथा उनकी रिपोर्ट के आधार पर शिक्षा नीति का निर्धारण करना रखा जाये। इससे स्त्री शिक्षा में पर्याप्त सुधार होगा तथा स्त्रियाँ ही सियों की समस्याओं का निराकरण कर सकेंगी तथा अपने अनुभवों के आधार पर उत्तम एवं प्रगतिशील उपाय को बताकर उनका मार्गदर्शन कर सकेंगी।
(2) बालिकाओं की शिक्षा में अवरोधन की समस्या
प्रदनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि बालकों की तुलना में बालिकाएँ या तो शिक्षा प्राप्त ही नहीं कर पाती अथवा उनकी शिक्षा बीच में ही रुक जाती है, अभिभावकों का संकुचित दृष्टिकोण एवं वर्तमान विद्यालयों का दूषित वातावरण इसका प्रमुख कारण रहता है। इसके अतिरिक्त प्राचीन परम्पराओं में निष्ठा, अन्धविश्वास, छात्राओं को शिक्षा के प्रति भय, दोषयुक्त शिक्षा प्रणाली यातायात के अपर्याप्त साधन भी इस समस्या के मूल में निहित है।
बालिकाओं की शिक्षा में अवरोधन की इस समस्या के निराकरण हेतु यह आवश्यक है कि –
- छात्राओं की शिक्षा के प्रति अभिभावकों के दृष्टिकोण को उदार बनाया जाये।
- छात्राओं की यातायात एवं विद्यालय अध्ययन के समय, सुरक्षा की विशिष्ट व्यवस्था की जाये।
- यातायात सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
- शैक्षिक निर्देशन की व्यवस्था की जाये।
- छात्राओं के पाठ्यक्रम में परिवर्तन किया जाये तथा
- बालिकाओं के पृथक विद्यालयों की संख्या में अपेक्षित वृद्धि की जाए।
(3) रूढ़िवादिता की समस्या
पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रभावस्वरूप तथा भारतीय समाज सुधारकों के द्वारा जागरण आन्दोलन के परिणामस्वरूप नारी शिक्षा के सम्बन्ध में यद्यपि अनेक सार्थक प्रयास किए गए हैं, परन्तु फिर भी वांछित सीमा तक इस दिशा में प्रगति नहीं हो सकती है। पर्दा प्रथा, अल्पायु में बालिकाओं का विवाह, नारियों को घर की चहारदीवारी में रखने की भावना, उनके द्वारा समानता का अधिकार मांगे जाने के प्रति आशंकित होना, परम्परावादी विचार आदि इस प्रगति के अवरुद्ध होने के प्रमुख कारक हैं।
रूढ़िवादिता से ग्रस्त, नारी शिक्षा की इस समस्या को दूर करने हेतु यह आवश्यक है कि –
- प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से अशिक्षित एवं अल्प शिक्षित व्यक्तियों में नारी शिक्षा के प्रति जागृति उत्पन्न की जाए।
- अशिक्षित भारतीयों के दृष्टिकोण में परिवर्तन का यथासम्भव प्रयास किया जाये।
- पुरुषों द्वारा नारी के प्रति अपनाई जाने वाली दमनात्मक प्रवृत्ति का विरोध करना।
- व्याख्यान आदि के द्वारा रूढ़िवादिता को समाप्त करने हेतु प्रयास करना।
- आधुनिक तकनीकी साधनों को इस उद्देश्य हेतु प्रयुक्त किया जाये।
- बाल विवाह आदि कुरीतियों के विरुद्ध जनमत तैयार किया जाए।
- नारी मुक्ति आन्दोलन को प्रोत्साहित करना।
(4) योग्य अध्यापिकाओं का अभाव
स्वतन्त्रता के पचास वर्षों के उपरान्त भी भारतीय विद्यालयों में योग्य अध्यापिकाओं के अभाव की पूर्ति नहीं की जा सकी है। इसके लिए यह आवश्यक है कि छात्राओं के लिए पर्याप्त संख्या में विद्यालय खोलने के साथ-साथ, प्रशिक्षित एवं योग्य अध्यापिकाओं की व्यवस्था भी की जाए।
(5) सरकार द्वारा नारी शिक्षा की उपेक्षा
यद्यपि समस्त आयोगों में नारी-शिक्षा में आवश्यक परिवर्तन करने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव दिए है, तथापि उनको क्रियान्वित करने का प्रमुख उत्तरदायित्व राज्य सरकारों एवं केन्द्रीय सरकार का है। यह दुःखद है कि सरकार इस सम्बन्ध में आवश्यक प्रयास नहीं कर सकी है। अतः सरकारी स्तर पर इस सम्बन्ध में प्रयास होने चाहिये। छात्राओं के लिए पर्याप्त विद्यालय एवं छात्रवृत्तियों की व्यवस्था, पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित अध्यापिकाओं की व्यवस्था, यात्रा एवं सुरक्षा सम्बन्धी सुविधाएँ तथा केन्द्रीय स्तर पर विभिन्न माध्यमों से नारी शिक्षा के प्रति जागृति उत्पन्न करना सरकार का उत्तरदायित्व है।
(6) निर्धनता तथा अविकसित दशा
भारत की अधिकांश जनता गाँवों में निवास करती है। आज अधिकांश गाँव अविकसित दशा में हैं। अनेक ऐसे भी गाँव है, जहाँ पर जीवन की दैनिक सामग्री सरलता से नहीं मिल पाती है। ऐसी स्थिति में गाँवों में विद्यालय की स्थापना करना केवल स्वप्नवत् रह जाता है। आज अभिभावक अपने लड़कों को पढ़ाने के लिए ही जब धन की व्यवस्था नहीं कर पाते तो उनके लिये लड़कियों हेतु शिक्षा की व्यवस्था करना अत्यन्त कठिन कार्य है।
इस समस्या के समाधान हेतु सरकार ग्रामीण जनता के उत्थान पर ध्यान दे तथा अपने विकास कार्यों में स्त्री शिक्षा को प्रमुख स्थान दे। इसके साथ ही स्त्री शिक्षा पर अधिकाधिक धन खर्च करने का दृढ़ संकल्प करे। निःसन्देह इससे अधिकांश अशिक्षित बालिकाओं व महिलाओं का कल्याण हो सकता है। स्त्री शिक्षा के कार्यक्रम को पूर्ण करने हेतु ‘नेशनल कमेटी ऑफ वूमेन्स एजूकेशन’ ने सरकार से तृतीय पंचवर्षीय योजना में स्त्री शिक्षा पर 100 करोड़ रुपये से कम धनराशि खर्च न करने की मांग की थी।
(7) सह-शिक्षा की समस्या
स्वतन्त्र भारत में आज भी अधिकांश अभिभावक अपनी लड़कियों को सह-शिक्षा देना अनुचित समझते हैं। माध्यमिक स्तर पर सह-शिक्षा से सम्बन्धित समस्याएँ इस प्रकार हैं।
- (i) छात्राओं की आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
- (ii) सह-शिक्षा से छात्राओं में हीनता की भावना उत्पन्न होती है।
- (iii) मनोविज्ञान तथा जैविकी के क्षेत्र में हुए अनेक शोध कार्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जीवन के प्रत्येक स्तर पर नारी तथा पुरुष में मित्रता पाई जाती है।
इस समस्या के निराकरण हेतु
- छात्र तथा छात्राओं के लिए पृथक्पृथक् विद्यालयों का निर्माण किया जाए,
- दोनों के लिए भिन्न-भिन्न पाठ्यक्रम की व्यवस्था की जाए,
- छात्रों को अध्यापक तथा छात्राओं को अध्यापिकाएँ पढ़ायें
- सह-शिक्षा के दुष्परिणामों से छात्र तथा छात्राओं को अवगत कराया जाए.
- छात्राएँ छात्रों की अपेक्षा अधिक परिश्रम करती है, जिससे उन्हें शीघ्र ही थकान हो जाती है।
जिला प्रारम्भिक शिक्षा कार्यक्रम का परिचय दीजिये।
(8) छात्राओं का दोषयुक्त पाठ्यक्रम
भारत के विद्यालयों का पाठ्यक्रम अत्यन्त दोषयुक्त है। इस पाठ्यक्रम में विविधता व अनुकूलता का सर्वथा अभाव है। छात्राओं को प्रायः वे ही विषय पढ़ने पड़ते हैं जो छात्रों के लिये निर्धारित किये गये हैं। उपयोगिता व मनोवैज्ञानिकता की दृष्टि से यह सर्वथा अनुचित है। इससे छाओं के भविष्य को अन्धकारमय बनाया जाता है। तथा उन्हें अपने जीवन की समस्याओं व आवश्यकताओं हेतु तैयार नहीं किया जाता है। डॉ. एस. एन. मुकर्जी के शब्दों में, “वर्तमान भारत में लड़कियों की शिक्षा, लड़कों को दी जाने वाली शिक्षा की प्रतिलिपि मात्र है। वस्तुतः लड़कों के पाठ्यक्रम के अतिरिक्त लड़कियों को अन्य प्रकार की शिक्षा देने की कोई व्यवस्था नहीं है।”
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