भारत में सांस्कृतिक एवं सजातीय विविधताओं पर एक निबन्ध लिखिए।

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संस्कृतिक विविधता-

सांस्कृतिक एवं सजातीय विविधताओं पर एक निबन्ध भारत में विभिन्न धर्मों, भाषाओं, रीति-रिवाज, प्रथाओं, परम्पराओं, विचारों, विश्वासों, संस्कारों, खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा आदि के रूप में पर्याप्त बहुलता एवं विविधता के दर्शन होते हैं, जैसे उत्तर और दक्षिण के लोगों, हिन्दू और मुसलमानों, ग्रामीण व नगरीय तथा परम्परावादी एवं आधुनिक माने जाने वाले लोगों की वेशभूषा में रात और दिन का अन्तर पाया जाता है। खान-पान की दृष्टि से भी देश के विभिन्न भागों में भूमि और आकाश का अन्तर देखा जाता है। पंजाब में गेहूँ, बंगाल और उड़ीसा में चावल एवं मछली तथा राजस्थान में ज्वार, बाजरा एवं मक्का मुख्य भोजन है। इसी प्रकार बंगाल में धोती-कुर्ता, दक्षिण में लुंगी-कुर्ता, पंजाब में सलवार कुर्ता, राजस्थान और गुजरात में धोती-कुर्ता और पगड़ी का अधिक प्रचलन है। विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के पहनावे में भी अन्तर पाया जाता है।विभिन्न क्षेत्रों में कला, संगीत और नृत्य की दृष्टि से भी पर्याप्त भिन्नता पायी जाती है। इस सम्बन्ध में किसी क्षेत्र में कोई शैली प्रचलित है, तो किसी अन्य क्षेत्र में दूसरी शैली। भारत के मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों, स्तूपों, शिखरों आदि में कला की भिन्नता आसानी से ज्ञात हो जाती है। यही बात संगीत और नृत्य के सम्बन्ध में है। गुजरात के गरबा, दक्षिण में भरतनाट्यम, पंजाब में भांगड़ा एवं लोहड़ी, राजस्थान में घुमर, महाराष्ट्रों में तमाशा जैसे नृत्योकी प्रधानता देखी जाती है। भारत के विभिन्न प्रान्तों/राज्यों के त्योहारों एवं उत्सवों में भी भिन्नता पायी जाती है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि भारत में सांस्कृतिक विविधता पाई जाती है।

विविधता के कारण-

भारत एक विशाल देश है यहाँ विभिन्न प्रजातियों, धर्मो एवं अनेक को बोलने वाले लोग निवास करते हैं। भारत में विविधता का कारण इन्हीं विभिन्नताओं में छुपी भाषाओं हुई है, जिसका विवरण हम निम्नवत कर सकते हैं

(1) भौगोलिक विविधता- भौगोलिक दृष्टि से भारत भिन्न-भिन्न खण्डों और उपखण्डों में विभक्त हैं तथा उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम में हजारों किलोमीटर तक फैला हुआ है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर (विश्व का 2.42 प्रतिशत) है। यह सम्पूर्ण भू-भाग तीन भागों में विभाजित है।

  • (क) हिमालय का विस्तृत पर्वतीय प्रदेश,
  • (ख) गंगा-सिन्धु का मैदान और
  • (ग) दक्षिणी पठारी भाग सभी खण्डों और उपखण्डों के वासियों की भाषा, रहन-सहन, तौर-तरीके, वेशभूषा, संस्कृति और सामाजिक संगठन अलग-अलग है। इतना ही नहीं, विभिन्न भागों में पाए जाने वाले पशु, वर्षा की दशा, भूमि की किस्म, खान-पान इत्यादि में भी विविधता पाई जाती है।

(2) प्रजातीय विविधता-भारत की विशालता को देखते हुए इसे एक छोटा सा महाद्वीप कहना ठीक होगा। कभी-कभी भारत को विभिन्न जातियों और प्रजातियों का अजायबघर भी कह दिया जाता है। बिलोचिस्तान से लेकर असम और म्यांमार (बर्मा) तक, पश्चिमी तट पर गुजरात से लेकर कुर्ग की पहाड़ियों तक तथा हिमालय पर्वत से लेकर कन्याकुमारी तक विविध प्रजातियों के लोग रहते है, जैसे श्वेत (काकेशियन), पीत (मंगोलियन), श्याम (नीगार्गे, तस्मानियन, मलेशियन, बुशमैन) आदि। सम्पूर्ण भारत में यों तो बहुत प्रजातियाँ रहती है, परन्तु 8 प्रजातियाँ विशेषतया उल्लेखनीय हैं- आर्य प्रजाति, मंगोल प्रजाति द्रविड़ प्रजाति, मंगोल-द्रविड़ प्रजाति, सौथो द्रविड़ नीग्रटो प्रजाति और भूमध्यसागरीय प्रजाति । इन सभी प्रजातियों के खान-पान, व्यवसाय, रहन-सहन, आचार-विचार, मनोरंजन के साधन, सामाजिक संगठन, भाषा और शारीरिक विशेषताएँ भी भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं।

(3) जनजातीय विविधता-जनजाति से हमारा तात्पर्य परिवारों के ऐसे संकलन से है जिसका कि सामान्य नाम होता है, सभी सदस्य सामान्य भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं, सामान्य भाषा का प्रयोग करते है तथा साथ-ही-साथ विवाह, व्यवसाय और अपने उद्योग सम्बन्धी कुछ विशेष या जनजाति द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते हैं। 2001 ई० की जनगणना के आँकड़ों के आधार पर यह सरलता से कहा जा सकता है कि भारत की कुल जनसंख्या में 8.01 प्रतिशत जनजातीय लोग निवास करते हैं। भारत में ओरॉव गॉड, मुण्ड, बोरो, काजर बड़गा, कोटा, टोण्डा, यूरूब, परितयन, कुसुम्ब, कादर, कणिक्कर, मलयन्तरम, धारू और कूकी इत्यादि विभिन्न जनजातियाँ देखने को मिलती है। जनजातियों के रीति-रिवाज एवं रहन-सहन हो पृथक नहीं है, अपितु ग्रामीण तथा नगरीय संस्कृति से भी पूरी तरह से भिन्न हैं

(4) भाषागत विविधता- भारत में न केवल भौगोलिक, प्रजातीय एवं जनजातीय विविधता देखने को मिलती है, वरन् भाषागत विविधता भी विद्यमान है। देश में कुल मिलाकर लगभग 1,652 बोलियाँ बोली जाती है। भाषा की दृष्टि से सम्पूर्ण भारत में पाँच भाषाई परिवार हैं- पहला, यूरोपीय भाषाई परिवार, द्वितीय द्रविड़ भाषाई परिवार, तृतीय आस्ट्रियन भाषाई परिवार, चौथा, तिब्बती-बर्मी भाषाई परिवार, और पाँचवाँ छोटी भाषाओं का परिवार।

(क) यूरोपीय परिवार की भाषाएँ- यूरोपीय परिवार की हिन्दी उर्दू, बंगला, असमिया, उड़िया, पंजाबी, सिन्धी, मराठी, गुजराती, राजस्थानी, बिहारी, और हिमाली प्रमुख भाषाएँ हैं

(ख) द्रविड़ भाषाई परिवार- इस परिवार की तेलुगु, कन्नड़, तमिल और मलयालम भाषाएँ उल्लेखनीय हैं।

(ग) आस्ट्रियन भाषाई परिवार- इसमें भी मुण्डा, कोल, मुण्डाली, सन्थाली, हो, खरिया, भूमिज, कोरबा इत्यादि बोलियों तथा भाषाओं को मान्यता दी गई है। इन बोलियों और भाषाओं को बोलने तथा प्रयोग करने वाले लोग उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बंगाल और छोटा नागपुर में फैले हुए हैं।

(घ) तिब्बती-बर्मी भाषायी परिवार- इसके अन्तर्गत मणिपुरी और लेपचा भाषाओं को सम्मिलित किया गया है। नेवाड़ी भाषा भी इसी परिवार की प्रमुख भाषा मानी जाती है।

(ङ) छोटी भाषाओं का परिवार- इस परिवार में हम उन भाषाओं और बोलियों को सम्मिलित करते हैं, जो अण्डमान और निकोबार द्वीपों के वासियों द्वारा प्रयोग में लाई जाती हैं। ये भाषाएँ अण्डमानी और निकोबारी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

(5) धार्मिक विविधता- धार्मिक दृष्टिकोण से भारत के नागरिक विभिन्न धर्मों के अनुयायी है। यदि एक और हिन्दू धर्म में विश्वास करने वाले हैं तो दूसरी ओर इस्लाम धर्म मानने वाले मुस्लिम लोग भी भारतवासी ही हैं। बौद्ध धर्म के लोग भी भारत में कुछ कम नहीं है। क्रिश्चियन अर्थात् ईसाई धर्म को मानने वाले भी नगरों और ग्रामीण समुदायों में वास करते हैं। सिक्ख धर्म के लोग भी भारत के विभिन्न प्रान्तों में फैले हुए हैं। सभी धर्मों की अपनी भिन्न-भिन्न मान्यताएँ हैं तथा उपसना एवं पूजा की अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न विधियाँ हैं। इन धर्मों के अतिरिक्त अनेक सम्प्रदाय, जैसे- रौब, वैष्णव, आर्य समाजी, नानक पन्थी, कबीर पन्थी इत्यादि उल्लेखनीय हैं जिनके अन्तर्गत उच्च कोटि के विचारक उत्पन्न हुए हैं।

(6) राजनीतिक विविधता- प्रशासन की सुविधा के लिए भारत को पाँच प्रमुख भागों में विभक्त कर दिया गया है। ये पांच भाग हैं- केन्द्र, प्रान्त, जिला, ब्लॉक और नगर अथवा गाँव। इन सब भागों के अलग-अलग अधिकारीगण हैं और उनके अधिकार क्षेत्र तथा कर्तव्य भी अलग-अलग तथा सुनिश्चित है। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा इन उपर्युक्त सभी भागों और उपभागों का प्रशासन चलता है। सरकारी नियम भी भिन्न-भिन्न भागों में अलग-अलग है। जनता द्वारा निर्वाचित प्रत्येक क्षेत्र (भाग) की सरकार को पूर्णतया यह स्वतन्त्रता है कि वह अपने क्षेत्र के नागरिकों के कल्याण के लिए समितियाँ और उपसमितियाँ बनाकर कार्यभार सँभाले। भारत में राजनीतिक दलों की भरमार है तथा उनकी विचाराधाराओं में पर्याप्त अन्तर है। केन्द्र में एक दल की सरकार है तो विभिन्न राज्यों में उससे भिन्न प्रकार के राजनीतिक दलों की सरकारें कार्य कर सकती हैं।

परिणाम-भारत में उपरोक्त वर्णित विविधताओं के कारण एक ऐसी एकता का सृजन हुआ जो भारत की प्रमुख विशेषता बन गयी, अर्थात् भारतीय संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक विषमताएँ होते हुए भी सर्वत्र एक मौलिक एकता विद्यमान है, क्योंकि जातिगत तथा भाषागत अनेकता ने हमें अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु पारस्परिक मतभेदों को भुला देने की प्रेरणा दी है।

भारतीय ग्राम समाज की बनावट/संयोजन पर प्रकाश डालिए।

(1) भौगोलिक एकता के सम्बन्ध में पुराणों के कथन के आधार पर कहा जाता है।.

उत्तरे यत् समुद्रस्य हिमादश्चव दक्षिणम्। वर्ष तत् भारत नाम भारतीया तु सन्तति ।।

अर्थात् समुद्र के उत्तर में हिमालय दक्षिण में जो देश है वह भारत नाम का खण्ड कहलाता है। वहाँ के लोग भारत की सन्तान कहलाते हैं।

(2) सर हरबर्ट रिजले ने कहा है कि भारत में भौतिक क्षेत्र में, सामाजिक रूप में, भाषा आचार व धर्म में जो विविधता पाई जाती है उसकी तह में हिमालय से कन्याकुमार तक आन्तरिक एकता है। (3) भारत में सांस्कृतिक व धार्मिक एकता पाई जाती है। भारत के लगभग सभी व्यक्ति स्नान करते समय निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हैं-

गंगे च यमुनेचैव गोदावरी सरस्वती ।

नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन सन्निधि कुरु ।।

अर्थात हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु तथा कावेरी इस जल में आकर प्रवेश करो।

(4) भारत में हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख आदि सभी धर्मों के लोग देवताओं, पीरों, मजारों को समान रूप में मानते हैं।

(5) भारत में हिन्दुओं व मुसलमानों ने भी एक-दूसरे की संस्कृति को प्रभावित किया है। प्रो० होकुलस का मत है कि, “विश्वास में व्यवहार में, आचार-विचार में सामाजिक रहन-सहन में भारतीय मुसलमानों पर हिन्दू संस्कृति और दृष्टिकोण का स्पष्ट प्रभाव दिखाई पड़ता है।”

(6) संस्कृत भाषा अधिकांश भारतीय भाषाओं की जननी मानी जाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत में विविधताओं के बीच भी सारभूत एकता पाई जाती है, यह कथन कि- “भारतीय संस्कृति में विविधता में एकता पाई जाती है”- पूर्णतया सत्य है।

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