भारत में ‘सबके लिए शिक्षा’ की विवेचना
पिछले वर्षों में विश्व सम्मेलनों व अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों के माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय ने सबके लिए शिक्षा (EFA) के पद को पुनः परिभाषित कर विकासशील देशों को इसकी प्राप्ति के लिए प्रेरित किया है। भारत भी उनमें से एक है। लेकिन जहाँ तक सबके लिए ‘शिक्षा या सर्वशिक्षा’ के प्रत्यय का प्रश्न है, यह भारत के लिए कोई नवीन पद नहीं है, बल्कि यह सवतन्त्र भारत के संविधान के अनुच्छेद-15 की आत्मा में रचा बसा है, जिसमें सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करने पर बल दिया गया है।
जैसा कि इस अध्याय के प्रारम्भ में प्रौढ़ शिक्षा, समाज शिक्षा के विस्तृत वर्णन से स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् संवैधानिक निर्देशों का अनुपालन करते हुए हमारे वरिष्ठ नेताओं ने किस प्रकार शिक्षा का प्रसार करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा, समाज शिक्षा, राष्ट्रीय साक्षरता मिशन जैसे ऐतिहासिक शैक्षिक कार्यक्रमों का सूत्रपात किया तथा उन्हें निरन्तर क्रियान्वित करने का प्रयास भी किया।
सन् 1991-92 में केन्द्र सरकार ने ‘जामीन विश्व सम्मेलन’ (1990) की घोषणा के • अनुरूप प्रौढ़ शिक्षा या समाज शिक्षा के स्थान पर सार्वभौमिक शिक्षा कार्यक्रम (Universal Education Programme) का सूत्रपात किया। राज्यसभा में संविधान के 83 वें संशोधन के फलस्वरूप शिक्षा को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) मान लिया गया। इस विधेयक से प्रेरित होकर राज्यों के शिक्षा मन्त्रियों की राष्ट्रीय समिति (अक्टूबर 1998) की संस्तुतियों के आधार पर सर्वशिक्षा अभियान (SSA) योजना विकसित की गयी, जिसमे सभी को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गयाः सन् 2000 में इस योजना को स्वीकृति मिल गयी और सन् 2000 से प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण (Universalisastion of Primary Education) शैक्षिक नियोजन का केन्द्रीय विषय (Focus Area) बन गया। इस कार्यक्रम को “सुलभता के सार्वभौमीकरण’ (Universalising Acess)) सहभागिता के सार्वभौमीकरण (Universalising Participation), सम्प्राप्ति के सार्वभौमीकरण (Univrsalising: Achievement) आदि पदों के रूप में पुनः परिभाषित किया गया।
सार्वभौमिक सुलभता (Universal Access) कार्यक्रम के अन्तर्गत 6-11 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों का नामांकन कराने के उद्देश्य से उनके निवास से किमी. की परिधि में 1 औपचारिक (Formal) या औपचारिकेतर शिक्षा (Non-formal Education) अर्थात् स्कूल की सुविधा उपलब्ध कराना। वर्तमान मानदण्ड के अनुसार 300 जनसंख्या वाले क्षेत्र के निवासी बच्चों के लिए एक औपचारिक प्राथमिक विद्यालय (Formal Primary) तथा 300 से कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों के लिए औपचारिकेतर शिक्षा केन्द्र (Non-formal Education Centres) होना चाहिए।
सार्वभौमिक सहभागिता (Universal Participation) कार्यक्रम के अन्तर्गत यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक बालक या बालिका जिसका प्राथमिक शिक्षा में नामांकन हुआ है, वह विद्यालय या समकक्ष औपचारिकेतर शिक्षा केन्द्रों में रुककर 5 वर्ष की शिक्षा पूरी करता है।
सार्वभौमिक सहभागिता (Universal Participation) कार्यक्रम के अन्तर्गत सुनिश्चित करना कि प्रत्येक विद्यालय जाने वाला बालक/बालिका प्राथमिक शिक्षा द्वारा प्रदान की गयी योग्यता को प्राप्त कर लेता है अर्थात् परिभाषित न्यूनतम अधिगम स्तर (Minimum Level of Learning : MLL) प्राथमिक शिक्षा की समाप्ति तक प्राप्त कर लेता है।
प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लिए मुख्य मन्त्रियों के सम्मेलन में यह भी विचार किया गया कि सार्वभौमीकरण के लिए बुनियादी न्यूनतम सेवाएँ (Basic Minimum Services) क्या हों ? तथा उन्हें कैसे क्रियान्वित किया जाय, जिससे कि सबके लिए शिक्षा (EFA) के लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके। पिछले अनेक वर्षों से सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा की विभिन्न रणनीतियों (Strategies) का परीक्षण होता रहा है तथा इनकी कमियों व अच्छाइयाँ भी ज्ञात हो चुकी है। वर्तमान समय में शैक्षिक संसाधनों से सम्बन्धित सूचनाओं का एक सुदृढ़ आधार है, जिसके आधार पर सर्वशिक्षा अभियान (SSA) कार्यक्रम को विकसित किया गया है। आज यह कार्यक्रम अपने पिछले महत्वपूर्ण प्रत्ययों का आधार लेते हुए, प्रायोगिक सम्भावनाओं के क्षेत्र से निकल कर वास्तविक धरातल की मुख्यधारा के कार्य क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है। आज संसद द्वारा पारित संविधान के ( 86वें संशोधित) अधिनियम, 2002 के अनुसार भी 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के लिए प्रारम्भिक शिक्षा (Elementary Education) एक मूलभूल अधिकार है, अतः सर्वशिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan) की रचना का आधार भी यही है।
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