भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के उद्देश्य।

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ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने 20 फरवरी, 1947 ई. की घोषणा को क्रियान्वित करने के लिये लाई मान्टबेटन को वायसराय पद पर भारत भेजा। कांग्रेस ने इस घोषणा का स्वागत किया और लीग को निमन्त्रित किया कि वे मिलकर इस घोषणा पर विचार करें। लीग ने इस निमन्त्रण को अस्वीकार कर दिया। एटली की घोषणा में यह भी कहा गया था कि सत्ता केन्द्रीय सरकार को या देश के कुछ भागों में प्रान्तीय सरकारों को हस्तान्तरित की जाये, यह ब्रिटिश सरकार समय आने पर निर्णय करेगी। इस घोषणा से मुस्लिम लीग को बहुत प्रोत्साहन प्राप्त हुआ था। इस समय लीग की यह धारणा बनी कि प्रान्तों में जिनकी सरकार होगी उनको ही सत्ता हस्तान्तरित की जायेगी। अतः पंजाब और पश्चिमोत्तर प्रान्तों में सत्ता अपनाने के लिये लीग ने हिंसा का ताण्डव किया और तरह-तरह के हथकंडे अपनाये। लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। पंजाब में संयुक्त मंत्रिमण्डल को त्यागपत्र देना पड़ा और वहाँ गर्वनर का शासन लागू किया गया। आसाम में भी लीग ने उपद्रव कराये लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के दोषों की विवेचना।

माउन्टबेटन ने भारत आने के बाद भारत आने के बाद भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श किया। उनको ज्ञात हो गया कि मुस्लिम लीग केबिनेट मिशन प्लान को क्रियान्वित करने को तैयार नहीं थी। अतः उस योजना पर कार्य नहीं हो सकता था। उनको यह भी स्पष्ट हो गया कि भारत की एकता बनाये रखने की किसी योजना पर लीग के दृष्टिकोण के कारण कार्य नहीं हो सकता था। इस प्रकार देश का विभाजन ही एकमात्र उपाय रह गया था। अन्त में जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार पटेल को विभाजन स्वीकार करने के लिये बाध्य होना पड़ा क्योंकि माउन्टबेटन ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि साम्प्रायिक रक्तपात, उपद्रवों के कारण अंग्रेजों को भारत में रुकना पड़ सकता था। यह भी भय था कि अगर विभाजन न स्वीकार किया गया तो अंग्रेज अपनी कुटिल नीतियों के द्वारा भारत को कई हिस्सों में बाँट देंगे। अंग्रेजों के प्रोत्साहन से जिन्ना पाकिस्तान से कम किसी बात पर तैयार नहीं था। अतः 3 जून, 1947 ई० को माउन्टबेटन ने अपनी योजना प्रकाशित की। इसके लिये उन्होंने कांग्रेस और लीग की स्वीकृत प्राप्त कर ली थी।

भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम के उद्देश्य-

माउण्टबेटन योजना को क्रियान्वित करने एवं भारतीयों के हाथों में सत्ता हस्तान्तरित करने के लिए ब्रिटिश शासन ने ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 को एक विधेयक प्रस्तुत किया। यह विधयेक 18 जुलाई, 1947 को स्वीकृत हुआ। इसी को ‘भारत स्वतन्त्रता अधिनियम’ की संज्ञा दी जाती है। इस अधिनियम का उद्देश्य माउण्टबेटन योजना के निष्कर्षों को विधिक मान्यता प्रदान करना था। अधिनियम की प्रधान व्यवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के क्या कारण थे ?

(1) दो औपनिवेशिक राज्यों की स्थापना-

इस अधिनियम के द्वारा भारत का विभाजन कर दिया गया। भारत एवं पाकिस्तान दो स्वतन्त्र एवं पृथक देशों की स्थापना के लिए 15 अगस्त, 1947 का दिन निश्चित किया गया तथा दोनों को औपनिवेशिक राज्य का दर्जा किया गया।

(2) संविधान सभाओं की स्थापना-

ब्रिटिश शासन ने दोनों देशों की संविधान सभाओं को सत्ता सौंपने की व्यवस्था की संविधान सभाओं को अपनी इच्छानुसार संविधान निर्माण की पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की गयी। अतः दोनों देशों की संविधान सभाएँ सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न थी।

(3) पृथक्-पृथक् गवर्नर जनरल-

अधिनियम में में भारत एवं पाकितस्तान दोनों के लिए पृथक-पृथक गवर्नर जनरल की व्यवस्था की गयी। इनकी नियुक्ति मन्त्रिमण्डल के परामर्श से किये जाने की व्यवस्था थी। इसके अतिरिक्त यह प्रावधान किया गया था कि गवर्नर जनरल एवं गवर्नर मंत्रिमण्ड के परामशनुसार कार्य करेंगे।

(4) संविधान सभाओं को विधानमण्डलों के रूप में कार्याधिकार-

संविधान | सभाओं को संविधान निर्माण तक विधानमण्डलों के रूप में भी कार्य करने का अधिकार दिया गया था। उनकी विधायी शक्ति पर कोई नियन्त्रण नहीं लगाया। 15 अगस्त के बाद ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कोई विधेयक इन उपनिवेशों पर इनके विधानमण्डलों को स्वीकृति के अभाव में लागू नहीं हो सकता था।

(5) प्रान्तीय विधानमण्डल सम्बन्धी व्यवस्था-

नवीन संविधान के अधीन प्रान्तों में नवीन निर्वाचन होने तक वर्तमान विधानमण्डलों को ही कार्य करते रहने की व्यवस्था की गयी थी।

( 6 ) भारत मंत्री के पद की समाप्ति-

इस अधिनियमानुसार भारत मंत्री पद को समाप्त कर दिया गया था। उसके दायित्व राष्ट्रमण्डल के सचिव को सौंप दिये गये थे जो राष्ट्रमण्डलीय विषयों को देखेगा।

( 7 ) 1935 के भारत शासन अधिनियम के अधीन शासन संचालन-

यह व्यवस्था भी गयी थी कि जब तक संविधान सभाओं द्वारा नवीन संविधान का निर्माण नहीं होता, उस समय तक 1935 के भारत शासन अधिनियम के अधीन ही शासन चलता रहेगा। लेकिन परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक परिवर्तन कर दिये गये थे, जैसे गवर्नर जनरल एवं प्रान्तीय गवर्नरों के विशेषाधिकार एवं दायित्व, विधि निर्माण पर सम्राट को प्राप्त विशेषाधिकार, भारत मंत्री को प्राप्त शक्तियों आदि को समाप्त कर दिया गया था, जिससे अन्तरिम काल में दोनों का शासन सुचारू रूप से चल सके।

(8) देशी रियासतों पर ब्रिटिश सर्वोपरिता की समाप्ति-

भारत की देशी रियासतों पर से ब्रिटिश सार्वभौमिक या सर्वोपति सत्ता को समाप्त कर दिया गया और उन्हें किसी भी उपनिवेश में सम्मिलित होने एवं भावी सम्बन्धों को निर्धारित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता दे दी गयी थी।

( 9 ) ब्रिटिश सम्राट के अधिकारों एवं भारत सम्राट की समाप्ति-

ब्रिटिश सम्राट की पदवी से ‘भारत सम्राट’ शब्द को हटा दिया गया था। ब्रिटिश सम्राट को औपनिवेशिक विधियों पर निषेधाधिकार (Veto) के प्रयोग को समाप्त कर दिया गया था। नवीन उपनिवेशों के साथ ब्रिटिश सरकार के सम्बन्धों को संचालित करने का दायित्व ‘औपनिवेशिक विभाग’ को सौंप दिया गया।

इस अधिनियम के अनुसार 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान एवं 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के और लार्ड माउण्टबेटन भारतवर्ष के गवर्नर जनरल बने।

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