वर्तमान समय में देश में समाज के क्षेत्र में तथा शिक्षा के क्षेत्र में काफी असमानता पायी जाती है। उन्हें शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है। उन सबका संक्षेप में वर्णन प्रस्तुत –
1-प्रान्त प्रान्त की शिक्षा में अन्तर
हमारा देश विभिन्न प्रान्तों में बंटा हुआ है और शिक्षा का उत्तरदायित्व इन प्रान्तों पर छोड़ा गया है। इन प्रान्तों की शिक्षा में बड़ा अन्तर है। उदाहरण के लिए कश्मीर में सम्पूर्ण शिक्षा निःशुल्क है जबकि उत्तर प्रदेश में लड़कों के लिए केवल कक्षा 6 तक और लड़कियों के लिए कक्षा 10 तक निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। भिन्न-भिन्न राज्यों की शिक्षा के स्तर क्रम और पाठ्यचर्या में भी बड़ा अन्तर है। कहीं अंग्रेजी को प्रारम्भ से ही अनिवार्य बनाया गया है और कहीं अंग्रेजी को किसी भी स्तर पर अनिवार्य नहीं किया गया है। इसका अर्थ है कि सम्पूर्ण भारतवासियों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध नहीं हैं।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के उद्देश्य।
2-प्रान्त विशेष की शिक्षा में अन्तर-
इसलिए भी सामाजिक असमानता पायी जाती है। प्रान्त विशेष में भी स्थान-स्थान की शिक्षा में अन्तर दिखाई देता है। ग्रामीण क्षेत्रों में केवल प्राथमिक और निम्न माध्यमिक विद्यालयों की व्यवस्था है। कहीं-कहीं माध्यमिक विद्यालयों की भी व्यवस्था है। इनमें भी प्राय: कला वर्ग की शिक्षा की ही व्यवस्था होती है, वाणिज्य और विज्ञान वर्ग की शिक्षा का प्रबन्ध प्रायः नहीं होता। यह शैक्षिक अवसरों की असमानता नहीं तो और क्या है।
3-स्कूल और कॉलिजों का असमान वितरण-
हमारे देश में बच्चों के लिए स्कूल और कालिजों की संख्या भी कहीं अधिक, कहीं कम और कहीं बिल्कुल ही नहीं महाविद्यालय और विश्वविद्यालय तो राजनैतिक दवाओं पर ही खोले जाते हैं। किसी क्षेत्र में सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही प्रकार के स्कूलों कालिजों का बाहुल्य है और कहीं दूर-दूर तक कोई स्कूल-कॉलिज दिखाई नहीं देता।
महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये भारत छोड़ो आंदोलन का वर्णन।
4-स्थान विशेष पर विद्यालय-
विद्यालय की शिक्षा में अन्तर यहां पर स्थान विशेष पर भी जो विद्यालय होते हैं, उनके भवन, फर्नीचर, शिक्षण-सामग्री, शिक्षकों के स्तर और कार्य प्रणाली में बड़ा अन्तर है। पब्लिक स्कूलों का तो अपना एक आकर्षण है।
5-विद्यालयों में बच्चों से भेदभाव
प्राइवेट स्कूल प्राय: जाति और धर्म के आधार पर खोले जाते हैं। उनमें बच्चों को प्रवेश देते समय जाति और धर्म के आधार पर पक्षपात बरता जाता है प्रवेश के बाद भी भिन्न-भिन्न जाति के बच्चों के साथ भिन्न-भिन्न प्रकार का व्यवहार किया जाता है। निम्न वर्ग के बच्चों को प्रायः घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। वे असमानता को जन्म देते हैं।
6-विभिन्न दृष्टिकोण-
विद्यालयों में कार्यरत शिक्षक प्राय: भित्र-भिन्न धर्मों को मानने वाले होते हैं। उनकी राजनैतिक विचारधाराओं में भी अन्तर होता है। परिणामता वे सभी बच्चों के साथ एक-सा व्यवहार नहीं कर पाते। जिससे सामाजिक भिन्नता पायी जाती है।
भारत में शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति (Eauality of Educational apportunity in India)
हमारे भारत देश में यहां सभी बच्चों को समान शैक्षिक अवसर प्रदान करना असम्भव नहीं तो महाकठिन अवश्य है। फिर भी हम इस क्षेत्र में प्रयास तो कर सकते हैं। बच्चों को समान शैक्षिक अवसर शुलभ हो, इसके लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिए
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1-शिक्षा की राष्ट्रीय नीति-
शिक्षा की राष्ट्रीय नीति का पालन सभी प्रान्तों की सरकारों को करना चाहिए। उस स्थिति में सम्पूर्ण देश में समान स्तर की शिक्षा समान रूप से सुलभ होगी।
2-सामान्य और निःशुल्क शिक्षा
सम्पूर्ण देश के सामान्य एवं निःशुल्क शिक्षा की अवधि अथवा स्तर समान हो और प्रान्तीय सरकारों को इस नियम का सख्ती के साथ पालन करना चाहिए। इससे देश के सभी बच्चों की सुसुप्त शक्तियों को जगाया जा सकता है और उनको योग्यता के आधार पर आगे की शिक्षा सुलभ कराई जा सकती है।
3-स्कूल और कॉलिजों का समान वितरण-
प्रत्येक क्षेत्र में जनसंख्या की दृष्टि से स्कूल और कालिजों की संख्या निश्चित की जाय जिससे सभी बच्चे स्कूल में प्रवेश ले सकें। इनमें कला, वाणिज्य एवं विज्ञान सभी वर्गों का शिक्षा का प्रबन्ध होना चाहिए।
4-विद्यालयों के स्तर में समानता
किसी भी स्तर के विद्यालयों के लिए न्यूनतम साधन एवं उपलब्धियां निश्चित की जाय और उनका सख्ती के साथ पालन किया जाए। इस क्षेत्र में सरकार को विद्यालयों के भवन, पुस्तकालय, शिक्षण सामग्री व खेलकूद सामग्री आदि के लिए अनुदान देना चाहिए। समय-समय पर इन विद्यालयों का निरीक्षण किए जायें। विद्यालय अधिकारी न्यूनतम साधनों को जुटाने और न्यूनतम उपलब्धियों के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे।
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5-लड़कियों के लिए विद्यालय
हमारे देश में लड़के-लड़कियों को एक साथ पढ़ाना। उचित नहीं समझा जाता इसलिए प्राथमिक शिक्षा के बाद लड़कियों के लिए निम्न माध्यमिक, माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूल उनकी संख्या के अनुपात खोले जाएं। सच पूछिए तो बालिकाओं की शिक्षा बालकों की शिक्षा से अधिक महत्वशाली है। घर को सही स्वरूप देने, बच्चे (शिशु) के पालन एवं उसके व्यक्तित्व का निर्माण करने और घर से बाहर सभी क्षेत्रों में मनुष्य भांति काम करने में उनका सहयोग रहता है। की
6-उपेक्षित वर्ग की शिक्षा-
विकलांग बालकों जैसे, अंधे, गूंगे, बहरे, लंगड़े, लूले आदि तथा मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालकों के लिए अलग से विद्यालय होने चाहिए जंगली जातियों के बालकों की शिक्षा के लिए विशेष प्रकार के हॉस्टिल तथा निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। खाना बदोश, जैसे-पछाते, इनके कबीलों के साथ-साथ स्कूल चलने चाहिए। तात्पर्य यह है कि जहां ये कबीले अपना पड़ाव डालें वहीं इनके शिक्षकों का भी पड़ाव डालना चाहिए। तब हम कह सकते हैं कि हमरे राष्ट्र के सभी बालकों को शिक्षा के समान अवसर दिए हैं।
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