भारतीय समाज में स्त्रियों की प्रमुख समस्याएँ
भारतीय समाज में स्त्रियों जिन समस्याओं का सामना कर रही हैं, उनमें से प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित हैं
(1) अशिक्षा की समस्या
मध्यकाल से भारतीय समाज में स्त्रियों की शिक्षा पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। यद्यपि अंग्रेजी शासनकाल में तथा स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् इस और काफी ध्यान दिया गया है, फिर भी सियों में शिक्षा का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में कहीं कम है। 1991 ई. की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर 53.11 प्रतिशत थी। पुरुषों के लिए यह 163.56 प्रतिशत तथा स्त्रियों के लिए यह 39.42 प्रतिशत थी।
(2) कुपोषण की समस्या
अशिक्षा, अज्ञानता एवं अन्धविश्वास के साथ-साथ भारतीय स्त्रिया कुपोषण का भी शिकार हैं। कई परिवारों में तो लड़कों के खाने-पीने पर लड़कियों के खाने पीने की तुलना में अधिक ध्यान दिया जाता है। परम्परागत रूप से भी भारतीय स्त्री से यह आशा की जाती रही है कि जब उसका पति, परिवार के अन्य पुरुष व बच्चे भोजन कर लें, उसे भोजन करना चाहिए। कई बार तो सियाँ बचा हुआ बासी भोजन खाती हैं। मातृत्व के समय भी उनकी अच्छी तरह से देखभाल नहीं की जाती है। जो स्त्रियों मजदूरी तथा असंगठित क्षेत्र में कार्य करती हैं उनको भी मातृत्व के समय किसी प्रकार की सुविधाएँ नहीं दी जाती हैं।
(3) लिंग भेदभाव –
भारतीय समाज पितृसत्तात्मक समाज है। इसलिए इसमें पुरुषों की प्रधानता पाई जाती है तथा पुरुषों एवं स्त्रियों के आदर्शों में काफी अन्तर पाया जाता है। जन्म से ही लड़के तथा लड़की में अन्तर किया जाने लगता है। सड़के के जन्म पर खुशी मनाई जाती है। लड़की के जन्म पर ऐसा नहीं किया जाता। साथ ही, लड़के तथा लड़की के पालन-पोषण के तौर-तरीके भी काफी भिन्न है। सामान्यतः लड़के को बुढ़ापे का सहारा माना जाता है तथा उसकी शिक्षा एवं रोजगार पर विशेष बल दिया जाता है। लड़की को पराया धन माना जाता है तथा इसीलिए उसकी शिक्षा पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। उसे गृहस्थी के कार्य में निपुण बनाने का प्रयास किया जाता है। यह लिंग भेदभाव लड़के-लड़की तक ही सीमित नहीं है अपितु माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहिन आदि की स्थिति एवं भूमिकाओं में भी स्पष्टतः देखा जा सकता है।
(4) यौन शोषण
भारतीय समाज में स्त्रियों की प्रमुख समस्या उनका यौन शोषण एवं उत्पीड़न है। वैसे तो यौन शोषण केवल भारतीय समाज तक ही सीमित नहीं है अपितु संसार के सभी देशों में पाया जाता है, फिर भी भारतीय समाज की प्रकृति को सामने रखते हुए यह स्त्रियों की प्रमुख समस्या कही जा सकती है। यह यौन शोषण छेड़-छाड़ से लेकर वेश्यावृत्ति तक के रूप में देखा जा सकता है। आज विज्ञापनों में अर्द्धनग्न स्त्रियाँ इस प्रकार से दिखाई जाती है। अश्लील साहित्य बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों तथा बुक स्टालों पर खुलेआम बेचा जाता है। चलचित्रों में यौन शोषण स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। कैबरे डांस केवल चलचित्रों में ही नहीं दिखाए जाते अपितु अनेक होटलों में भी इनका प्रचलन बढ़ता जा रहा है।
(5) स्त्रियों के प्रति हिंसा की समस्या
भारतीय समाज में लियों की एक अन्य प्रमुख समस्या उन पर होने वाली हिंसा में वृद्धि की है। सी के प्रति हिंसा परिवार के भीतर तथा परिवार के बाहर दोनों रूपों में देखी जा सकती है। पति द्वारा मार-पीट की घटनाएँ निरन्तर बढ़ती जा रही हैं। वे किसी से कोई शिकायत भी नहीं कर पाती हैं क्योंकि दोष अन्ततः स्त्रियों का ही माना जाता है। स्त्रियों के प्रति होने वाली हिंसा के अन्य रूप छेड़-छाड़ से लेकर बलात्कार तक हो सकते हैं। स्त्रियो के प्रति हिंसा का एक अन्य गम्भीर रूप बालिका वध की समस्या के रूप में प्रचलित है। दक्षिण में आज भी अनेक बालिकाओं की जन्म लेने से पहले अथवा जन्म लेने के पश्चात् हत्या कर दी जाती है। दहेज न ला पाने के कारण लियों पर होने वाला अत्याचार भी उनके प्रति हिंसा का ही प्रतीक माना जा सकता है। इस प्रकार, आज भी भारतीय स्त्रियाँ विविध प्रकार की हिंसा का शिकार है।
(6) विवाह विच्छेद की समस्या
भारतीय स्त्रियों की एक अन्य समस्या विवाह विच्छेदअथवा तलाक की है। परम्परागत रूप से पुरुषों को अपनी पत्नियों को तलाक देने का अधिकार प्राप्त था। ‘मनुस्मृति’ में कहा गया है कि यदि कोई स्त्री शराब पीती है, हमेशा पीड़ित रहती है, अपने पति की आज्ञा का पालन नहीं करती है तथा धन का सर्वनाश करती है तो मनुष्य को उसके जीवित रहते हुए भी दूसरा विवाह कर लेना चाहिए। पुरुषों की ऐसी स्थिति होने पर स्त्री को उन्हें छोड़ने का अधिकार प्राप्त नहीं था। तलाकशुदा स्त्री को आज भी समाज में एक कलंक माना जाता है तथा हर कोई व्यक्ति उसी को दोष देता है चाहे यह सब उसके शराबी, जुआरी व बदचलन पति के कारण ही क्यों न हुआ हो।
उसे सब बुरी नजर से देखते हैं तथा आजीविका का कोई साधन न होने के कारण वह यौन शोषण का शिकार बन जाती है। तलाक के बाद उसके सामने अपना अपने बच्चों का पेट भरने की समस्या उठ खड़ी होती है। समाज के कुछ दलाल ऐसी स्त्रियों को बहला-फुसला कर वेश्यावृत्ति जैसे अनैतिक कार्य करने पर विवश कर देते हैं।
(7) अज्ञानता एवं अन्धविश्वास
अशिक्षा के कारण भारतीय स्त्रियाँ सरलता से अन्धविश्वासों का शिकार हो जाती हैं। उनमें अशिक्षा के कारण अज्ञानता भी अधिक पाई जाती है। इसीलिए अज्ञानता एवं अन्धविश्वास को भारतीय स्त्रियों की एक समस्या माना गया है। अज्ञानता एवं अन्धविश्वास के कारण ही स्त्रियाँ तान्त्रिकों, दोंगी साधुओं तथा पीरों-फकीरों के चक्कर में सरलता से पड़ जाती हैं जो उनका आर्थिक शोषण करते हैं तथा कई बार तो ये उनके द्वारा यौन शोषण की भी शिकार हो जाती हैं।
(8) दहेज की समस्या
भारतीय समाज में देहज प्रथा भी एक प्रमुख समस्या मानी जाती है। दहेज के कारण लड़की के माता-पिता को कई बार अनैतिक साधनों को अपनाकर उसके दहेज का प्रबन्ध करना पड़ता है। ज्यादा दहेज न सा पाने के कारण अनेक नवविवाहित वधुओं को सास सुसर तथा ननद आदि के ताने सुनने पड़ते हैं। कई बार तो उन्हें दहेज की वेदी पर जिन्दा बलि चढ़ा दिया जाता है। दहेज प्रथा के कारण बेमेल विवाहों को भी प्रोत्साहन मिलता है तथा वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन अत्यन्त संघर्षमय हो जाता है। दहेज न लाने वाली वधुओं को विविध प्रकार का शारीरिक एवं मानसिक कष्ट सहन करना पड़ता है। पढ़े-लिखे माता-पिता भी इस बुराई का विरोध नहीं करते अपितु ज्यादा दहेज देना अपनी शान एवं प्रतिष्ठा समझते हैं।
(9) रोजगार की समस्या
परम्परागत रूप से भारतीय स्त्रियों का कार्य क्षेत्र पर की चहारदीवारी तक ही सीमित था इसलिए उनके बाहर कार्य करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था। केवल कुछ निम्न जातियों की स्त्रियाँ घर से बाहर कृषि कार्य अथवा अन्य घरेलू कार्य करती थी। अंग्रेजी शासनकाल में स्रियों में भी शिक्षा का प्रचलन हुआ तथा उन्हें घर से बाहर नौकरी करने के अवसर उपलब्ध हुए। उन्हें पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है, मातृत्व के समय अवकाश एवं अन्य सुविधाओं से उन्हें वंचित रखा जाता है तथा कई बार वे अपने सेवायोजकों के द्वारा यौन शोषण का शिकार हो जाती हैं।
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(10) विधवाओं की समस्या
भारतीय समाज में विधवाओं की सामाजिक स्थिति अत्यन्त निम्न रही है। हिन्दू समाज में तो सी का पति ही सब कुछ माना जाता है तथा उसे भगवान व देवता तक का पद प्रदान किया जाता है। पति की मृत्यु के पश्चात् विधवा स्त्री की स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो जाती है तथा परिवार और समाज के सदस्य उसे हीन दृष्टि से देखते हैं। उन्हें पुनर्विवाह करने की अनुमति भी प्रदान नहीं की जाती है जिसके कारण उन्हें पति के परिवार में ही अपमानजनक, उपेक्षित, नीरस एवं आर्थिक कठिनाइयों से भरा हुआ जीवन व्यतीत करना पड़ता है। विधवाओं का किसी भी शुभ अवसर पर जाना अपशकुन माना जाता रहा है।
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