भारतीय समाज पर इस्लाम के प्रभाव की विवेचना कीजिए।

भारतीय समाज पर इस्लाम का प्रभाव-दोस्तों आज इस आर्टिकल में बहुत ही मत्वपूर्ण विषय पर आज हम चर्चा करेंगे और भारतीय समाज पर इस्लाम के प्रभाव की विवेचना इस आर्टिकल में शेयर करेंगे जिसे आप सभी को अवश्य पढने चाहिए।

(1) हिन्दू धर्म पर प्रभाव-

यह सच है कि मुस्लिम शासकों के प्रभाव से लाखों हिन्दुओं ने इस्लाम को ग्रहण किया लेकिन हिन्दू धर्म में सुधार की प्रक्रिया भी इस्लाम के प्रभाव का ही परिणाम थी। इस समय पहली बार धार्मिक रूढ़ियों, जातिगत विभेदों और छुआछूत के विरोध में अनेक नये सम्प्रदायों और पन्थों का विकास आरम्भ हुआ। कबीर पन्थ, दादू पन्थ, सिख धर्म तथा दक्षिण भारत का लिंगायत आन्दोलन इस्लाम के प्रभाव से ही विकसित हुए। स्वामी रामानन्द, रैदास, तुकाराम, चैतन्य और बल्लभाचार्य ने भी जातिगत भेदभाव के विरुद्ध नये धार्मिक सम्प्रदायों को विकसित किया। इस प्रकार इस्लाम के प्रभाव से ही हिन्दू धर्म में सुधार और परिमार्जन की प्रक्रिया आरम्भ हुई।

श्रीनिवास के जाति विषयक क्षेत्रीय अध्ययन का उल्लेख।

(2) जाति व्यवस्था पर प्रभाव-

इस्लामी संस्कृति के प्रभाव से भारतीय समाज को बचाने के लिए आरम्भ में जातिगत नियमों में कठोरता उत्पन्न हुई लेकिन बाद में इसी संस्कृति के फलस्वरूप जाति व्यवस्था के नियमों का विरोध भी आरम्भ हो गया। इस कार्य में मुस्लिम सूफी संतों ने विशेष योगदान किया।

(3) स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव-

इस्लाम के प्रभाव से भारत में स्त्रियों की स्थिति बहुत प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई। इस समय पर्दा प्रथा को बहुत प्रोत्साहन मिला। मुस्लिम सैनिकों से हिन्दू स्त्रियों को बचाने के लिए बाल-विवाह को आवश्यक समझा जाने लगा। विधवा पुर्नविवाह पर कठोर नियंत्रण लगा दिये गये। जौहर प्रथा के रूप में सती प्रथा जैसी अमानवीय समस्या में वृद्धि हुई। स्त्रियों को सभी सामाजिक और आर्थिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया जिससे वे स्वतंत्र जीवन व्यतीत न कर सकें।

(4) परिवार व्यवस्था पर प्रभाव-

मुस्लिम संस्कृति पूर्णतया एक पुरुष प्रधान संस्कृति है जिसमें स्त्रियों की स्वतंत्रता का कोई महत्व नहीं है। इसके प्रभाव से संयुक्त परिवार के कर्ता ने भी तानाशाही शासन की तरह व्यवहार करना आरम्भ कर दिया। फलस्वरूप स्त्रियाँ शिक्षा से पूरी तरह वंचित होकर परिवार के अन्दर गुलामी का जीवन व्यतीत करने को विवश होने लगीं।

भारतीय समाज के शास्त्रीय दृष्टिकोण की विसंगतियों का वर्णन।

(5) विवाह संस्था पर प्रभाव-

परम्परागत रूप से हिन्दू विवाह एक धार्मिक संस्कार था। इस्लाम के प्रभाव से विवाह जैसे संस्कार को पूरा करने के लिए मुस्लिम रीति-रिवाजों को ही अपनाया जाने लगा। वर द्वारा मुँह पर सेहरा बाँधना, लड़की को डोली में बिठाकर विदा करना तथा चूड़ीदार पायजामा और शेरवानी पहनकर धार्मिक क्रियाएँ पूरी करना आदि इस प्रभाव को स्पष्ट करते हैं। इस्लाम के प्रभाव से हिन्दुओं में भी विवाह विच्छेद का प्रचलन बढ़ा। सम्भ्रान्त हिन्दू अनेक स्त्रियों से विवाह करना प्रतिष्ठा की बात समझने लगे।

(6) सांस्कृतिक व्यवहारों पर प्रभाव-

इस्लाम के प्रभाव से हिन्दुओं ने न केवल मुस्लिम वेश-भूषा को अपनाया बल्कि मांसाहारी भोजन का प्रचलन भी बढ़ने लगा। इस समय उर्दू भाषा को जानने वाले व्यक्ति को ही शिक्षित माना जाने लगा। शिष्टाचार, अभिवादन और वार्तालाप के तरीके भी एक बड़ी सीमा तक मुस्लिम संस्कृति से प्रभावित हुए।

समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।

(7) कला और संगीत पर प्रभाव-

इस्लामी संस्कृति के प्रभाव से कब्बाली, गजल और ठुमरी संगीत का अभिन्न अंग बन गयीं। स्थापत्य कला को इस्लामी संस्कृति ने इतना अधिक प्रभावित किया कि मंदिरों के निर्माण में भी बीच में उसी तरह के बड़े-बड़े गुम्बद बनाये जाने लगे जैसे कि मस्जिदों में देखने को मिलते हैं। राम और कृष्ण की लीलाओं को ईरान की यूराइड चित्रकारी के द्वारा प्रदर्शित करना, कला पर इस्लामी संस्कृति के प्रभाव का स्पष्ट दाहरण है।

(8) दास प्रथा का विकास-

इस्लामी संस्कृति के सामन्तवादी प्रकृति ने रतीय समाज में भी दास प्रथा को विकसित किया। अरबी संस्कृति की तरह यहाँ दासों का खुले म क्रय-विक्रय सम्भव नहीं हो सका लेकिन सामन्तों और जमींदारों ने बेगार-प्रथा के रूप में निर्धन और असहाय ग्रामीणों का अमानवीय शोषण करना आरम्भ कर दिया।

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