बाल अपराध क्या है?-बाल अपराध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। अपराध का आरम्भ प्रायः बाल अपराध से ही होती है। विश्व के विभिन्न समाजों में पिछले विभिन्न दशकों से बाल अपराधियों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है। प्रत्येक समाज अपने सदस्यों के व्यवहारों को नियंत्रित करने तथा सामाजिक व्यवस्था की स्थिरता एवं निरंतरता बनाये रखने के उद्देश्य वश कुछ औपचारिक कानूनों का निर्माण करता है। इन कानूनों का उल्लंघन यदि वयस्क सदस्य करते हैं, तो उनके कार्यों को अपराध माना जाता है। किंतु इन्हीं कानूनों का उल्लंघन यदि निश्चित आयु से कम के सदस्यों द्वारा किया जाता है, तो उसे ‘बाल अपराध’ या ‘किशोर अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। अनेक गैर कानूनी समझे जाने वाले कार्य प्रायः खेल या मौजमस्ती में अवयस्कों द्वारा किये जाते है, तो कुछ बच्चे अपराध से संबंधित कार्य को समझ ही नहीं पाते। अतः उनके इन कार्यो को बाल अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।
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स्पष्ट है कि बाल अपराध एक अल्पायु व्यक्ति का वह कार्य है जो प्रत्यक्षतः कानूनों और अध्यादेशों के विरुद्ध होता है अर्थात बाल अपराध के अंतर्गत किसी बालक या किशोर व्यक्ति के गलत कार्य आते हैं जो कि संबंधित स्थान के कानून जो उस समय लागू हो, के द्वारा निर्दिष्ट आयु सीमा के अंतर्गत आते हैं।
बाल अपराध की परिभाषा
बाल अपराध की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-
1.प्रो. सुशीलचंद्र के अनुसार इसकी परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है कि “यह समाज विज्ञानों की वह शाखा है, जिसमें बालको के असामाजिक कार्यों का अध्ययन किया जाता है। प्रत्येक समाज चाहे वह उन्नत हो या अशिक्षित, सामाजिक मूल्यों के एक संग्रह को रखता है जो उसकी संस्कृति और विरासत को देने होती है और उस समाज के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, रुढ़ियों तथा सामाजिक आचरणों को परिभाषित करती है ताकि मौलिक मूल्यों की रक्षा हो सके। और वे टिक सके। इस प्रकार से स्थापित आदर्श आचरण, जो सामान्य सामाजिक आचरण होता है, से विचलन अपराधी आचरण का द्योतक होता है।”
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(2) गिलिन और गिलिन के अनुसार- “समाजशास्त्र की दृष्टि में वयस्क अपराधी या बाल अपराधी एक ऐसा व्यक्ति है जो ऐसे कार्य का अपराधी है जिसको वह समूह जिसे अपना विश्वास कार्यान्वित की शक्ति है समाज के लिए हानिकारक समझता है, इसलिए ऐसा कार्य निषिद्ध भी है।”
बाल अपराध के कारण
बाल अपराध के कारण निम्नलिखित है-
1.पितृत्व तथा अवांछनीय संतानें- अवैध माता-पिता से जब बच्चा उत्पन्न होता है तो उसे समाज किसी भी प्रकार की मान्यता नहीं देता और न समाज उसे किसी प्रकार का आदर सम्मान अथवा प्रेम ही देता है। इस बच्चे का दायित्व माँ पर होता है। परिणामस्वरूप माँ स्वयं नौकरी करके इसका पालन-पोषण करती है, किंतु इस पर नियंत्रण रखने में असमर्थ रहती है। इस तरह बच्चे में एक तरफ समाज के प्रति घृणा और द्वेष की भावना उत्पन्न होती है और दूसरी तरफ संपूर्ण व्यवहार असामाजिक बन जाता है और ये दोनों ही उसे अंततः बाल अपराधी बना देते हैं।
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2. माता-पिता द्वारा उपेक्षा- इस प्रकार के परिवार जहाँ माता-पिता सौतेले होते हैं अथवा बच्चे अधिक होते हैं वहाँ सामान्यतया बच्चों की उपेक्षा देखी जाती है। उपेक्षित परिवार में बालक के व्यक्तित्व का विकास अच्छी तरह नहीं हो पाता है। इन पर नियंत्रण रखना भी कठिन होता है। इस प्रकार के परिवार के बच्चे अधिकतर घर के बाहर रहते हैं, जिससे उनकी संगति निरंतर बिगड़ती जाती है।
3.परिवार की गिरी हुई आर्थिक दशा- अधिकतर बाल अपराध निर्धन परिवारों की उपज है, क्योंकि इन परिवारों में बच्चों का पालन-पोषण उचित ढंग से नहीं होता है और न ही इन्हें दो समय का भोजन मिलता है। बस्तियों में निर्धन बालकों में बाल अपराध की अधिक विशेषताएँ देखी जाती है इस तरह परिवार की आर्थिक दशा बाल अपराधियों की दशा में वृद्धि करने अथवा कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका अभिनीत करती हैं।
4.शारीरिक कारण- डॉ० सिरिल बर्ट बाल- अपराधियों का अध्ययन करके इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि 70 प्रतिशत बालक शारीरिक अयोग्यताओं तथा अभावों से ग्रसित थे। इसी तरह अन्य विचारकों का मत है कि शारीरिक गुणों में किसी प्रकार की कुरूपता पायी जाती है तो उनमें हीनभावना उत्पन्न होती है। सामान्यतः दूसरे बच्चे इनको चिढ़ाते है। इनकी प्रतिक्रिया उनमें होती है और वे साथियों से बदला लेने की सोचते है। इस प्रतिरोधयुक्त भावना के परिणामस्वरूप उनमें अपराधी प्रवृत्तियों का विकास होने लगता है।
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अपराध और बाल अपराध में अंतर
अपराध और बाल अपराध में निम्न अंतर है-
- अपराधी का एक निश्चित उद्देश्य होता है, परंतु बाल अपराध में ऐसा होना आवश्यक नहीं अर्थात बाल अपराधी अपने उददेश्य के प्रति सजग हो, यह आवश्यक नहीं है।
- प्रायः अपराध गंभीर प्रकृति के होते हैं, जैसे किसी की हत्या करना, डाका डालना, चोरी करना, जालसाजी करना आदि। परंतु बाल अपराध प्रायः कम गंभीर होते हैं जैसे मारपीट करना, साधारण चोरी करना, जेब काटना, किसी बच्चे को नदी या नहर में फेंक देना, दूसरों को तंग करना, किसी मोटर का शीश तोड़ देना आदि।
- अपराधी प्रायः ऐसे कार्य करता है जिनसे उसे लाभ हो, परंतु बाल अपराधी अनेक ऐसे कार्य करता है जिनसे कोई लाभ नहीं होता, जैसे- अश्लील बातें करना, सड़कों पर आवारागर्दी करना आदि।
- अपराध के लिए मुख्य रूप से स्वयं की इच्छा होती है, परंतु बाल अपराधी बनने में पारिवारिक एवं मनोवैज्ञानिक कारकों का अधिक महत्त्व होता है।
- अपराधी के लिए कठोर से कठोर दण्ड की व्यवस्था की जाती है, परंतु बाल अपराधी के लिए कठोर दण्ड व्यवस्था नहीं की जाती। उसे मनोवैज्ञानिक तरीकों से सुधारने का प्रयत्न किया जाता है।
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