बाल-अपराधियों को कैसे सुधारा जा सकता हैं ? बाल अपराध रोकने के सरकारी प्रयासों की पूरी जानकारी।

जब किसी बच्चे द्वारा कोई कानून विरोधी या समाज विरोधी कार्य किया जाता है तो उसे किशोर अपराध या बाल अपराध कहते हैं। अपराध में बालको के असामाजिक व्यवहारों को लिया जाता है अथवा बालकों के ऐसे व्यवहार को जो लोक कल्याण की दृष्टि से अहितकर होते हैंए ऐसे कार्यों को करने वाला बाल अपराधी कहलाता है।

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रॉबिन्सन के अनुसार आवारागर्दी भीख माँगना निरूद्देश्य इधर-उधर घूमना उदण्डता बाल अपराधी के लक्षण है।

रॉबिन्सन

गिलिन एवं गिलिन के अनुसार समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से एक बाल अपराधी वह व्यक्ति है जिसके व्यवहार को समाज अपने लिए हानिकारक समझता है और इसलिए वह उसके द्वारा निषिद्ध होता है।

गिलिन एवं गिलिन

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निम्न माध्यमों द्वारा बाल अपराधियों को सुधारा जा सकता है-

1. माता-पिता के माध्यम द्वारा- माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपराधी बालकों के प्रति निम्न बातों पर ध्यान दें-

  1. यदि बालक ने प्रथम बार अपराध किया है तो उसके साथ कठोरता का व्यवहार न करके सहानुभूतिपूर्ण ढंग से समझा दिया जाय कि यह उसका अनुचित कार्य था।
  2. अपराधी बालक की रुचियों को माता-पिता को महत्त्व देना चाहिए और उनको संतुष्ट करने का प्रयास करना चाहिए।
  3. माता-पिता को अपराधी बालक की आलोचना नहीं करनी चाहिए।

2. मनोवैज्ञानिकों के माध्यम द्वारा- मनोवैज्ञानिकों के विचार में अपराधों का जन्म अनेक मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है, अतः निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-

  1. बालकों के मस्तिष्क में जो-जो भावनात्मक ग्रन्थियाँ पड़ जाती हैं उनको समाप्त करने का प्रयास किया जाय।
  2. बाल अपराधों को रोकने के लिए अग्रवर्णित विधियाँ भी अपनाये जायँ- (क) नान-डाइरेक्टिव विधि, (ख) साइकोड्रामा विधि, (ग) सोशियोड्रामा विधि, (घ) स्वतंत्र साहचर्य विधि, (ङ) स्वप्न- विश्लेषण विधि।

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3. सरकार के माध्यम द्वारा- बाल अपराध प्रत्येक समाज के लिए एक गंभीर समस्या है इसलिए उन्हें सुधारने में सरकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सरकार द्वारा बाल अपराधियों को सुधारने के लिए विभिन्न सुधारात्मक संस्थाओं की स्थापना भी की कती है। इनमें से उल्लेखनीय हैं- किशोर या बाल न्यायालय, बोटल स्कूल, प्रोबेशन, सुधार स्कूल तथा बाल बंदीगृह आदि। इन संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य बाल अपराधियों को दण्डित करना नहीं होता, बल्कि उन्हें सुधारना होता है। भारत में भी कुछ संस्थाएँ सक्रिय रूप से सुधार कार्य में संलग्न हैं।

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