प्राचीन कालीन शिक्षा व्यवस्था – प्रारम्भिक शिक्षा का प्रारम्भ 5 वर्ष की आयु से माना गया था। इस आयु में विशेष रूप से उच्चारण और प्रारम्भिक गणित का ज्ञान कराया जाता था। चरित्र विकास के लिए प्रेरणात्मक तथा चरित्र निर्माण सम्बन्धी कहानियाँ परिवार में सुनायी जाती थीं। यह शिक्षा परिवार में ही होती थी। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा की व्यवस्था की जाती थी। इसके लिए गुरुकुल में प्रवेश की आयु 8 या 9 वर्ष निश्चित थी। गुरुकुल प्रवेश- गायत्री पाठ, चूड़ा कर्म तथा उपनयन संस्कार द्वारा होता था। पूरी शिक्षा का कार्यकाल सामान्यतः 16 वर्ष का था। इस प्रकार 25 से 30 वर्ष के बीच शिक्षा समाप्त हो जाती थी। शिक्षा की समाप्ति पर समावर्तन संस्कार होता था जिसमें गुरु द्वारा शिष्यों को सामाजिक कर्त्तव्यों का ज्ञान कराया जाता था।
शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। आप किस उद्देश्य को सबसेअधिक महत्वपूर्ण समझते हैं?
प्राचीन कालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्य
डॉ० ए० एस० अल्तेकर के कथनानुसार- “ईश्वर भक्ति तथा धार्मिक भावना, चरित्र निर्माण व्यक्ति का विकास, नागरिक तथा सामाजिक कर्त्तव्यों का पालन, सामाजिक कुशलता लाना तथा राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण एवं प्रसार प्राचीन भारतीय शिक्षा के उद्देश्य एवं आदर्श थे।” इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों ने अन्य कुछ उद्देश्यों जैसे- आत्मनियन्त्रण करना, चित्तवृत्तियों का निरोध आदि भी गिनायें है। परन्तु वास्तव में ये उद्देश्य डॉ० अल्तेकर के उद्देश्य में कहीं न कहीं अवश्य आ गये हैं।
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