प्रतिभाशाली बालकों का समूह
प्रतिभाशाली बालकों, को विशिष्ट बालकों की श्रेणी में ही सम्मिलित किया जाता है, क्योंकि वह अपनी प्रखर एवं तीव्र बुद्धि के कारण, सामान्य बालकों से अलग होते है। इन बालकों की बुद्धि फ्राय: 130 से अधिक होती है। विद्यालय में मात्र एक प्रतिशत छात्र हीप्रतिभाशाली श्रेणी के अन्तर्गत आते हैं। यदा-कदा तो इन बालकों हेतु विशिष्ट प्रकार के परीक्षण, निर्देशन तथा समायोजन की आवश्यकता होती है। यदि इन बालकों को विद्यालय एवं परिवार में समुचित निर्देशन प्रदान किया जाए तो यह बालक योग्य एवं प्रतिभावान बन सकते हैं, तथा यदि ऐसे बालकों को यथा समय समुचित निर्देशन न प्रदान किया जाए तो उनकी प्रतिभा उन्हें अनैतिक दिशा की ओर भी अग्रसरित कर सकती है तथा वे समाज एवं राष्ट्र के लिए घातक हो सकते हैं।प्रतिभाशाली बालक के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कालसनिक ने लिखा है- “वह प्रत्येक बालक, जो अपनी आयु वर्ग के बालकों में किसी योग्यता से अधिक हो तथा जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नवीन योगदान दे।” शिक्षा परिभाषा कोष के अनुसार- ‘वह बालक, जिसकी मानसिक आयु. अपने आयु वर्ग के अनुपात में औसत से बहुत अधिक हो या ऐसे बालक जो अपनी आयु के बालकों के सामान्य अथवा विशेष योग्यता में उत्तम हो, उसे प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है। संगीत, कला अथवा किसी अन्य क्षेत्र में अधिक योग्यता रखने वाला वालक भी प्रतिभाशाली बालकों की श्रेणी के अन्तर्गत आता है।
अतः यह कहा जा सकता है कि प्रतिभाशाली बालक बुद्धि अथवा किसी अन्य योग्यता की दृष्टि से सामान्य बालकों से पृथक एवं विशिष्ट होते हैं। टरमन ने 140 से अधिक बुद्धिलब्धि वाले बालकों को प्रतिभाशाली बालक कहा है।
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प्रतिभाशाली दालकों के परस्पर ही अनेक प्रकार की विभिन्नताएं होती है। अतः इन बालकों की भी समस्याएँ विभिन्न प्रकार की होती है। इन समस्याओं का सम्बन्ध अधिगम एवं समायोजन से होता है। इन बालकों की योग्यता एवं प्रगति में सन्तुलन नहीं रह पाता। इनमें अहम का विकास होता है, परिवार, समाज एवं विद्यालय में समायोजित नहीं हो पाते, इन्हें अत्यधिक प्रशंसा, स्नेह एवं सहानुभूति न मिल पाने के कारण यह कभी-कभी गलत समूहों में सम्मिलित हो जाते है तथा अपनी प्रतिभा को नष्ट कर लेते हैं प्रतिभाशाली बालकों को यदि यथा एवं उचित समय निर्देशन न प्रदान किया जाए तो वह अपनी उत्तम बुद्धि का अनुचित प्रयोग करने लगते है तथा अनुशानहीनता गुटबन्दी में सम्मिलित होकर समाज विरोधी कार्य करने लगते हैं।
अतः प्रतिभाशाली बालकों की उपरोक्त समस्त समस्याएं, विभिन्न क्षेत्रों में समायोजन में अनेक प्रकार की भूमिकाओं का निर्वाह करती है। यह विभिन्न समस्याएं इस बात के लिए प्रेरित तथा बाध्य करती हैं। इन बालकों के निर्देशन हेतु समुचित रूप से विशेष प्रबन्ध किया जाए। समुचित निर्देशन के अभाव में इन बालकों में प्रतिभा एवं योग्यता का विकास नहीं हो जायेगा तथा अनुचित दिशा की ओर अप्रसारित होकर परिवार, समाज, राष्ट्र के लिए अभिशाप ही सिद्ध होंगे।
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