पुरुष प्रधानता की हानिकारक स्थिति का वर्णन
पुरुष प्रधानता समाज में पुरुष नियंत्रक एवं शासनकर्ता की भूमिका में रहने के कारण सामान्यतया अत्याचारी बन जाता है। पुरुष अपनी सारी मर्दानगी महिला वर्ग पर ही दिखाता है, चाहे वह घर में हो या घर से बाहर वह प्रायः अपना गुस्सा स्त्रियों पर ही उतारता है और कभी-कभी तो यह बहुत ही हिंसक हो जाता है। घर से बाहर वह दूसरों की बहन-बेटियों के साथ बलात्कार की घटना को भी अंजाम दे देता है। इस प्रकार की खबरों सो आजकल रोजाना अखवार व पत्र-पत्रिकाएँ भरी रहती हैं। वस्तुतः संवेदनशील पुरुषों को यह बात सुनना कितना बुरा लगता होगा कि “आज समाज में लड़कियों एवं महिलाओं को जंगली जानवरों से भी उतना डर नहीं है जितना कि पुरुष वर्ग से होता है।”
मानव तथा पशु समाज में जैविकीय अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
वास्तविकता यह है कि इस व्यवस्था में व्यक्ति धीरे-धीरे अपनी इंसानियत भी खोता चला जाता है। समाज में एक इंसान दूसरे इंसान को गुलाम बनाए, इससे बड़ी पीड़ा और सामाजिक त्रासदी क्या हो सकती है? रोती, गिड़गिड़ाती और दया की भीख मांगती महिला के साथ बलात्कार करना छोटी-छोटी लड़कियों के साथ बलात्कार करना, अपनी मंशा पूरी नहीं होने पर तेजाब छिड़कना, हत्या कर उसे अर्धकूप में डाल देना क्या यही इंसानियत के लक्षण हैं? इसलिए यह कहा जा सकता है कि नारीवाद पुरुष को इंसान बनाने में सहायता करता है। वर्तमान समाज में इसकी आवश्यकता भी है, क्योंकि आज कोई संवेदनशील पुरुष नारीवाद के इस संघर्ष में महिलाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहयोग कर रहे हैं ताकि नारीवाद अपने उद्देश्य में पूर्ण रूप में सफल हो सकें।