पुनर्समाजीकरण को समझाइये।

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पुनर्समाजीकरण का कार्य विसमाजीकरण के बाद ही सम्भव है। किसी व्यक्ति द्वारा पहले सीखे गये व्यवहार को भुल कर उसे नया व्यवहार सिखाना ही पुनर्समाजीकरण है। एक व्यक्ति अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अपने विचारों, मूल्यों, अभिवृत्तियों एवं व्यवहारों में नयी भूमिकाएँ ग्रहण करने के साथ-साथ परिवर्तन लाता जाता है इसे हम सतत् समाजीकरण कहते हैं, किन्तु यह परिवर्तन एकदम तेज व मौलिक हो तो उसे पुनर्समाजीकरण कहते हैं। ब्रूम एवं सेल्जनिक ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है पुनर्समाजीकरण मौलिक व तीव्र परिवर्तन की ओर संकेत करता है। इसमें पहले वाली जीवन-विधि के स्थान पर दूसरी जीवन-विधि अपनायी जाती है, जो कि पहले वाली से भिन्न एवं विरोधी होती है। अपराधियों का पुनर्वास, पापी व्यक्ति द्वारा धार्मिक जीवन व्यतीत करने की ओर अग्रसर होना, आदि इसके कुछ उदाहरण है। कम्युनिस्ट चीन में मन आरोपण द्वारा लोगों को साम्यवाद से परिचित कराया गया, यह भी पुनर्समाजीकरण ही है। ब्रूम तथा सेल्जनिक ने पुनर्समाजीकरण के लिए छ: बातों को आवश्यक माना है –

राजपूतों की उत्पत्ति का अग्निकुण्ड सिद्धान्त।

  1. व्यक्ति पर पूर्ण नियन्त्रण,
  2. पुनर्समाजीकरण किये जाने वाले व्यक्ति की पुरानी प्रस्थिति का त्याग करना, (3) उस व्यक्ति के पुराने ‘स्व’ को अनैतिक घोषित करना,
  3. व्यक्ति द्वारा स्वयं की आलोचना, समीक्षा तथा गलतियों को स्वीकार कर पुनर्समाजीकरण में भाग लेना,
  4. पुनर्समाजीकरण कराने वाले व्यक्ति के मित्र-समूह का उस पर दबाव एवं सहयोग प्राप्त होना,
  5. पुनर्समाजीकरण करने वाले व्यक्ति या संस्था का पुनर समाजीकरण कराने वाले व्यक्ति को दण्ड देने, पृथक् रखने एवं प्यार करने, आदि का पूरा अधिकार होना।

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