पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।।

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प्रत्येक निष्पक्ष व्यक्ति को विदित हो जाएगा कि प्रत्येक धर्म में महिला का स्थान पुरुष की अपेक्षा काफी नीचा है। समस्त त्यौहार, जैसे करवा चौथ, श्रावणी तीज, गणगौर, तिलवा चीय आदि का व्रत महिलाएँ अपने पति एवं बेटों की आयु एवं स्वस्थ जीवन के लिए रखती हैं। पितृसत्तात्मक समाज के कुछ व्यावहारिक पक्ष निम्नांकित हैं

  1. समाज में पति को परमेश्वर माना जाता है, चाहे वह शराबी, जुआरी अथवा परस्त्रीगामी ही क्यों न हो। किन्तु उसकी पत्नी को उसके लिए निर्धारित मापदण्डों पर खरे उत्तरना उसकी अच्छी पत्नी होने की निशानी मानी गई है।
  2. समाज में महिला को दाह संसार का हक न होने के कारण ही बेटों की चाहत व बेटियों की गंभीर उपेक्षा हुई है।
  3. जब एक महिला विधवा हो जाती है तो उसके सुहाग चिह्न बेरहमी से उतार दिए जाते हैं और उससे रंगीन वस्त्र पहनने तक का हक भी छीन लिया जाता है।
  4. समाज में बलात्कार जैसी घटनाएँ किसी महिला के साथ घट जाए तो उसका पति उसे प्रायः छोड़ देता है, किन्तु पति के परस्त्रीगामी हो जाने पर भी महिलाएँ ऐसा नहीं कर सकती।
  5. धर्म, रीति-रिवाज व परम्पराओं के कारण ही महिलाओं के मन में सुहाग चिह्न धारण करने की बात इतनी गहरी जमी हुई है कि नारी को उसे अपनाए बिना अपना जीवन असुरक्षित-सा लगने लगता है।
  6. विवाह के पश्चात् महिलाओं को सुहाग चिह्न धारण करना अनिवार्य है। पुरुषों के लिए ऐसी कोई अनिवार्यता एवं बाध्यता नहीं है। ये चिह्न इस बात के प्रतीक हैं कि यह महिला किसी पुरुष की अमानत हैं।
  7. समाज में एक महिला अच्छी गृहिणी, मां और पतिव्रता महिला सिद्ध होने की कोशिश में ही अपना पूरा जीवन गुजार देती है।.
  8. महिला के लिए, अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष से यौन सम्बन्ध स्थापित करने की छूट नहीं होती है, जबकि प्रायः पुरुष ऐसा करते देखे गए हैं और उन्हें समाज के लोग किसी प्रकार भी हीनभावना से नहीं देखते।
  9. प्राचीन समाज में सती प्रथा का चलन था अर्थात् पति के बिना महिला के अपने जीवन का कोई अर्थ ही नहीं रहता था, लेकिन पुरुषों के लिए इस प्रकार के नियम कभी नहीं रहे।

हिन्दी उपन्यास के स्वरूप एवं महत्व की विवेचना।

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