पारिवारिक निर्देशन का अर्थ (Meaning of family Guidance)
आज का युग वैज्ञानिक युग है। इस युग में वैज्ञानिक आविष्कारों ने समस्त क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इस प्रभाव से सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र भी अछूता नहीं रह गया हैं आज उद्योगों में विकेन्द्रीकरण होता जाता है तथा विभिन्न नये उद्योग प्रतिदिन स्थापित किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, जनसंख्या भी तीव्र गति से बढ़ रही है। फलस्वरूप अब परिवारों का सीमित है साधनों पर निर्भर रहना कठिन हो गया हैं यही कारण है कि परिवार के सदस्यों को जीविकोपार्जन हेतु अपने स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर जाना पड़ता है, परिणामस्वरूप परिवारों का शनी शनैः विघटन होता जा रहा है, प्राचीन मूल्यों के प्रति व्यक्तियों में अनास्था उत्पन्न हो रही है। इन सभी परिवर्तनों के परिणामस्वरूप आज पारिवारिक समस्याओं में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है। अतः इन विभिन्न समस्याओं के कारण आज व्यक्तियों को पारिवारिक निर्देशन की अत्यधिक आवश्यकता की अनुभूति हो रही है।
हमारे देश के संविधान में महिलाओं के अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख एवं समानता के कारण आज महिलाओं की कार्य सम्बन्धी भूमिकाओं में परिवर्तन हो रहे हैं। अब स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर के काम एवं बालकों के पालन पोषण तक ही सीमित नहीं रह गया है वरन् आज स्त्रियाँ, राजनीतिक क्रियाकलापों, सामाजिक सम्पर्क एवं रोजगार इत्यादि में हिस्सा लेकर, पुरुषों से किसी भी बात में पीछे नहीं है। इसके अतिरिक्त वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों ही ऐसी है, जिन्होंने स्त्रियों को रोजगार करने हेतु विवश कर दिया है। आज दिन-प्रतिदिन वस्तुओं एवं खाद्य सामग्रियों के बढ़ते हुए मूल्यों तथा अन्य व्यक्तियों के सदृश जीवन स्तर को बनाये रखने की भावना के कारण, परिवार मात्र एक व्यक्ति की आय से निर्वाह नहीं कर सकता है। इस समस्या ने भी, स्त्रियों को नौकरी करने के लिए विवश कर दिया है।
आज हमारी शिक्षा पाश्चात्य मूल्यों एवं सिद्धान्तों पर आधारित है। अतः वर्तमान शिक्षा ने नवयुवकों को पाश्चात्य मूल्यों से रंग दिया है। नवयुवकों की विवाह के सम्बन्ध में प्राचीन के स्थान पर नवीन अवधारणाएं बन रही है। विवाह पर पारिवारिक सामाजिक एवं धार्मिक संस्कारों का प्रभाव कम होता जा रहा है। आज विवाह को एक सामाजिक बन्धन के रूप में नहीं किया जाता वरन् इसे आय का एक माध्यम माना जाने लगा, जिसमें दो प्रणाली वैयक्तिक सन्तोष का अनुभव कर सकें।
आज स्त्रियों को विभिन्न प्रकार की पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त है जैसे विवाह की, बालक पैदा करने की, व्यक्तिगत सम्पत्ति रखने की, उत्तराधिकारी बनाने की इत्यादि। स्त्रियाँ जीवन के समस्त क्षेत्रों में कार्य कर सकती है। उनकी संख्या में बढ़ोत्तरी से यह स्पष्ट होता है कि आज स्त्रियाँ प्राचीन मान्यताओं एवं बन्धनों को अस्वीकार करने लगी है।
प्राचीन समय में स्त्रियों द्वारा, बालकों के पालन-पोषण का कार्य किया जाता था, अब वहीं कार्य दाइयों या शिशुगृहों व नर्सिंग होम के माध्यम से किया जाने लगा। बाहरी जीवन में भी स्त्रियाँ अब पुरूषों के समकक्ष चलने लगी है तथा घर का काम नौकरों द्वारा किया जाता है। इसके अतिरिक्त नवीन साधनों तथा उपकरणों से काम करने के कारण उनके पास अधिक समय शेष रह जाता है। इस समय का सदुप्रयोग वे अपनी आय में वृद्धि करने हेतु तथा घूमने-फिरने में कर सकती है। यह प्रवृत्ति मध्यम वर्ग के परिवारों में धीरे-धीरे अधिक विकसित हो रही है।
सामुदायिक भावना एवं इसके महत्व को बताइए।
यह समस्याएं ऐसी है जो बदलती हुई परिस्थितियों के साथ-साथ सम्पूर्ण परिवारों में व्यापक रूप से विकसित होगी या उत्पन्न होगी। इन्हीं विभिन्न समस्याओं के कारण पारिवारिक निर्देशन की आवश्यकता को व्यक्तियों द्वारा अधिक अनुभव किया जायेगा ।
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