पर्यावरणीय शिक्षा का महत्व
पर्यावरणीय शिक्षा का महत्व – पर्यावरण के बारे में सोच जब से प्रारम्भ हुआ और उस सोच के आधार पर पर्यावरण के संरक्षण, सुरक्षा और सुधार की बात जब बद्धिजीवियों ने बतायी रखी तभी से इस हेतु कोई नैदानिक तथा उपचारात्मक तरीके अपनाने पर बल दिया गया। यह बात मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम (1972) में आयोजित हुए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भी रखी गयी और वहां ही इस बात का प्रस्ताव पारित किया गया कि पर्यावरणीय समस्याओं को सुलझाने और उन्हें दूर करने के लिए पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की संभावना को मूर्त रूप दिया जाये।
निश्चय ही जिन आधार पर या आधार बिन्दुओं पर ( बेलग्रेड चार्टर 1975) तिबलिसी अतदेशीय सम्मेलन (1977) ने पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्रम को प्रस्तुति दी और पर्यावरण शिक्षा के कार्यक्रम की उपादेयता स्पष्ट की, वह सभी पर्यावरण शिक्षा के महत्व के अंतर्गत आते हैं, उनका विवरण और समेकित हो सकने वाले बिन्दु काफी विस्तृत हो सकते हैं, अतः मोटे रूप में हम निम्न प्रकार पर्यावरण शिक्षा के महत्व रख सकते हैं
स्त्री-शिक्षा के ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत कीजिए
- लोगों को पर्यावरण की सत्य और तथ्यात्मक जानकारी देना।
- जानकारी के आधार पर संभावित कारणों का पता लगाना।
- उन समस्याओं की जानकारी देना जो निकट भविष्य में घट सकती हो और जनजीवन की विपदाओं का कारण बन सकती हैं।
- समस्याओं के हल खोजना, बताना/ जानना ।
- समस्याओं को समझने और उनसे निपटने अथवा हल खोजने हेतु मनुष्य को तैयार करना।
- पर्यावरण संरक्षण, सुरक्षा और सुधार के कार्यों में लग जाने हेतु प्रेरित करना।
- भावी पीढ़ी के भविष्य को समझ कर ही कार्यों को करने की समझ देना।
- स्वयं सुखी जीयें और दूसरे प्राणी भी सुख से जीयें, वाली भावना को आत्मसात करने को तैयार करना।
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