परिवार यह स्थल है जहाँ से बालक का सर्वांगीण विकास होता है। अतः परिवार का बाल विकास में महत्त्व निम्नलिखित है
(1) शारीरिक विकास – मात्र पौष्टिक भोजन ही शारीरिक विकास का आधार नहीं है, बल्कि साथ ही साथ माँ का स्नेह और पिता का दुलार भी चाहिए। स्वस्थ पारिवारिक वातावरण यह कहा जाता है जिसमें परिवार में परस्पर संबंध भावात्मक होते हैं, सभी एक दूसरे से प्रेम और सहानुभूति रखते हैं. ऐसा वातावरण ही बालक के विकास में सहयोगी की भूमिका निभाता है। जब माँ स्नेह से उठाती है, प्रेम से खिलाती है तथा लोरियाँ और स्नेह की धमकियाँ देकर सुलाती है, तो बालक सुख की नींद सोता है और जब उठता है तो प्रसन्नचित रहता है। मन तथा तन दोनों का अन्योन्याश्रित संबंध होता है। अतः बालक के स्वाथ्य पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
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(2) सुरक्षा – परिवार आधार व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करता है। बालक परिवार में एक नहीं कई लोगों का स्नेह प्राप्त करता है। उसे परिवार में भाई-बहनों का मजबूत संबंध मिलता है। जिसमें एकाकीपन की भावना या असहाय होने की भावना नहीं आती है। वास्तव में परिवार वह संस्था है जहाँ सुख-दुःख सभी लोग मिलकर उपभोग करते हैं।
(3) कौशलों का विकास – परिवार द्वारा विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास होता है, जैसे-बोलना, शिष्टाचार, सामाजिकता, समायोजन एवं अच्छा और मान्य व्यवहार। बालक पारिवारिक आर्थिक कौशलों का भी ज्ञान प्राप्त कर लेता है।
(4) सभ्यता एवं संस्कृति-सभ्यता और संस्कृति की शिक्षा बालक परिवार द्वारा अनुकरण के माध्यम से प्राप्त करता है।
(5) मानसिक विकास- बालक का बौद्धिक विकास सबसे अधिक परिवार में होता है। कठोर व्यवहार के अभिभावक के सामने बालक अपनी भावनाओं एवं जिज्ञासा उत्पन्न नहीं करते। हैं, वे डर से इसे दबा देते हैं। जबकि उदार व्यवहार के अभिभावकों के सामने अपनी समस्याओं और जिज्ञासा को व्यक्त कर उसकी संतुष्टि पाकर उनका मानसिक विकास होता है।
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