परामर्श का क्या अर्थ है? परामर्श की परिभाषा बताइये।

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परामर्श का अर्थ (Meaning of Counselling)

परामर्श एक प्राचीन शब्द है और शब्द को परिभाषित करने के प्रयास प्रारम्भ से ही किए गए हैं। वैबस्टर शब्दकोष के अनुसार “परामर्श का का आशय पूछताछ, पारस्परिक तर्क वितर्क अथवा विचारों का पारस्परिक विनिमय है।” इस शाब्दिक आशय के अतिरिक्त परामर्श के अन्य पक्ष भी हैं जिनके आधार पर परामर्श का अर्थ स्पष्ट हो सकता है। उनके विद्वानों ने इन पक्षों पर प्रकाश डालकर परामर्श का अर्थ स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

परामर्श के सम्बन्ध में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके आधार पर सेवार्थी को वैयक्तिक दृष्टि से ही सहायता प्रदान की जाती है। परिभाषा परामर्श की

परिभाषा अनेक विद्वानों ने निम्नलिखित प्रकार से दी है

(1 ) गिलबर्ट रेन के अनुसार “परामर्श सर्वप्रथम एक व्यक्तिगत सन्दर्भ का परिसूचक (1) अनुसार-” है। इसे सामूहिक रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है सामूहिक परामर्श जैसा शब्द असंगत है। तथा व्यक्तिगत परामर्श जैसा शब्द भी संगत नहीं है क्योंकि परामर्श सदैव व्यक्तिगत रूप में ही सम्पन्न हो सकता है।”

( 2 ) जॉज ई0 मायर्स के अनुसार- “परामर्श का कार्य तब सम्पन्न होता है, जब यह सेवार्थी को अपने निर्णय स्वयं लेने के लिये बुद्धिमत्तापूर्ण विधियों का उपयोग करके सहायता प्रदान करता है। परामर्श स्वयं उसके लिये निर्णय नहीं लेता हैं। वस्तुतः इस प्रक्रिया में सेवार्थी हेतु स्वयं निर्णय लेना उतना ही असंगत है जितना कि बीजगणित के शिक्षण में शिक्षार्थी के लिये प्रदत्त समस्या का समाधान शिक्षक के द्वारा स्वयं करना है।”

(3) राबिन्स के अनुसार परामर्श के अन्तर्गत उन समस्त परिस्थितियों को सम्मिलित किया जाता है जो वातावरण से समायोजन हेतु अपेक्षित होती हैं। उनके ही शब्दों में- “परामर्श के अन्तर्गत वे समस्त परिस्थितियाँ सम्मिलित कर ली जाती हैं जिनके आधार पर परामर्श प्राप्तकर्ता को अपने वातावरण में समायोजन हेतु सहायता प्राप्त होती है। परामर्श का सम्बन्ध दो व्यक्तियों से होता है-परामर्शदाता एवं परामर्श प्रार्थी का सम्बन्ध दो व्यक्तियों से होता है परामर्शदाता एवं परामर्शप्रार्थी अपनी समस्याओं का समाधान बिना किसी सुझाव के स्वयं ही करने में सक्षम नहीं हो सकता है। उसकी समस्याओं का समाधान, बिना किसी सुझाव की आवश्यकता होती है और ये वैज्ञानिक सुझाव ही परामर्श कहलाते है।”

( 4 ) एडमण्ड विलियमसन ने परामर्श के विभिन्न पक्षों का व्यापक स्तर पर अध्ययन किया तथा कहा कि “एक प्रभावी परामर्शदाता उसी को कहा जाता है जो अपने विद्यार्थियों को अपनी सेवाओं को प्राप्त करने की दिशा में प्रोत्साहित कर सके तथा जिसके फलस्वरूप उन्हें सन्तोष एवं सफलता प्राप्त हो सके। वस्तुतः परामर्श तो एक प्रकार का ऐसा समाधान है जिसके आधार पर सेवार्थी को अपनी समस्याओं का समाधान करने से सम्बन्धित अधिगम होता है।”

( 5 ) हम्फ्री एवं ट्रेक्सलर ने परामर्श को समस्या समाधान में सहायक बताया है। परन्तु उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया है कि किस प्रकार की समस्याओं के सामधान में परामर्श की प्रक्रिया सहायक है। उनके शब्दों में “परामर्श व्यक्ति की समस्या समाधान हेतु विद्यालय या अन्य संस्थानों के कर्मचारियों का उत्सवों का प्रयोग है।” विली तथा एण्डू (Willy and Andrew) के अनुसार- “ये पारस्परिक रूप से सीखने की प्रक्रिया है तथा इसके अन्तर्गत दो व्यक्ति सम्मिलित होते हैं-एक सहायता प्राप्तकर्ता और दूसरा वह व्यक्ति जो इस प्रथम व्यक्ति की सहायता इस प्रकार करता है कि उसका अधिकतम विकास हो सके।”

( 6 ) जोन्स (Jones ) ने परामर्श को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया है जिसके अन्तर्गत परामर्शप्रार्थी को प्रत्यक्ष एवं व्यक्तिगत रूप में सहायता प्रदान की जाती है। उनके अनुसार परामर्श की प्रक्रिया निर्देशीय अधिक है। इस प्रक्रिया में विद्यार्थी से सम्बन्धित समस्त तथ्यों का संकलन एवं विद्यार्थी से सम्बन्धित अनुभवों के अध्ययन पर बल दिया जाता है। विद्यार्थी से सम्बन्धित किसी विशिष्ट परिस्थिति के सन्दर्भ में किया जाता है इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि परामर्श के आधार पर परामर्शप्रार्थी की समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है वरन् उसे स्वयं ही इस योग्य बना दिया जाता है कि वह अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सके।

(7) कॉम्बस (Combas ) ने परामर्श की प्रक्रिया में, परामर्शदाता के स्थान पर परामर्शप्रार्थी को अधिक महत्व प्रदान किया है। इस प्रकार उनके अनुसार यह एक परामर्शप्रार्थी केन्द्रित प्रक्रिया है।

(8) कॉम्बस (Combas) के अनुसार ब्रोवर (Brower) ने भी इस प्रक्रिया को परामर्शप्रार्थी केन्द्रित ही स्वीकार किया है। उनके अनुसार इस प्रक्रिया के अन्तर्गत पारस्परिक विचार-विमर्श, बातचीत एवं सौहार्दपूर्ण तर्क-वितर्क के आधार पर व्यक्ति को इस प्रकार सहायता प्रदान की जाती है कि वह अपनी समस्याओं से सम्बन्धित निर्णय स्वयं ले सके। पारस्परिक विचार विनिमय के लिए सौहार्द्रपूर्ण वातावरण का सर्जन एवं समानता के धरातल पर बातचीत करना आवश्यक होता है। इस विचार विनिमय का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति में निहित योग्यताओं की जानकारी एवं उनका अधिकतम विकास होता है। इस प्रकार विचार-विनिमय के निरन्तर दोनों ही एक दूसरे पर अपने विचार आरोपित करने का प्रयास नहीं करते हैं।

(9) रूथ स्ट्रैग के शब्दों में परामर्शप्रार्थी में आत्म बोध की योग्यता का विकास किया जाता है। इसके आधार पर ही व्यक्ति को यह ज्ञात हो पाता है कि वह अपनी समस्या का समाधान किस प्रकार कर सकता है? उसकी समस्या का स्वरूप क्या है? तथा समस्या के समाधान हेतु कौन सी योग्यताएं उसमें विद्यमान हैं। स्ट्रैग के अनुसार- “परामर्श प्रक्रिया एक संयुक्त प्रयास है। विद्यार्थी का उत्तरदायित्व स्वयं को समझाने की चेष्टा करना तथा उस मार्ग का पता लगाना है जिस पर उसे जाना है तथा जैसे ही समस्या उत्पन्न हो, उसके समाधान के लिए आत्म विश्वास का विकास होना है। परामर्शदाता का उत्तरदायित्व इस प्रक्रिया में जब कभी छात्र को आवश्यकता हो, सहायता प्रदान करना है।”

(10) रोलों में (Rollo May) के अनुसार, परामर्श की प्रक्रिया में परामर्शप्रार्थी के स्थान पर परामर्शदाता की भूमिका को केन्द्रित मानते हैं। उनके शब्दों में “परामर्श प्रार्थी को सामाजिक दायित्वों को सहर्ष स्वीकार कराने में सहायता करना, उसे साहस देना, जिससे उसमें हीन भावना उत्पन्न न हो तथा सामाजिक एवं व्यावहारिक उद्देश्यों की प्राप्ति में उसकी सहायता करना है।”

(11) रोलो में के विपरीत इरिक्सन (Erickson) ने परामर्श को परामर्शमा केन्द्रित मानते हुए लिखा है कि “ऐक परामर्श साक्षात्कार व्यक्ति से व्यक्ति का सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति अपनी समस्याओं तथा आवश्यकताओं के साथ, दूसरे व्यक्ति के पास सहायता हेतु जाता है।”

निर्देशन से आप क्या समझते हैं?

अतः इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि परामर्श के बारे में जानने के लिए हमें इसकी विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषा ही सबसे महत्त्वपूर्ण है। जो परामर्शत्व के बारे में हमें जानकारी देती है।

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