निर्देशन प्रतिमान का अर्थ
निर्देशन प्रतिमान का अर्थ बी०आर० जुआइस ने शिक्षण प्रमिमान की परिभाषा इस प्रकार की है- “शिक्षण प्रतिमान अनुदेशन की रूपरेखा (Instruction designs) माने जाते हैं। इसके अन्तर्गत विशेष उद्देश्य प्राप्ति के लिये विशिष्ट परिस्थिति का उल्लेख किया जाता है जिसमें छात्र व शिक्षक की अन्तः प्रक्रिया इस प्रकार की हो कि उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाया जा सकें।”
शिक्षण प्रतिमान तथा शिक्षण आव्यूह (Teaching Strategies) दोनों एक ही कार्य करते है। दोनों ही शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये विशिष्ट शैक्षिक वातावरण उत्पन्न करते है. परन्तु कोई भी शिक्षण आव्यूह सहायक प्रणाली (Support System) को विकसित नहीं करती है। शिक्षण के लिये परीक्षण आवश्यक क्रिया मानी जाती है, बिना परीक्षण के शिक्षण प्रक्रिया अधूरी रहती है। शिक्षण प्रतिमान की सहायक प्रणाली महत्वपूर्ण होती है इस प्रकार शिक्षण प्रतिमान
परीक्षण को भी समान महत्व देते हैं और मूल्यांकन प्रणाली (Support System) को विकसित भी करते है। शिक्षण प्रतिमान शिक्षण व्यूह रचना की अपेक्षा अधिक व्यापक होते है।
शिक्षण प्रतिमान में शिक्षण की विशिष्ट रूपरेखा का विवरण होता है जिसके सिद्धान्तों की पुष्टि प्रयोगों के निष्कर्ष पर आधारित होती है। प्रतिमान का प्रारूप मुख्यता छ प्रकार की क्रियाओं को सम्मिलित करता है। यह क्रियायें अधोलिखित हैं
- निर्देशन की निष्पतियों को व्यावहारिक रूप देना।
- समुचित उद्दीपन की परिस्थितियों का चयन करना जिससे छात्र अपेक्षित अनुक्रिया कर सकें तथा सहायता प्रदान कर सकें।
- उन परिस्थितियों का विशिष्टीकरण करना जिनमें छात्रों की अनुक्रियाओं को देख सकें।
- छात्रों की निष्पत्ति के लिये मानदण्ड व्यवहारों को निर्धारित करना।
- छात्र तथा वातावरण के मध्य अन्ता प्रक्रिया की परिस्थितियों के लिये युक्तियों का विशिष्टीकरण करना।
- छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन होने पर परिस्थितियों तथा युक्तियों में सुधार तथा परिवर्तन करना।
निर्देशन प्रतिमान की स्वयं सिद्ध कल्पना (Postulate) यह है कि निर्देशन की निष्पत्तियों को निश्चित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है प्रत्येक उद्देश्य की प्राप्ति विशिष्ट परिस्थितियों के उत्पन्न करने से की जा सकती है।
समाजशास्त्र और इतिहास के मध्य सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
इस प्रकार के निर्देशन प्रतिमान शिक्षक के लिये अधिक उपयोगी हो सकते हैं। शिक्षक इनका उपयोग पाठ्यक्रम की योजना में, छात्र अध्यापक को अन्ता प्रक्रिया की निर्देशन की रूपरेखा बनाने में तथा विशिष्ट सहायक सामग्री की रचना करने में भली प्रकार कर सकता है।
निर्देशन प्रतिमान के आधारभूत तत्व
एक प्रतिमान के साधारणतः चार मूल तत्व होते हैं। प्रतिमान की रूपरेखा में चारों तत्वों की व्याख्या एक साथ की जा सकती है। ये चारों इस प्रकार हैं
- उद्देश्य (Focus)
- संरचना (Syntax)
- सामाजिक प्रणाली (Social System) तथा
- सहायक प्रणाली (Support System)
(1 ) उद्देश्य (Focus)- उद्देश्य से तात्पर्य उस बिन्दु से है जिसके लिये प्रतिमान विकसितकिया जाता है। शिक्षण के लक्ष्य तथा उद्देश्य ही शिक्षण प्रतिमान के उद्देश्य को निर्धारित करते है। शिक्षण प्रतिमान का उद्देश्य ही केन्द्र बिन्दु माना जाता है। निर्देश का उद्देश्य सुनिश्चित किया जाता है।
(2 ) संरचना (Syntax) – निर्देशन प्रतिमान की संरचना में शिक्षण सोपान की व्याख्या की जाती है। इसके अन्तर्गत निर्देशन क्रियाओं तथा युक्तियों की व्यवस्था का क्रम निर्धारित किया जाता है। निर्देशन की क्रियाओं की व्यवस्था इस प्रकार की जाती है जिससे सीखने की ऐसी परिस्थितियों उत्पन्न की जा सके जिनसे उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके। छात्रों तथा शिक्षक की अन्तः प्रक्रिया के प्रारूप को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित किया जाता है।
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