निर्देशन के प्रकार
सभ्यता के आदि काल से ही निर्देशन का प्रयोग किसी न किसी रूप में किया जाता रहा है। प्रारम्भ से लेकर अब तक व्यक्ति अथवा समाज ने जितनी भी प्रगति की, उस प्रगति की गति को तीव्र करने में अन्य महत्वपूर्ण कारकों के साथ-साथ निर्देशन ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। जैसे-जैसे व्यक्ति एवं समाज की समस्याओं का “क्षेत्र विस्तृत हुआ है, वैसे-वैसे निर्देशन के क्षेत्र में व्यापकता होती गई है। वर्तमान समय में औद्योगिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के परिणाम स्वरूप सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक व्यवसायिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए है। पुरातन सभ्यता एवं संस्कृति में निर्धारित मानदण्डों के स्थान पर नवीन मूल्यों का उदय निरन्तर होता चला जा रहा है। व्यक्ति के समक्ष यह एक जटिल समस्या उत्पन्न हो गयी है कि वह किस प्रकार के मूल्यों एवं आदशों को अपने जीवन का अंग बनाकर प्रगति की दिशा में आगे बढे। विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों के फलस्वरूप शिक्षा, व्यवसाय, स्वास्थ्य, अवकाश के उपयोग, पारिवारिक सम्बन्ध आदि क्षेत्रों में भी उसे समस्याओं के समाधान की आवश्यकता पहले की अपेक्षा अधिक अनुभव हो रही है निर्देशन एक ऐसा उपक्रम है जिसका उद्देश्य व्यक्तियों की समस्याओं के समाधान हेतु सक्षम बनाना ही है क्योंकि समस्याएँ जीवन के विविध क्षेत्रों से सम्बन्धित होता है। अतः उन क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए विद्वानों के द्वारा निर्देशन के अनेक प्रारूप निर्धारित किये गये हैं। निर्देशन की समुचित व्यवस्था एवं समस्याओं से वंचित आकलन की दृष्टि से निर्देशन के इन समस्त प्रारूपों अथवा प्रकारों पर विचार करना सतत् प्रतीत होता है।
प्राक्टर द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण –
सत् (1930) में विलियम मार्टिन प्रॉक्टर ने अपनी पुस्तक ‘शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन’ में निर्देशन के छा रूप प्रस्तुत किये हैं। इनके अनुसार निर्देशन के यह रूप निम्नलिखित हैं
- व्यवसायिक निर्देशन (Vocation Guidance)
- शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)
- व्यक्तिगत निर्देशन (Personal Guidance)
- सामाजिक एवं नागरिक कार्यों में निर्देशन (Guidance for Social and Civil activities)
- स्वास्थ्य एवं शारीरिक समस्याओं से सम्बन्धित निर्देशन (Guidance related to the health and physical activities)
- निर्माण से सम्बन्धित कार्यों में निर्देशन(Guidance in character building actvities)
निर्देशन के उपरोक्त प्रकारों का विश्लेषण करने के उपरान्त यह ज्ञात होता है कि शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन को निर्देशन के सर्वमान्य प्रकारों के अन्तर्गत स्वीकार किया जा सकता है. परन्तु शेष प्रकार के निर्देशन को व्यक्तिगत एवं सामाजिक निर्देशन के अन्तर्गत सम्मलित किया जा सकता है। सामाजिक एवं नागरिक कार्यों से सम्बन्धित निर्देशन में, सामाजिक निर्देशन अन्तर्गत तथा स्वास्थ्य, चरित्र एवं अवकाश के समय के उपयोग से सम्बन्धित निर्देशन को व्यक्तिगत निर्देशन की परिधि में रखा जा सकता हैं।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में शिक्षा के नूतन आयामों का वर्णन कीजिए।
बीयर का वर्गीकरण –
सन् (1932) में ‘जॉन एम0 ब्रीवर ने अपनी पुस्तक ‘एजूकेशन एवं गाइडेन्स’ में एक नवीन सूची प्रकाशित की, जिसके आधार पर उन्होंने निर्देशन के 10 प्रकारों का उल्लेख किया निर्देशन के ये 10 प्रकार निम्नलिखित है
- धार्मिक निर्देशन (Religious Guidance) के ?.
- व्यावसायिक निर्देशन (Vocational Guidance)
- शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)
- नागरिकता के लिए निर्देशन (Guidance for Citizenship)
- वैयक्तिक उमति सम्बन्धी निर्देशन (Guidance in personal well being)
- घरेलू सम्बन्धों में निर्देशन (Guidance for home relationship)
- अवकाश एवं मनोरंजन के लिए निर्देशन (Guidance for leisure and recreation)
- सांस्कृतिक कार्यों से सम्बद्ध निर्देशन (Guidance related to cultural activities)
- सहयोग एवं विचार सम्बन्धी निर्देशन (Guidance in right doing)
- उचित कार्य करने के लिए निर्देशन (Guidance in right doing)
जीवर द्वारा उल्लिखित निर्देशन के प्रारूपों के अन्तर्गत, शैक्षिक एवं व्यवसायिक निर्देशन के अतिरिक्त अन्य समस्त प्रकार के निर्देशनों को व्यक्तिगत एवं सामाजिक निर्देशन की श्रेणी में रखा जा सकता है तथा निर्देशन के समस्त प्रकारों को केवल चार प्रकार शैक्षिक, व्यवसायिक, सामाजिक एवं व्यक्तिगत निर्देशन में समाहित किया जा सकता है।
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