शिक्षा द्वारा सांस्कृतिक विरासत का अर्थ
शिक्षा द्वारा सांस्कृतिक विरासत से आशय है कि हमारी प्राचीन संस्कृति तथा परम्पराओं से हमें जो आदर्श पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त हुए हैं उन्हें हम वर्तमान समय में भी थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ अपनाते चले आ रहे हैं।
सांस्कृतिक विरासत और शिक्षा में सम्बन्ध-
शिक्षा तथा संस्कृति का अटूट सम्बनध है। हमारी संस्कृति तथा उसकी विरासत को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाने तथा उसका संरक्षण करने का कार्य शिक्षों के द्वारा ही किया जाता रहा है। हमारे शिक्षा के केन्द्र अर्थात् विद्यालय स्वयं सांस्कृतिक विरासत का उत्कृष्ट उदाहरण है। यद्यपि आधुनिकता के कारण तथा पाश्चात्य प्रभाव के कारण हमने अपने शिक्षा केन्द्रों के प्राचीनतम स्वरूप में आमूल-चूल परिवर्तन कर लिया है तथापि शिक्षा की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अंग के रूप में आज भी गुरु तथा शिष्य की उपस्थिति अनिवार्य बनी हुई है। सांस्कृतिक विरासत तथा शिक्षा के सम्बन्ध को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं
- शिक्षा हमारी सांस्कृतिक विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करती है।
- शिक्षा के द्वारा हम आज भी अपनी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्य बनाए हुए है।
- हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रभाव व्यक्तित्व निर्माण पर पड़ सकता है।
- शिक्षा हमारी प्राचीन संस्कृति की मूल धारणा के साथ कोई छोड़-छाड़ नहीं करके उसको और अधिक समृद्धि प्रदान कर रही है।
- हमने आदिकाल से आज तक विभिन्न विषयों का जो ज्ञान अर्जित किया है वह हमारीप्राचीन सांस्कृतिक विरासत का ही अंग है।
- गुरु-शिष्य परम्परा, अतिथि सत्कार, संयुक्त परिवार, संयम तथा त्याग, परोपकार विश्वबन्धुत्व के महत्व को आज भी शिक्षा के द्वारा एक स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ते तथा पढ़ाते चले आ रहे है।
सांस्कृतिक विरासत के हस्तान्तरण से सम्बन्धित कार्य
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण एवं हस्तांतरण करना शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य है। शिक्षा यह कार्य किन रूपों में करती है, इसे संक्षेप में, निम्नवत व्यक्त किया जा सकता है-
(1) सांस्कृतिक प्रतिमानों का परिशोधन-युग सापेक्ष पुरातन सांस्कृतिक प्रतिमानों में परिशोधन करना अत्यन्त आवश्यक होता जा रहा है। वैश्विक परिप्रेक्ष्य में समय के साथ-साथ चलने हेतु यह आवश्यक है कि सांस्कृतिक प्रतिमानों को नया कलेवर प्रदान किया जाय। क्योंकि रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, आध्यात्मिक मान्यताएं अब भौतिकवादी मूल्यों से आच्छादित हो गयी है। सामाजिक परिवर्तनों के अनुकूल अपने सांस्कृतिक प्रतिमानों में बदलाव लाकर ही भूमण्डलीकरण के युग में व्यक्ति और राष्ट्र वैश्विक प्रतिस्पद्धों में हिस्सेदारी कर सकते हैं।
(2) सांस्कृतिक प्रतिमानों का संरक्षण-शिक्षा हमें संस्कृति से ही परिचित नाहीं कराती, बल्कि सांस्कृतिक प्रतिमानों को संरक्षित करने का मंतव्य भी देती है। शिक्षा सभ्यता एवं संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। हमारी संस्कृति में जो भद्र और कल्याणकारी तत्व है। उनकी उपयोगिता, वांछनीयता से शिक्षा परिचित कराती है। उनके हटने से उपजने वाली समस्याओं से हमें अवगत कराती है
मानव जीवन में शिक्षा के कार्य बताइए।
(3) सांस्कृतिक प्रतिमानों का हस्तान्तरण- व्यक्ति समाज का एक अभिन्न अंग है। प्रत्येक समाज का अपना सांस्कृतिक प्रतिमान होता है। इसके अनुरूप जीवन-यापन करके व्यक्तित अपने जीवन को नियंत्रित और निर्देशित करता है। प्रत्येक समाज के लोगों की यह अभिलापा होती है कि हम जिन सांस्कृतिक प्रतिमानों को आत्मसात किये है उसी के अनुरूप हमारी आने वाली पीढ़ियां भी बर्ताव करें। इससे हमारी पहचान अनादिकाल तक बनी रहेगी। समाज को इस अभिलाषा की पूर्ति का कार्य शिक्षा करती है।
(4) सभ्यता का संरक्षण- शिक्षा संस्कृति के साथ-साथ सभ्यता के संरक्षण का कार्य भी करती है। प्रत्येक समाज का यह प्रयत्न होता है कि वह अपनी सभ्यता को किसी भी कीमत पर विनष्ट न होने दे, क्योंकि सभ्यता समाज की सबसे प्राचीन अर्जित विरासत होती है। सभ्यता एवं संस्कृति एक दूसरे से अविच्छिन्न रूप से संबद्ध होते हैं। जहाँ सभ्यता बाह्य पक्षको इंगित करता है, वहीं संस्कृति आन्तरिक रूप को प्रकट करता है। जब शिक्षा संस्कृति का संरक्षण करती है तो सभ्यता भी संक्षिप्त होती है।
(5) सांस्कृतिक प्रतिमानों के सृजन- वर्तमान समय में समाज का स्वरूप अत्यन्त विकृत होता जा रहा है। हमारे सांस्कृतिक विरासत के परम्परागत मूल्य अधोपतन के शिकार होते जा रहे हैं उनके स्थान पर पश्चात्यवादी सांस्कृतिक मान्यताएं उभर रही है। ऐसी परिस्थिति में परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार नये सांस्कृतिक मूल्यों का अन्वेषण और सृजन का कार्य शिक्ष द्वारा किया जाता है।