देवपाल की उपलब्धियों का विस्तरीत वर्णन
देवपाल की उपलब्धियों देवपाल अपने पिता धर्मपाल की मृत्यु के पश्चात् सन् 810 ई. में पालवंश के सिंहासन बैठा। वह अपने पिता धर्मपाल के समान एक योग्य एवं महान् शासक था। उसकी माता रण्णादेवी थी जो परबत नामक कूट राजा की पुत्री थी। खालनपुर अभिलेख से विदित होता है कि धर्मपाल का त्रिभुवनपाल नामक एक और पुत्र था, जिसके लिए युवराज कहा गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि धर्मपाल के शासन काल में ही युवराज त्रिभुवनपाल की आकस्मिक मृत्यु हो गयी और उसका छोटा भाई देवपाल उत्तराधिकारी हुआ। देवपाल की विजय का उल्लेख हमें भागलपुर अभिलेख तथा मुंगेर अभिलेख से मिलता है। देवपाल का सेनापति जयपाल था जो उसका चचेरा भाई था। बादल स्तम्भ लेख से विदित होता है कि देवपाल का साम्राज्य बहुत विस्तृत था। देवपाल ने अपने मन्त्री दर्भमणि की सहायता से रेवा (नर्मदा नदी) से लेकर हिमालय तक विजय प्राप्त की थी।
देवपाल की उपलब्धियाँ (विजय)
पाल शासक देवपाल ने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया। इस शासनकाल में उसने महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की। उसकी विजय का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है
गुर्जर प्रतिहारों से युद्ध
देवपाल के समकालीन गुर्जर प्रतिहार नरेश थे- नागभट्ट द्वितीय, रामभद्र एवं मिहिरभोज नागभट्ट द्वितीय से देवपाल के पिता धर्मपाल के समय से ही संघर्ष चल रहा था। देवपाल ने यह संघर्ष जारी रखा लेकिन उसे नागभट्ट पर विजय प्राप्त हुई अथवा नहीं, इस विषय पर कुछ स्पष्ट नहीं है। नागभट्ट द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् गुर्जर प्रतिहार वंश का शासक रामभद्र हुआ। रामभद्र एक निर्बल शासक था। ग्वालियर अभिलेख से विदित है जब रामभद्र के राज्य में आकमण हुए तो उसे सामन्तों से सहायता लेनी पड़ी। डॉ. बी. एन. पुरी का मत है कि बादल अभिलेख में जिस गुर्जर नरेश की पराजय का उल्लेख मिलता है, वह रामभद्र ही था अतः देवपाल ने रामभद्र पर विजय प्राप्त की थी। परन्तु डॉ. रमाशंकर का मत है कि बादल अभिलेख में पराजित नरेश मिहिरभोज है, रामभद्र नहीं।
गुर्जर प्रतिहार नरेश मिहिरभोज भी देवपाल का समकालीन था। ग्वालियर अभिलेख से विदित होता है कि मिहिरभोज ने देवपाल को पराजित किया था परन्तु बादल अभिलेख से विदित होता है कि गुर्जर प्रतिहार नरेश पराजित हुआ। इन अभिलेखों में इतना विरोधाभास है कि यह कह पाना कठिन है कि मिहिरभोज एवं देवपाल में से किसने सफलता प्राप्त की। डॉ. रमेश चन्द्र मजूमदार का कथन है कि ‘दूसरा प्रतिहार राजा भोज अपनी सफलताओं के बाद भी देवपाल से पराजित हुआ और अपने परिवार की ख्याति को तब तक सुरक्षित न रख सका, जब तक कि देवपाल जीवित रहा। इस प्रकार देवपाल ने तीन पीढ़ियों के प्रतिहार नरेशों से सफलतापूर्वक युद्ध किया और उत्तरी भारत में पालों की श्रेष्ठता कायम रखी।’
द्रविण विजय
बादल अभिलेख से विदित होता है कि देवपाल ने द्रविण नरेश को भी पराजित किया था। द्रविण नरेश कौन था, इस पर दो मत है
- (1) प्रविण राष्ट्रकूट थे यहाँ द्रविण का तात्पर्य दक्षिणी अभियान से है अर्थात् देवपाल ने द्रविण (राष्ट्रकूट) पर विजय प्राप्त की थी। इस समय राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष प्रथम था। सम्भव है कि राष्ट्रकूट पर विजय प्राप्त की है।
- (2) द्रविण पाण्ड्य थे– डॉ. रमेश चन्द्र मजूमदार का मत है कि यहाँ द्रविण का अर्थ पाण्ड्य नरेश श्रीमार श्री बल्लभ से हैं।
हूणों पर विजय-
बादल अभिलेख से यह भी विदित होता है कि देवपाल ने हूण राजा को भी पराजित किया था। इस हूण नरेश का नाम नहीं मिलता है। यदि बादल अभिलेख का कथन सही है, तो निश्चय ही वह उत्तरापथ का सबसे महत्वपूर्ण शासक था।
उत्कल विजय-
बादल अभिलेख से विदित होता है कि देवपाल ने उत्कलों को उखाड़ फेंका। इससे भी विदित होता है कि देवपाल ने उत्कल (उड़ीसा) पर अधिकार प्राप्त किया था।
कम्बोज विजय-
देवपाल के मुंगेर ताम्रपत्र लेख से विदित होता है कि उसने कम्बोज पर भी विजय प्राप्त की थी। यदि उसने हूण राज्य को पराजित किया तो इसमें सन्देह नहीं कि उसने हूण राज्य के पश्चिम में स्थित कम्बोज राज्य को अवश्य हराया होगा।
देवपाल का मूल्यांकन-
पालवंश का सबसे महान् विजेता देवपाल ही था। जब तक देवपाल जीवित रहा गुर्जर] हार नरेश किसी भी प्रकार की हानि न पहुंचा सके। उसने न केवल गुर्जर प्रतिहार पर विजय प्राप्त की, प्रत्युत् दक्षिण में लिंग, पश्चिम में विन्ध्य एवं मालवा तक उसका साम्राज्य विस्तृत था। उसने कामरूप, उड़ीसा, हूण एवं द्रविण पर भी विजय प्राप्त की थी।
वह एक कुशल प्रशासक भी था। उसके राज्य में दर्भमणि एवं केदार मित्र नामक योग्य मन्त्री थे। राजा अपने मन्त्रियों के परामर्श से कार्य करता था। देवपाल का शासन प्रबन्ध पाल शक्ति के चरमोत्कर्श को सूचित करता है। पाल शासक देवपाल का शासन काल बंगाल के इतिहास में सर्वाधिक गौरवशाली युग निर्माण व्यक्त करता है। ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश काल तक भारतीय राजनीति में इसके पहले या बाद में कभी भी बंगाल का इतना अधिक महत्व नहीं रहा। पाल वंश के इतिहास में यह ऐसा प्रथम अवसर प्राप्त हुआ था कि उसका प्रभाव उड़ीसा, असम तथा दक्षिण में दूर-दूर तक व्याप्त था। देवपाल केही समय में बौद्ध धर्म की पुनः प्रतिस्थापना हुई। उसने बौद्ध विहारों का निर्माण कराया तथा मगध में अनेक बौद्ध मन्दिरों का निर्माण करवाया। देवपाल का लम्बा शासन काल बंगाल के इतिहास में शान्ति एवं समृद्धि का काल माना जाता है।
अपने पिता एवं पितामह की भाँति देवपात भी बौद्ध मतावलम्बी था। देवपाल ने नालन्दा एवं विक्रमशिला के विकास में पूरा सहयोग दिया। बौद्ध मतावलम्बी होते हुए भी वह सब धर्मों का आदर करता था। अरब यात्री सुलेमान फारस की खाड़ी से होता हुआ भारत आया था। उसने 857 ई. में अपना यात्रा विवरण लिखा। सुलेमान देवपाल को ‘राही के नाम से पुकारता है। उसने लिखा है कि राही के पास 50,000 हावी थे।
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तिब्बती लेखक तारानाथ के अनुसार देवपाल ने बौद्ध धर्म की पुनः स्थापना की थी। उसने अनेक बौद्ध विहारों के निर्माण में योगदान दिया। उसने ओदन्त पुरी (बिहार) के प्रसिद्ध बौद्ध मठ का निर्माण कराया था। निःसन्देह वह एक महान शासक और महान व्यक्ति था।
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