जयसिंह सिद्धराज की उपलब्धिया
कर्ण के बाद उसकी पत्नी मयणल्लदेवी से उत्पन्न पुत्र जयसिंह सिद्धराज चौतुक्य वंश का एक प्रसिद्ध राजा बना। उसके कई लेख प्राप्त हुए है। राज्यारोहण के समय वह कम आयु का था, अतः उसकी माँ ने कुछ समय तक संरक्षिका के रूप में कार्य किया। उसका एक प्रमुख कार्य सोमनाथ की यात्र पर जाने वाले तीर्थयात्रियों के ऊपर लगने वाले कर को समाप्त करना था। जयसिंह एक महान योद्धा तथा विजेता था जिसने सभी दिशाओं में विजय प्राप्त की। उसकी
प्रारम्भिक सफलताओं में से एक सौराष्ट्र के आभीर शासक को पराजित करना था। मेरुतुंग लिखता है। कि आभीर शासक नवघन ने गिरनार से आगे बढ़ते हुए चालुक्य सेना को ग्यारह बार पराजित किया तथा वर्धमान (झल्चर) एवं दूसरे नगरों को घेर लिया। जयसिंह ने बारहवीं बार स्वयं उसके विरुद्ध अभियान करते हुए उसे मार डाला तथा अपनी ओर से सज्जन को सुराष्ट्र का दण्डापति नियुक्त किया दोहर्द लेख से भी इसकी पुष्टि होती है जहाँ बताया गया है कि जयसिंह ने सुराष्ट्र के राजा को बन्दी बना लिया था।
जयसिंह का दूसरा अभियान पश्चिम में मालवा के परमार राजाओं के विरुद्ध हुआ। मेरुतुंग के विवरण से पता चलता है कि जब जयसिंह अपनी राजधानी छोड़कर सोमेश्वर की यात्रा पर गया था तभी परमार शासक यशोवर्मन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसे रदि डाला तथा जयसिंह के मंत्री
सान्तु को अपने अधीन कर उससे अपने पाँव धुलवाये। जयसिंह जब वापस लौटा तो अत्यन्त कुद हुआ तथा उसने मालवराज से बारह वर्षों तक लगातार युद्ध किया। अन्त में उसने परमार शासक यशोवर्मन को युद्ध में पराजित कर उसे बन्दी बना लिया।
मालवा तथा दक्षिणी राजपूताना के परमार क्षेत्रों के चौलुक्य राज्य में सम्मिलित हो जाने के फलस्वरूप जयसिंह का चन्देल, कलचुरि गाहड़वाल, चाहमान आदि शासकों के साथ संघर्ष होना अनिवार्य हो गया। कुमारपालचरित से पता चलता है कि जयसिंह ने महोबा के शासक मदनवर्मा को पराजित किया था। कीर्तिकौमुदी के अनुसार यह धारा से कालिंजर गया था किन्तु दूसरी ओर चन्देल लेखों से पता चलता है कि मदनवर्मा ने ही जयसिंह को हराया था। ऐसा लगता है कि चन्देलों के साथ संघर्ष में जयसिंह सिद्धराज को कोई खास लाभ नहीं हुआ। जयसिंह ने अपने समकालीन शाकम्भरी चाहमान शासक अर्णोराज को पहले तो युद्ध में पराजित किया किन्तु बाद में उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर मित्रता स्थापित कर लिया। जयसिंह ने सिन्ध की भी विजय की थी। इसका विवरण दोहद लेख में मिलता है।
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इस प्रकार जयसिंह सिद्धराज अपने समय का एक महान् विजेता एवं साम्राज्य निर्माता था जिसने चौलुक्य साम्राज्य को उत्कर्ष की चोटी पर पहुँचाया। शान्ति के कार्यों में भी उसकी गहरी दिलचस्पी थी। यह विद्या और कला का उदार संरक्षक था। उसने जैन विद्वान हेमचन्द्र तथा अन्य जैन भिक्षुओं को सम्मानित किया तथा विभिन्न सम्प्रदायों के साथ वह धार्मिक चर्चायें किया करता था। ज्योतिष, न्याय, पुराण आदि के अध्ययन के लिए उसने विद्यालय स्थापित करवाये थे। वह महान निर्माता भी था। सिद्धपुर में रुद्रमहाकाल मन्दिर तथा पाटन में सहस्रलिंग नामक कृत्रिम झील उसके प्रमुख निर्माण है।
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