जनांकीकीय संक्रमण सिद्धांत की व्याख्या

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जनांकिकीय संक्रमण सिद्धानत वृद्धि का आधुनिक सिद्धान्त है। इस सिद्धानत का प्रतिपादन यूरोप के अनेक देशों के आँकडों के आधार पर किया गया। इस सिद्धान्त के प्रतिपादक तथा समर्थक अर्थशास्त्रियों में सी. पी. ब्लैकर, थाम्सन, कार्ल सकूस, लॉण्ड्री, जीटर आर. काक्स आदि प्रमुख है। इन अर्थशास्त्रियों का यह मत है कि प्रत्येक समाज की जनसंख्या को अनेक अवस्थाओं से जाना पड़ता है तथा प्रत्येक अवस्था की अपनी कुछ विशेषतायें होती है । शायः प्रत्येक देश जनसंख्या वृद्धि की दृष्टि से तीन अवस्थाओं से होकर गुजरता है।

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प्रथम अवस्था-

जनांकीकीय संक्रमण सिद्धांत-इस अवस्था में जन्म दर तथा मृत्यु दर दोनों ही ऊँची होती है। फलस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि दर नीची होती है। इस अवस्था में कृषि आय के प्रमुख स्रोत के यप में होती है। ग्रामीण क्षेत्र की प्रधानता होती है। उद्योगों का यह तो अभाव होता है या उद्योग अत्यन्त ही छोटे पैमाने के होते हैं। तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector) जैसे-बीमा, बैंक परिवहन आदि नहीं होते हैं परिवार की आय अत्यन्त ही कम होती है। बच्चे सामान्यतया माता-पिता के लिए सम्पत्ति समझे जाते हैं। संयुक्त परिवार व्यवस्था रहती है, निरक्षता व्याप्त रहती है।

दूसरी अवस्था-

इस अवस्था में अर्थव्यवस्था आर्थिक विका की अवस्था में धीरे-धीरे पहुँचती है। कृषि के साथ-साथ औद्योगिक विकास होने लगता है तथा दोनों क्षेत्रों की उत्पादिता में वृद्धि होती है। लोगों की आय, उपभोग के स्तर, शिक्षा, रहन-सहन के स्तर में वृद्धि होती है। चिकित्सा तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप मृत्यु दर में कमी आती हैं, जन्मदर लगभग स्थिर रहती है। इसके कारण जनसंख्या की वृद्धि दर पहली अवस्था की अपेक्षा ऊंची रहती है। जनसंख्या की निरन्तर वृद्धि के कारण ‘जनसंख्या विस्फोट’ की स्थिति दृष्टिगोचर होती है। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय की वृद्धि के बावजूद भी प्रति व्यक्ति आय में निरन्तर कमी होती है। अधिकांश लोग गरीब बने रहते हैं।

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तीसरी अवस्था-

जनांकीकीय संक्रमण सिद्धांत-इस अवस्था में जन्मदर घट जाती है और मृत्यु दर के पास पहुंचती है। परिणामस्वरूप जनसंख्या की वृद्धि दर गिर जाती है। लोगों की आय में वृद्धि होती है।, रहन सहन का स्तर ऊठता है तथा शिक्षा का प्रसार होता है। पुराने रीति-रिवाज तथा अन्धविश्वास टूटते हैं। स्त्री-शिक्षा, रोजगार तथा विचार स्वातंत्रय में वृद्धि होती है। परिवार छोटे होने लगते हैं। जीवन में व्यस्तता बढ़ती है। विवाह की आयु बढ़ने लगती है। अर्थशास्त्रियों का ऐसा विचार है कि विश्व के सभी देश इन तीन प्रमुख अवस्थाओं से प्रायः गुजर रहे हैं। अफ्रीका के कुछ देश प्रथम अवस्था में हैं, एशिया के कुछ देश द्वितीय अवस्था में तथा यूरोपीय देश तृतीय अवस्था में है।

भिन्न-भिन्न जनांकिकों ने जनसंख्या की वृद्धि की अवस्थाओं को अलग-अलग प्रकार से वर्गीकृत किया हैं

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